क्या कनाडा व भारत के बीच बिगड़ते रिश्ते कभी बनेंगे ?

अशोक भाटिया

कनाडा और भारत के बीच तनावपूर्ण संबंधों की ओर बढ़ने के संकेत नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान तब स्पष्ट हो गए थे, जब अन्य पश्चिमी नेताओं के विपरीत, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ औपचारिक द्विपक्षीय वार्ता नहीं की थी। इसके बजाय, दोनों नेताओं ने शिखर सम्मेलन के मौके पर एक-दूसरे के साथ गंभीर चिंताएं व्यक्त की थीं, जहां मोदी ने अपने कार्यालय के अनुसार “कनाडा में चरमपंथी तत्वों की भारत विरोधी गतिविधियों को जारी रखने” का मुद्दा उठाया था ।विशेषज्ञों का कहना है कि भारत-कनाडा संबंध – ऐतिहासिक रूप से व्यापार और कनाडा में एक बड़े भारतीय प्रवासियों की उपस्थिति से प्रेरित – हाल केवर्षों में धीरे-धीरे खराब हो गए , भारत के दावों के कारण कि कनाडा ने सिक्ख अलगाववादी आंदोलन के प्रति सहानुभूति को बढ़ावा दिया है, और कनाडा के प्रति-दावों ने आरोप लगाया और कनाडा ने भारतीय अधिकारियों पर उसकी घरेलू राजनीति में दखल देने का इल्जाम लगाया था ।

यह रिश्ता तब चरमरा गया, जब ट्रूडो ने कनाडाई संसद के सामने एक विस्फोटक बयान दिया कि कनाडा ओटावा के एक प्रमुख सिक्ख नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भूमिका निभाने के लिए नई दिल्ली के खिलाफ कनाडाई खुफिया से “विश्वसनीय आरोप” लगा रहा था। ट्रूडो की टिप्पणियों के तुरंत बाद कनाडाई सरकार ने एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक को निष्कासित कर दिया और भारत ने एक बयान जारी कर तुरंत जवाबी कार्रवाई की, जिसमें निज्जर की मौत में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया गया और एक अनाम वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को निष्कासित कर दिया गया।

कहते है समय के साथ बिगड़े संबंध सुधरने की उम्मीद बनी रहती है पर कनाडा लगातार कुछ न कुछ ऐसा कर रहा है, जिससे भारत के साथ उसके अच्छे रिश्ते रखने की मंशा पर संदेह बढ़ जाए । कुछ समय पहले उसने अपने यहां मारे गए आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ बता डाला था । भारत के विरोध के बाद भी वो बेसिर-पैर बातें करता रहा । अब कनाडाई संसद में इसी आतंकी की पहली बरसी पर दो मिनट का मौन रखा गया । ये एक तरह का इशारा है कि तुम्हारे यहां जिसे आतंकी माना जाएगा, हम उसे ही पालेंगे-पोसेंगे । उस देश की सरकार का खालिस्तानी एक्सट्रीमिस्ट से रिश्ता कई दशकों से चला आ रहा है ।

जब वर्तमान कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो खालिस्तानियों को सपोर्ट करते हैं, तो वे केवल अपने पिता पियरे ट्रूडो के नक्शे-कदम पर चल रहे होते हैं । दो बार देश के लीडर रह चुके पियरे ने जब दूसरी बार पद संभाला, जब भारत में खालिस्तानी आंदोलन सिर उठाने लगा था । भारत की सख्ती से डरे हुए चरमपंथी कनाडा भागने लगे । ये उनके लिए सेफ हेवन था, जहां पहले से ही उनकी कम्युनिटी राजनीति से लेकर स्थानीय तौर पर भी पैठ बना चुकी थी ।

