नई दिल्ली: देशभर की अदालतें लंबित मामलों की संख्या से लगातार बढ़ोतरी हो रही हैं. अब हाल ही में संसद में ये मुद्दा उठा, जहां शीतकालीन सत्र के दौरान कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने लोकसभा में बताया कि देश की अदालतों में फिलहाल 5 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित पड़े हैं. सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 80 हजार है.
संसद में एक सवाल के जवाब में मेघवाल ने बताया कि 1 दिसंबर तक अदालतों में 5,08,85,856 मामले लंबित हैं. इनमें से 61 लाख से ज्यादा मामले उच्च न्यायालयों के स्तर पर हैं. वहीं जिला और अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 4.46 करोड़ से ज्यादा है.
मानसून सत्र के बाद बड़ी लंबित मामलों की संख्या?
इससे पहले कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने मानसून सत्र के दौरान भी एक सवाल के जवाब में लंबित मामलों की संख्या बताई थी. जिसमें उन्होंने लंबित मामलों की संख्या 5.2 करोड़ बताते हुए कहा था, “इंटीग्रेटेड केस मैनेजमेंट सिस्टम (आईसीएमआईएस) से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक 1 जुलाई तक सुप्रीम कोर्ट में 69,766 मामले लंबित हैं.
नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर मौजूद जानकारी के मुताबिक 14 जुलाई तक हाई कोर्ट में 60,62,953 और जिला और अधीनस्थ अदालतों में 4,41,35,357 मामले लंबित हैं.”
वहीं संसद के शीतकालीन सत्र में लंबित मामलों की संख्या 5,08,85,856 बताई गई है. जाहिर है लंबित मामलों में लगातार इजाफा होता जा रहा है. वहीं पिछले सत्र के दौरान सुप्रीम कोर्ट में जहां लंबित मामलों की संख्या 69,766 बताई गई थी अब इसमें में इजाफा हो गया है और ये संख्या 80 हजार पहुंच गई है.
जजों और न्यायिक अफसरों की कमी बढ़ा रही लंबित मामलों की संख्या?
अदालतों में जजों की कमी लंबित मामलों की बढ़ती संख्या में एक बड़ी वजह है. सरकार द्वारा दिए जवाब के अनुसार, भारतीय न्यायालयों में जजों की कुल स्वीकृत संख्या 26,568 जजों की है, जिनमें से सुप्रीम कोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 34 तो वहीं हाई कोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 1,114 है.
इसके अलावा जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में जजों की स्वीकृत संख्या 25,420 है. हालांकि कुल जजों की संख्या में से 324 पद अभी खाली हैं और उन पर जजों की नियुक्ति नहीं हुई है.
वहीं राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल 80, 344 मामले लंबित हैं. जिनमें से 78 प्रतिशत मामले दीवानी यानी सिविल हैं तो वहीं 22 प्रतिशत मामले आपराधिक.
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उच्चतम न्यायालय में लंबित मामलों में 4 हजार से ज्यादा मामले ऐसे हैं जो एक दशक से ज्यादा समय से लंबित पड़े हैं.
इन आंकड़ों पर गौर करें तो 37, 777 ऐसे मामले हैं जिनका निपटारा इस साल की शुरुआत से पहले ही कर लिया गया था. वहीं लंबित मामलों में 62,859 मामले सिविल हैं, जिनमें से 17,897 मामले एक साल पहले ही सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. इसके अलावा 17,485 मामले आपराधिक हैं, जिनमें से 7,222 केस एक साल से भी कम समय पहले सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंचे हैं.
राज्यसभा में विधि द्वारा दिए गए जवाब के अनुसार भारत में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 21 जज ही हैं. ऐसे में जजों की कमी लंबित मामलों का एक बड़ा कारण बनकर सामने आती है. भारत में न्यायाधीश जनसंख्या अनुपात भी दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम है.
ऐसे में अदालत में लंबित मामलों की संख्या को देखते हुए अधिक न्यायाधीशों की जरूरत है.
इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को आधिकारिक एवं गैर-आधिकारिक समारोहों (जैसे सम्मेलन, सेमिनार, उद्घाटन आदि) में भी जाना पड़ता है, जिसमें उनका बहुत समय बर्बाद हो जाता है और इसका असर मामलों की सुनवाई में भी पड़ता है.
लंबित मामलों के बढ़ने के कारण
जजों की कमी के अलावा देश की अदालतों में चल रहे केसों के लंबित होने का कारण अदालत के कर्मचारियों और कोर्ट के इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, साक्ष्यों का न जुटाया जाना, जांच एजेंसियों, गवाहों और वादियों जैसे हितधारकों के सहयोग में कमी भी शामिल है.
मामलों के निपटान में देरी की एक वजह अलग-अलग तरह के मामलों के निपटान के लिए संबंधित अदालतों की तरफ से निर्धारित समय सीमा की कमी, बार-बार मामले में सुनवाई का टलना और सुनवाई के लिए मामलों की निगरानी, लंबित मामलों को ट्रैक करने की व्यवस्था की कमी भी किसी भी केस के परिणाम तक पहुंचने में बहुत समय लगा देती है.
देश की सरकार के अनुसार, अदालतों में मामले के निपटान के लिए पुलिस, वकील, जांच एजेंसियां और गवाह किसी भी मामले में अहम किरदार निभाते हैं, लेकिन इन्हीं लोगों द्वारा यदि कई कार्यों में देरी की जाती है जो परिणामों तक पहुंचने में समय लगा देती है.
क्या बन रहा चुनौती
वर्तमान में अदालतों में वकीलों की गैरहाजिरी की वजह से मामलों की सुनवाई नहीं हो पाती है. कानून मंत्री के अनुसार, “अदालतों में लंबित मामलों का निपटारा न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में है. अदालतों में मामलों के निपटारे में सरकार की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है.”
वहीं नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड की रिपोर्ट में हाल ही में ये सामने आया था कि देश में लंबित मामलों में 61,57,268 ऐसे हैं जिनमें वकील पेश नहीं हो रहे हैं और 8,82,000 मामलों में केस करने वाले और विरोधी पक्षों ने ही कोर्ट आना छोड़ दिया है.
रिपोर्ट के अनुसार 66,58,131 मामले ऐसे हैं जिनमें आरोपी या गवाहों की पेशी नहीं होती है. इस वजह से भी मामले की सुनाई नहीं हो पाती है. ऐसे कुल 36 लाख से अधिक मामले हैं जिनमें आरोपी जमानत लेकर फरार हो गए हैं.