आलू की फसल में झुलसा रोग से किसान रहे सावधान, मौसम एवं फसल की करते रहें निगरानी:डा.सत्येंद्र सिंह

  • मौसम के आकलन के आधार पर आलू की फसल में झुलसा बीमारी निकट भविष्य में आने की संभावना
  • बादल होने पर आलू की फसल में फंफूद का संक्रमण होने की बढ़ जाती है संभावना,जो झुलसा रोग का होता है प्रमुख कारण

लखनऊ।लगातार मौसम में बदलाव व तापमान गिरने से इस समय आलू की फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना बनी रहती है। अगर समय रहते इनका प्रबंधन न किया गया तो आलू की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।चंद्रभानु गुप्त कृषि महाविद्यालय के कृषि कीट विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डा. सत्येंद्र कुमार सिंह ने शुक्रवार को निष्पक्ष प्रतिदिन से बातचीत करते हुए बताया कि अभी तक क्षेत्र में आलू की फसल में कोई रोग लगने की जानकारी नहीं आयी है। लेकिन मौसम के आकलन के आधार पर आलू की फसल में झुलसा बीमारी निकट भविष्य में आने की संभावना है।डा. श्री सिंह ने यह भी बताया कि बादल होने पर आलू की फसल में फंफूद का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। जो झुलसा रोग का प्रमुख कारण होता है। 

अगेती झुलसा और पछेती झुलसा से बचाएं

उन्होंने कहा कि झुलसा रोग दो प्रकार के होते हैं। अगेती झुलसा और पछेती झुलसा। अगेती झुलसा दिसंबर महीने की शुरुआत में लगता है। अगेती झुलसा में पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। सर्वप्रथम नीचे की पत्तियों पर संक्रमण होता है। जहाँ से रोग ऊपर की ओर बढ़ता है। जिनमें बाद में चक्रदार रेखाएं दिखाई देती है। उग्र अवस्था में धब्बे आपस में मिलकर पत्ती को झुलसा देते हैं। इसके प्रभाव से आलू छोटे व कम बनते हैं। इस समय आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग लग सकता है। पछेती झुलसा आलू के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है। इस बीमारी में पत्तियां किनारे व सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है। जिसके कारण पूरा पौधा झुलस जाता है। पौधों के ऊपर काले-काले चकत्ते दिखाई देते हैं जो बाद में बढ़ जाते हैं। जिससे कंद भी प्रभावित होता है। 

मौसम एवं फसल की निगरानी करते रहना चाहिये

बदली के मौसम एवं वातावरण में नमी होने पर यह रोग उग्र रूप धारण कर लेता है।  चार से छह दिन में ही फसल बिल्कुल नष्ट हो जाती  है। दोनों प्रकार की झुलसा बीमारी के प्रबंधन के लिये मौसम एवं फसल की निगरानी करते रहना चाहिये। जिन फसलों पर अभी तक पिछेती झुलसा बीमारी प्रकट नही हुई है। उन पर मैंकोजेब, प्रोपीनेव, क्लोरोथेलोनील युक्त फफूंदनाशक  एक किग्रा. को 400 लीटर पानी मे घोल कर  प्रति  एकड़ के हिसाब छिड़काव करें। जैसे ही बादल आए तुरंत दवाओं का छिड़काव करना चाहिए।आलू की सफल खेती के लिए जरुरी है कि इस रोग के बारे में जाने और प्रबंधन के लिए जरुरी फफूंदनाशक पहले से खरीद कर रख लें और समय समय पर उपयोग करें, ऐसा नहीं करने पर यह रोग आपको इतना समय नहीं देगा की आप तैयारी करें। पूरी फसल ख़त्म होने के लिए 4 से 5 दिन बहुत है।एक बार रोग के लक्षण दिखाई देने के बाद मैनकोजेब देने का कोई असर नहीं होगा, इसलिए जिन खेतों में बीमारी के लक्षण दिखने लगे हों उनमें साइमोइक्सेनील मैनकोजेब दवा की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

एक ही फफूँदीनाशक का छिड़काव बार बार न करें

जिन या फेनोमेडोन 400 ग्राम, मैनकोजेब 800 ग्राम अथवा डाईमेथामार्फ  400 ग्रा, मैनकोजेब 800 ग्रा. को 400 लीटर में घोलकर 10 दिन  के अन्तराल पर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।परन्तु बीमारी की तीव्रता को देखते हुए इस अन्तराल को घटाया या बढा़या जा सकता है।डा.सिंह ने कृषि स्नातक के छात्रों को सलाह दिया कि अपने गांव के आसपास के किसान भाईयों को सलाह जरूर दें, ताकि इस बीमारी से आलू की फसल को बचाया जा सके। उन्होंने बताया कि एक ही फफूँदीनाशक का छिड़काव बार -बार न करें।  छिड़काव करते समय नाजिल फसल की नीचे की तरफ से ऊपर की तरफ करके भी छिड़काव करे जिससे पौधे पर फफूँदनाशक अच्छी तरह  पड़ जाये।

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