परिवहन के नए कानून से चालक हुए भयभीत अगर रुके तो भीड़ मार देगी और भागे तो कानून मार देगा?

जौनपुर
प्रारंभिक मानव की जीवनचर्या भोजन को आधारभूत आवश्यक मानते हुए प्रारंभ हुई जो भोजन, वस्त्र, व आवास की संरचना तक पहुंचा कुछ ऐसे भी कार्य है जिससे अस्तित्व भी खतरे में होता है आर्थिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए मानव को किसी भी क्षेत्र को अपनाने के लिए बाध्य भी होना पड़ता है जैसे वाहन चालक, मछुआरे,बिजली मिस्त्री आदि है केंद्र शासन द्वारा लाई गई भारतीय न्याय की संहिता धारा 106 (2) के तहत वाहन चालकों पर 10 वर्ष का दंड व अर्थदंड होने से वाहन चालक में रोष व अलग अलग स्थानों पर प्रदर्शन होता दिख रहा है जिससे लोगो का आवागमन व अन्य वस्तुओं की रुकावटो से समस्या विकराल स्थिति उत्पन्न हो सकती है मैं वाहन चालको की मांग का समर्थन करता हूं जबकि न्याय संहिता की धारा 106 (2) में दुर्घटना का वर्गीकरण भी नही किया गया ऐसे में तो प्रत्येक दुर्घटनाओ में चालक को 10 वर्ष से दंडित हो जाना पड़ेगा वाहन चालको को इस दंड से मुक्ति पाना असंभव सा है क्योंकि अत्यधिक वाहन चालक कम वेतन की प्राप्ति वालो पर जीवन के मार्ग पर विराम चिन्ह लग जायेगा केंद्र शासन को पुनःगंभीरता से विचारशील प्रकार से भारतीय न्याय संहिता धारा 106 (2) में संशोधन करना चाहिए जिससे वाहन चालकों को राहत मिल सके और लॉ कमीशन जैसे विधिक संस्थानों से सुझाव ले कर उत्तम प्रकार से परिचालन हो सके।

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