बसपा को छोड़कर यहां से भाजपा, कांग्रेस व सपा ने जीत का परचम लहराया आइये जानते है उस गांव का इतिहास

गोरखपुर। तीसरे लोकसभा चुनाव (1962) से अस्तित्व में आयी गोरखपुर जिले की बांसगांव लोकसभा सीट शुरू से ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बसपा को छोड़कर यहां से भाजपा, कांग्रेस व सपा ने जीत का परचम लहराया है। 18वीं लोकसभा के चुनाव में यह सीट ऐेसे मोड़ पर खड़ी है, जहां चुनाव का परिणाम चाहे जो आए, एक इतिहास कायम करेगा।

यदि भाजपा के प्रत्याशी कमलेश पासवान जीते तो लगातार चार बार सांसद चुने जाने वाले पहले नेता बन जाएंगे। कांग्रेस के टिकट पर भाग्य आजमा रहे सदल प्रसाद को जनता का आशीर्वाद मिला तो तीन बार रनर रहने के बाद पहली बार जीत दर्ज करने वाले प्रत्याशी बन जाएंगे।

परिणाम बसपा के डा. रामसमुझ के पक्ष में रहा तो उन्हें गोरखपुर व बस्ती मंडल की एकमात्र सुरक्षित सीट पर बसपा का खाता खोलने का श्रेय मिलेगा। बांसगांव सुरक्षित सीट से दो प्रत्याशियों ने जीत की हैट-ट्रिक लगाने में कामयाबी पाई है। कांग्रेस के महावीर प्रसाद ने 1980, 1984 व 1989 के लोकसभा चुनावों में लगातार जीत हासिल की थी। सबसे अधिक चार बार सांसद रहने का रिकार्ड भी उनके नाम है।

2004 में उन्होंने चौथी जीत हासिल की थी लेकिन लगातार चार जीत वह भी नहीं दर्ज कर पाए थे। दूसरी हैट-ट्रिक लगाने वाले नेता हैं भाजपा के कमलेश पासवान। कमलेश ने 2009, 2014 व 2019 के चुनाव में जीत हासिल की है। इस बार फिर मैदान में हैं। अबकी भी जीत मिली तो महावीर प्रसाद के उपलब्धि की बराबरी तो कर ही लेंगे लेकिन लगातार चार जीत दर्ज करने का रिकार्ड भी बनाने में सफल रहेंगे।

बात कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद की करें तो उन्होंने बांसगांव में ही अपनी राजनीतिक जमीन तलाशी है। वह चौथी बार इस सीट से प्रत्याशी हैं। तीन चुनावों में उन्हें दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था। 2004, 2014 व 2019 में वह बसपा के टिकट पर मैदान में थे और तीनों ही बार रनर रहे। 2009 का जब चुनाव हुआ तो वह प्रदेश की बसपा सरकार में मंत्री थे।

इस बार उन्होंने पार्टी बदल दी है। आइएनडीआइ गठबंधन के तहत कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। अब तक कोई ऐसा प्रत्याशी नहीं रहा है जो तीन चुनावों में रनर रहा हो। सदल को कामयाबी मिले या न मिले, रिकार्ड उनके नाम जरूर दर्ज होगा।

बसपा के प्रत्याशी डा. रामसमुझ भी क्षेत्र में पसीना बहा रहे हैं। बसपा यहां पिछले चार चुनावों से दूसरे स्थान पर रही है लेकिन उसे जीत नहीं मिल सकी। इस बार यदि कामयाबी मिली तो इस सीट पर बसपा को पहली जीत मिलने का रिकार्ड बनेगा।

जीत के लिए सबके अपने समीकरण गोरखपुर

भाजपा प्रत्याशी कमलेश पासवान इसी क्षेत्र से लगातार तीन बार से सांसद हैं। उनकी माता सुभावती पासवान 1996 में सपा के टिकट पर चुनाव जीत चुकी हैं। लंबे समय से प्रतिनिधित्व करने के कारण चुनाव प्रचार के दौरान कुछ लोगों के विरोध का सामना भी कमलेश को करना पड़ा है।

मोदी, योगी के नाम पर भाजपा प्रत्याशी को इस बार भी अपनी नइया पार लगने का भरोसा है। उनकी बिरादरी के अच्छे-खासे मतदाता हैं। साथ ही भाजपा के नाते सवर्ण वोटों पर भी अपना दावा कर रहे हैं। उनके खाते में गिनाने को केंद्र व प्रदेश सरकार की उपलब्धियां भी हैं।

इसके विपरीत सदल प्रसाद के समर्थक उनकी सरल छवि, तीन बार की हार के बाद सहानुभूति की उम्मीद व लंबे समय तक बसपा में रहने के कारण दलित मतों में सेंधमारी के बूते जीत का दावा कर रहे हैं। सपा के साथ होने के कारण यादव व मुस्लिम मत मिलने का भी भरोसा है।

बसपा के डा. रामसमुझ बसपा के मूल मतदाताओं पर भरोसा जता रहे हैं। इसके साथ ही बसपा कार्यकर्ता अन्य वर्ग के मतदाताओं का समर्थन मिलने का भी दावा कर रहे हैं।

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