गौरतलब है कि पंजाब में आतंक मचाए हुए इन लोगों को रोकने के लिए सरकार कई कदम उठा रही थी । इसी दौर में ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ । अलगाववादी इसके बाद दल के दल कनाडा चले गए और वहीं से तैयार की एक खौफनाक हमले की योजना । कनिष्क प्लेन ब्लास्ट । विमान में सवाल 329 लोगों की मौत को ऑपरेशन ब्लू स्टार की जवाबी कार्रवाई की तरह देखा गया । हालांकि कनाडा सरकार ने पूरे मामले पर लीपापोती कर दी ।

23 जून 1985 को एयर इंडिया का विमान मांट्रियल से मुंबई आ रहा था, जिसे आयरलैंड के समुद्र के ऊपर 31 हजार फीट पर बम से उड़ा दिया गया । घटना में सभी 329 लोगों की मौत के बाद मामला तब गरमाया, जब इसके खालिस्तानी कनेक्शन की बात पता लगी । ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए ही एक्सट्रीमिस्ट्स ने विमान में बम रखा था । भारत ने कई बार मामले की जांच करवानी चाही, लेकिन कनाडा ढील देता रहा । यहां तक कि भारत सरकार ने जब खुद जांच करनी चाही तो कनाडा ने कानूनी अड़चनें पैदा कीं ।

इकनॉमिक टाइम्स ने सीनियर कनाडाई पत्रकार टैरी मिलेव्स्की की किताब ब्लड फॉर ब्लड- फिफ्टी ईयर्स ऑफ ग्लोबल खालिस्तान प्रोजेक्ट के हवाले से बताया है कि परमार खुलेआम कहता था कि भारतीय विमान हवा में टपकेंगे । जब अलगाववादी भारत को नुकसान पहुंचाने की योजना बना रहे थे, तत्कालीन ट्रूडो सरकार आराम से बैठी हुई थी । पुलिस तक कथित तौर पर ये तक बात पहुंची कि एयर इंडिया प्लेन में ब्लास्ट हो सकता है । कनिष्क हमले के बाद कई सबूत मिले, जो जान-बूझकर या लापरवाही में गायब हो गए ।

ये जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो का दौर था । 9/11 के बाद दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी हमला कहलाते कनिष्क ब्लास्ट में केवल एक खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार को कुछ समय के लिए सजा हुई, बाद में उसे भी आरोप मुक्त कर दिया गया ।विमान ब्लास्ट के बाद एक इंक्वायरी कमेटी बनी, जिसके हेड जस्टिस जॉन मेजर ने साल 2010 में अपनी रिपोर्ट दी । इंक्वायरी कमेटी ने सीधे कहा कि कनाडाई पुलिस और खुफिया विभाग को टैरर अटैक की जानकारी थी । न तो उन्होंने हमला रोका, न ही इसकी साफ जांच होने दी । खुद भारत सरकार की ओर से जस्टिस बीएन कृपाल की अध्‍यक्षता में बने जांच आयोग ने भी पाया कि ये टैरर अटैक ही था, जो ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला था ।

ट्रूडो सीनियर के ही समय में साल 1974 में भारत के न्यूक्लियर वेपन टेस्ट पर कनाडा ने नाराजगी जताते हुए न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम के लिए अपना सपोर्ट हटा लिया था । काफी बाद में पीएम मनमोहन सिंह के समय में दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर कोऑपरेशन एग्रीमेंट वापस से साइन हुआ । भारत की आजादी और विभाजन के बाद भी कनाडा ने कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का पक्ष लिया था ।

1960 के दशक में वहां लिबरल पार्टी की सरकार आई । उसे मैनपावर की जरूरत थी, जो हिंदुस्तान जैसे देश से उसे कम कीमत पर मिल रहा था । उसने भारतीयों के लिए वीजा नियमों में काफी ढील दे दी, जिससे पंजाब से जहाज भर-भरकर सिख कनाडा पहुंचने लगे । ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इनमें चरमपंथी भी शामिल हो गए, जो बाकियों की सोच पर भी असर डालने लगे । सिखों की बढ़ी हुई आबादी को देखते हुए ट्रूडो सीनियर ने उसे अपना वोट बैंक बना लिया । वो हर ऐसा काम करने से बचने लगे, जिससे अलगाववादी नाराज हों । जाहिर तौर पर ये कदम भारत के खिलाफ जाता था ।

