वाराणसी। काशी मंथन और प्रभा खेतान फाउंडेशन की संयुक्त पहल पर डॉ. विक्रम संपत की पुस्तक ‘प्रतीक्षा शिव की : ज्ञान-वापी काशी के सत्य का उद्घाटन’ का विमोचन किया गया। बीएचयू स्थित मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के सभागार में इतिहासकार डॉ. विक्रम संपत की किताब ‘वेटिंग फॉर शिवा’ पर भी चर्चा हुई। यह पुस्तक अंग्रेजी भाषा में पहले ही आ चुकी है। पुस्तक ज्ञानवापी के रहस्यों को उद्घाटित करने के लिए काफी चर्चा में है।
अच्युत सिंह ने इस पुस्तक को हिन्दी भाषा में अनुदित किया है। पुस्तक के हिंदी संस्करण का विमोचन ज्ञानवापी की न्यायिक लड़ाई लड़ रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य वेंकटरमण घनपाठी, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य अर्चक श्रीकांत मिश्र, अहसास – वीमेन ऑफ़ वाराणसी की संयोजिका भारती मधोक, काशी मंथन के संयोजक डॉ. मयंक नारायण सिंह और डॉ. विक्रम संपत ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर आयोजित परिचर्चा सत्र में इतिहासकार डॉ. संपत ने बताया कि इस पुस्तक को लिखने में उनको श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य अभिनव शंकरा भारती, अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन सहित कई लोगों का सहयोग मिला। उनकी पूरी कोशिश रही कि वह मूल स्रोतों का अध्ययन कर ज्ञानवापी के रहस्यों को उद्घाटित कर सकें।
उन्होंने बताया कि इस पुस्तक के लिए उन्होंने मरीचि संहिता, शिव पुराण, वायु पुराण, लिंग पुराण, ब्रम्हवैय्वर्त पुराण, पद्म पुराण और स्कन्द पुराण आदि का अध्ययन किया। संस्कृत में उद्धरित मूल लेखों को पढ़ने के लिए बंगलुरु में रहने वाले आईआईटी मद्रास के पूर्व प्रोफेसर के. एस. कन्नन और डॉ. मीरा आदि का सहयोग लिया। इस पुस्तक के जरिये यह सिद्ध होगा कि हिन्दू पक्ष ने ज्ञानवापी की मुक्ति की लड़ाई कभी नहीं छोड़ी थी। कार्यक्रम में ज्ञानवापी मामले के अधिवक्ता विष्णु जैन ने बताया कि एक लिट् फेस्ट में डॉ. संपत से भेंट होने पर इस पुस्तक का विचार जन्मा था।
इस पुस्तक के जरिये सामान्य जनमानस को ज्ञानवापी को लेकर चले आ रहे विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि समझने में मदद मिलेगी। डॉ. संपत ने इस पुस्तक को बहुत मेहनत से तैयार किया है। ब्रिटिश काल से सारे वादों को उन्होंने शृंखलाबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया है। और मैं दावे के साथ कहता हूँ यह पुस्तक पढने के बाद यह संशय दूर हो जायेगा कि – ज्ञानवापी कोई विवादित स्थल नहीं है, वह साफ़-साफ़ अष्टमंडप मंदिर का भग्नावशेष है। हम कोर्ट में ज्ञानवापी की मुक्ति की लड़ाई लड़ रहे हैं, और हमें यकीन है कि हम ही इसे जीतेंगे।
लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि काशी भक्ति आंदोलन का गढ़ रही है। जब आप भक्ति आंदोलन का काल क्रम समझने की कोशिश करेंगे तो आपको पता चलेगा कि मंदिरों के टूटने के दौर में ही भगवत गान से शुरू हुआ आंदोलन था। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि ज्ञानवापी की लड़ाई उत्तर से लेकर दक्षिण तक समूचे भारत ने लड़ी है। ज्ञानवापी के शिव का नंदी जी ने ही नहीं बल्कि हम सब ने बरसों इंतज़ार किया है। हमारे देश ने अपने स्व को नष्ट करना नहीं सीखा, हमनें राम से विग्रहवान रह कर प्रतीक्षा करना सीखा है। अब इस देश में राम का आगमन हो गया है। अब नंदी सहित हम सबकी प्रतीक्षा फलित हो रही है। परिचर्चा सत्र के सूत्रधार डॉ. मयंक नारायण सिंह रहे। डॉ. सिंह ने बताया कि काशी मंथन का ध्येय – एजुकेशन, इन्गेजमेंट, इनलाइटमेंट, एम्पावरमेंट के जरिये एक सशक्त राष्ट्रवादी पीढ़ी का निर्माण करना है। कार्यक्रम में डॉ पंकज सिंह, प्रो. एस के तिवारी, प्रो. अमित नंदनधर द्विवेदी, रत्नाकर त्रिपाठी, दीपक मधोक, डॉ. धीरेन्द्र राय, डॉ. ज्योति राणा, डॉ. एहसान हसन, डॉ. सुमिल तिवारी, देवाशीष गांगुली आदि की उपस्थिति रही।