
पाटेश्वरी प्रसाद
बाराबंकी। साल 1975। तारीख 25 जून। घटनाक्रम आपातकाल। एक ऐसी घटना जिनसे लोकतंत्र को झकझोर दिया। जिस घटना ने इतिहास के उस अध्याय को काला कर दिया जिसकी छाप अमिट है। देश स्वतंत्र होने के बाद तत्कालीन सरकार द्वारा आपातकाल के माध्यम से देशवासियों की संवैधानिक आज़ादी को नष्ट करने का प्रयास किया गया।
जिन्होंने भी आपातकाल को भुगता है वह और उनके परिवार के सदस्य आज भी यह शब्द सुनकर सहम जाते है। उनकी आँखों के सामने आज भी वह दृश्य आ जाता है और लगने लगता है कि सब ओर अंधेरा ही अंधेरा है, कहीं से कोई रोशनी की किरण नहीं दिखाई देती एक अनिश्चितता लगती है। क्या होगा? कैसे होगा? कोई रास्ता निकलेगा क्या? एक साथ कई सवाल खड़े हो जाते हैं?
आपातकाल के समय केवल सत्याग्रह करने वाले ही नहीं उनकी सहायता करने वालों पर भी पाबंदी थी। उनको भी जेल में डाल दिया जाता था। चारों ओर भय का वातावरण बना दिया गया था कि लोग कुछ भी करने से पहले कई बार सोचते थे।
आपातकाल में 14 माह जेल में रहे लोकतंत्र सेनानी श्री राजनाथ शर्मा जी बताते है कि आपातकाल की त्रासदी शब्दों में बयान नहीं की जा सकती है। जिन्होंने आपातकाल नहीं देखा वास्तव में उनके लिए आपातकाल की कल्पना को करना भी कठिन है। असत्य, अहंकार और अराजकता को मिला आपातकाल शब्द की व्याख्या की जा सकती है। आपातकाल असत्य की प्रतिमूर्ति थी, आपातकाल अराजकता की प्रतिमूर्ति थी, आपातकाल अहंकार की प्रतिमूर्ति थी। इन शब्दों से हम समझ सकते हैं वातावरण कैसा रहा होगा।
जब इससे बाहर निकलने का कोई उपाय नहीं मिल रहा था तब समाजवादियों ने निर्णय किया कि लोकतंत्र की रक्षा को हम आगे आयेंगे। जिसके बाद लाखों की संख्या में गिरफ्तारियां हुई। मीसा और डीआईआर के तहत लोगों को बंदी बना लिया गया। आपातकाल का संघर्ष ऐसी अनेक बातें सीखने-समझने का भी हैं। कार्यकर्ताओं ने किस हिम्मत से काम लिया, प्रशासन द्वारा डराने के हरसम्भव प्रयास किए गए, लोगों के नाखून उखाड़ लिए गए, शरीर पर सिगरेट दागी गयी, काल कोठरी के अंधेरे में 3-4 दिन लगातार आँखो पर तेज रोशनी डाली गयी, पेशाब पिलाने जैसी अनेक यातनाएँ दी गयीं।

यह सब करने के पीछे उनका यह ध्येय था कि कोई भी सत्याग्रह करने की हिम्मत ना करे लेकिन इतने भय के बाद भी एक के बाद भी समाजवादियों ने हिम्मत नही हारी। सरकार को शायद अनुमान नहीं था कि सत्याग्रह करके भी लाखों लोग जेल जा सकते हैं। सवा लाख से अधिक लोग स्वयं जेल गए। लाखों लोग ऐसे थे जिन्होंने सत्याग्रह किया और उनको पुलिस नहीं पकड़ पायी, जेल में जगह नहीं थी, ऐसा ज़बरदस्त आंदोलन खड़ा हुआ कि उसके परिणाम स्वरूप लोकतंत्र विजयी हुआ, लोकतंत्र की रक्षा हुई।
आज संकल्प लेने का दिन है। अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का दिन है। हिंसा का प्रतिरोध करने का दिन है। लोकतंत्र सेनानियों को नमन करने और उनके संघर्षों को याद करने का दिन है। हमें स्वयं में विचार करना होगा कि एकजुटता के आधार पर कैसे समाज को खड़ा कर सकते है।