फिलहाल जो हालात हैं, वो कुछ ऐसे हैं कि सरकार और सिख संगठनों दोनों को ही एक-दूसरे की जरूरत है । साल 2019 में चुनाव के दौरान लिबरल पार्टी मेजोरिटी से 13 सीट पीछे थी । ये जस्टिन ट्रूडो की पार्टी थी । तब सरकार को न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने सपोर्ट दिया, जिसके लीडर हैं जगमीत सिंह धालीवाल । ये खालिस्तानी चरमपंथी है, जिसका वीजा साल 2013 में भारत ने रिजेक्ट कर दिया था ।सिखों की यही पार्टी ब्रिटिश कोलंबिया को रूल कर रही है । इससे साफ है कि ट्रूडो के पास एंटी-इंडिया आवाजों को नजरअंदाज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं ।

काफी बड़ा वोट बैंक कनाडा में भारतीय मूल के 24 लाख लोग हैं । इनमें से करीब साढे 7 लाख सिख ही हैं । इनकी ज्यादा जनसंख्या ग्रेटर टोरंटो, वैंकूवर, एडमोंटन, ब्रिटिश कोलंबिया और कैलगरी में है । चुनाव के दौरान ये हमेशा बड़े वोट बैंक की तरह देखे जाते हैं । यहां तक कि वहां के मेनिफेस्टो में इस कम्युनिटी की दिक्कतों पर जमकर बात होती है ।अक्टूबर 2025 में कनाडा में इलेक्शन्स हो सकते हैं । माना जा रहा है कि वर्तमान सरकार इसलिए भी वहां बसे खालिस्तानी अलगाववादियों को खुश करने के लिए तरह-तरह के काम कर रही है । निज्जर की याद में मौन रखना भी इसी का हिस्सा हो सकता है ।

वैसे अच्छी बात यह है कि हाल ही में इटली में हुए जी7 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो की मुलाकात हुई थी। गत वर्ष सितंबर से दोनों देशों में जारी अनबन के बीच यह दोनों प्रधानमंत्रियों की पहली मुलाकात थी। जी-7 से लौटकर ट्रूडो ने कहा, शिखर सम्मेलन की सबसे अच्छी बात यह है कि आपको विभिन्न नेताओं से सीधे बात करने का मौका मिलता है। भारत के साथ, हमारे लोगों के बीच गहरे संबंध हैं। कई बड़े मुद्दों पर सहमति है जिन पर हमें वैश्विक समुदाय के तौर पर एक लोकतंत्र के रूप में काम करने की जरूरत है। लेकिन अब जब मोदी चुनाव जीत चुके हैं, तो मुझे लगता है कि हमारे लिए बातचीत करने का मौका है। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा व कनाडाई लोगों की सुरक्षा और कानून के शासन से जुड़े कुछ बहुत गंभीर मुद्दे शामिल हैं। हम इन मुद्दों पर चर्चा करेंगे। इससे पहले यह पूछे जाने पर कि क्या कनाडा प्रधानमंत्री मोदी को अगले साल शिखर सम्मेलन में आमंत्रित करने पर विचार करेगा, ट्रूडो ने कहा, कनाडा के लोग जी-7 की मेजबानी के लिए इंतजार कर रहे हैं। हालांकि, इस साल के बाकी महीनों के लिए इटली जी-7 का अध्यक्ष है। मैं प्रधानमंत्री मेलोनी और जी-7 भागदीरों के साथ उन मुद्दों पर काम करने को लेकर उत्सुक हैं, जिनके बारे में हमने बात की है। अगले साल जब हम जी-7 की अध्यक्षता ग्रहण करेंगे, तो हमारे पर इसके बारे में कहने के लिए बहुत कुछ होगा।

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