काशी में दूसरी बार हो रहा तमिल संगमम क्यों है खास? इसी दांव से राहुल गांधी के ‘मिशन साउथ’ पर भारी पड़ेंगे प्रधानमंत्री मोदी!

दक्षिण भारत के तमिलनाडु और काशी के संबंधों को और मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से एक बार फिर दिसंबर महीने में काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जा रहा है. इससे पहले भी काशी और तमिल संगमम का आयोजन किया गया था. जिस दौरान काशी में एक महीने तक अलग-अलग मंत्रालयों के अंतर्गत कार्यक्रम आयोजित किए गए थे, जिसमें दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में लोग काशी पहुंचकर कार्यक्रम में शामिल हुए थे.

’17 से 30 दिसंबर तक होगा काशी तमिल संगमम का आयोजन’
अधिकारियों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार 17 से 30 दिसंबर तक काशी में एक बार फिर काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जाएगा. इस दौरान दक्षिण भारत के लगभग 1400 लोग प्रयागराज, अयोध्या और वाराणसी की ट्रेनों से यात्रा करेंगे. यात्रा में शामिल लोग अलग-अलग समूह के माध्यम से जैसे श्रद्धालु, व्यापारी, अध्यापक किसान सहित सभी वर्गों के लोग यात्रा को पूर्ण करेंगे. अलग-अलग समूह के माध्यम से यात्रा करने वाले लोगों का नाम भी भारत के पवित्र नदियों के नाम पर रखा जाएगा जैसे- गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, सिंधु.

दोनों संस्कृतियों को आपस में जोड़ना उद्देश्य
17 से 30 दिसंबर तक आयोजित होने वाले काशी तमिल संगमम का प्रमुख उद्देश्य दोनों जगह की संस्कृति और संबंधों को और मजबूत करना है. इससे पहले प्रथम बार आयोजित हुए काशी तमिल संगमम में एक महीने तक वाराणसी में अलग-अलग मंत्रालयों के कार्यक्रम आयोजित हुए थे. प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री द्वारा भी इन दोनों अटूट संस्कृतियों व संबंधों के बारे में जिक्र किया गया था. बनारस के अलग-अलग निर्धारित स्थल पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. एक बार फिर आयोजित होने वाले काशी तमिल संगमम को लेकर प्रशासन द्वारा भी तैयारी शुरू कर दी गई है.

नदियों के नाम पर होगा समूहों का नाम
काशी-तमिल संगमम् में हिस्सा लेने वाले तमिलनाडु के सभी सातों समूहों के नाम नदियों के नाम पर रखें गए है. यह गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु, नर्मदा, गोदावरी और कावेरी है. यह संगमम दोनों ही प्राचीन संस्कृतियों के बीच जुड़ाव को मजबूती देने वाला है.

रविवार दिनांक 17-12-2023 से शुरू होकर अगले एक महीने तक करीब 3 हजार तमिल भाषी लोग काशी आएंगे और अपनी तमिल संस्कृति को काशी के लोगों के साथ साझा करेंगे। इस कार्यक्रम का महत्व क्या है, इस बात से समझा जाता है कि इसमें शिरकत करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 19 नवंबर को काशी आ रहे हैं। प्रशासन की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने की तैयारियां तेज कर दी गई है। बीएचयू के एंफीथियेटर ग्राउंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा भी प्रस्तावित है।

17 नवंबर से लेकर 16 दिसंबर तक काशी में तमिल भाषी लोगों का जो जमावड़ा लग रहा है उस कार्यक्रम में एक महीने तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एंफीथियेटर ग्राउंड में तमिलनाडु के अलग-अलग क्षेत्र के लोग अपनी कला और संस्कृति का परिचय काशी के लोगों से कराएंगे। वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा भी संभावित है। इसी जनसभा स्थल को का निरीक्षण करने के लिए वाराणसी के पुलिस कमिश्नर ए सतीश गणेश ने शनिवार को दौरा कर निरीक्षण किया और अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए। 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबतपुर एयरपोर्ट से सीधे हेलीकॉप्टर से बीएचयू के हेलीपैड आएंगे और वहां से कार्यक्रम स्थल पर पहुंचेंगे।

बीएचयू के एंफीथियेटर ग्राउंड में तमिलनाडु से जुड़ी खानपान, क्राफ्ट, वहां के छोटे उद्योग धंधों से जुड़े उत्पाद, कला संस्कृति से जुड़े स्टॉल लगाए जाएंगे। इस पूरे परिक्षेत्र में काशी के लोग आकर के तमिलनाडु के सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के बारे में जानकारी भी ले सकेंगे। इस पूरे एक माह के दौरान यहां पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे जोकि आमजनों के लिए भी होगा। काशी तमिल समागम के नोडल अधिकारी बनाए गए स्टेट आर्कियोलॉजी विभाग के अधिकारी सुभाष चंद्र यादव ने बताया कि हर 2 दिन पर दो सौ से ढाई सौ के लोगों का एक ग्रुप वाराणसी आएगा।

वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम, काल भैरव, केदारनाथ मंदिर के साथ सारनाथ का भ्रमण करेंगे। ये ग्रुप क्रूज से गंगा आरती की विहंगम छटा भी देखेंगे। काशी में विकास कार्यों को देखने के बाद ये ग्रुप प्रयागराज और अयोध्या के लिए रवाना होगा। पूरे महीने में तकरीबन ढाई हजार से 3 हजार तमिल भाषी लोग काशी आएंगे। इस ग्रुप में अलग-अलग क्षेत्र के लोग शामिल होंगे जिसमें छात्र, उद्यमी ,सामाजिक कार्यकर्ता , महिलाएं भी शामिल हैं।

काशी से तमिलनाडु के विशेष जुड़ाव पर परिचर्चा के साथ दोनों स्‍थानों की समानता और महत्ता को भी दर्शाया जाएगा। इस आयोजन को लेकर काशीवासियों के साथ ही यहां कई पीढ़ियों से बसे 2 से ज्‍यादा तमिल परिवारों में गजब का उत्‍साह है। मेहमानों को काशी में बसे लघु तमिलनाडु को भी देखने का मौका मिलेगा। हर दिन शाम को सांस्‍कृतिक संध्‍या में तमिलनाडु से आने वाले कलाकारों के साथ ही देश की विभिन्‍न जगहों से आए कलाकार अपनी प्रस्‍तुति देंगे।

काशी-तमिल समागम में आने वाले मेहमान काशी के हनुमान घाट इलाके में बसे लघु तमिलनाडु को देखेंगे, जहां पीढ़ियों से यहां आकर बसे तमिल परिवार रह रहे हैं। देखा जाए तो काशी का कन्‍याकुमारी से याराना दो हजार साल से भी ज्‍यादा पुराना है। काशी में करीब दो सौ तमिल परिवार रहते हैं, जिनके दादा-परदादा आए और यहीं बस गए। इनमें तमिल के राष्‍ट्रकवि सुब्रह्मण्‍यम भारती के नाती 97 वर्षीय प्रो. के. वी. कृष्‍णन भी हैं। राष्‍ट्रकवि ने 1898 में वाराणसी आकर चार साल पढ़ाई की थी। सुब्रह्मण्‍यम भारती की बुआ भी बनारस में रहती हैं।

तमिलनाडु के नाट्कोट्टई क्षत्रम की ओर से काशी विश्‍वनाथ मंदिर में 210 वर्षों से निर्बाध 3 आरती की जाती हैं। आरती के लिए भस्‍मी और चंदन तमिलनाडु से ही मंगाया जाता है। देश की आजादी से पहले 1926 में बनारस में दक्षिण भारतीय व्‍यंजन परोसने की शुरुआत अय्यर परिवार ने की थी। 1950 के बाद कुछ चुनिंदा सिनेमा हॉल में सुबह का एक शो दक्षिण भारतीयों के लिए चला करता था।

इसके साथ ही यह समागम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह ऐसा दांव साबित हो सकता है, जो 2024 लोकसभा की तैयारी में जुटे राहुल गांधी की कोशिश पर पानी फेर सकता है। 2024 आम चुनावों को लेकर जहां एक और कांग्रेस के राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा करते रहे हैं। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने भी दक्षिण को अपनी प्राथमिकता में रखा हुआ है। इसके लिए भारतीय जनता पार्टी ने कोई यात्रा नहीं बल्कि तमिल भाषियों को उत्तर भारत से मिलाने का प्लान तैयार किया हुआ है। इतना ही नहीं यहां से वह एक विशेष ट्रेन जोकि बनारस और रामेश्वरम के बीच चलेगी, उसे भी मोदी हरी झंडी दिखाएंगे। राजनीतिक विश्लेषक इसे सोची समझी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री मोदी का दक्षिण में पैर पसारने का मास्टर स्ट्रोक मान रहे हैं।

दक्षिण भारत के विशेष कर तमिलनाडु राज्य में अगर बीते एक दशक की राजनीति को देखा जाए तो करुणानिधि और जय ललिता की मृत्यु के बाद एक बड़ा शून्य आ गया है। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक इससे पूरी तरह से इत्तेफाक रखते हैं। वे बताते है कि अगर आप तमिलनाडु के बीते 10 वर्षों के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो जय ललिता और करुणानिधि के मृत्यु के बाद सिर्फ एक बड़ा नाम स्टालिन ही दिखता है। कांग्रेस के पी. चिदंबरम हों या उनके बेटे कार्ति चिदंबरम यह धीरे-धीरे तमिलनाडु की राजनीति में अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। इसके अलावा तमिलनाडु के जितने भी बड़े नेता हैं, वह अपने क्षेत्र विशेष तक सीमित हैं। ऐसे में दक्षिण भारत की राजनीति में एक बड़ा शून्य है और कहीं ना कहीं काशी तमिल संगमम के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसे रिक्त स्थान को भरने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।

बीते वर्ष एक महीने तक काशी तमिल संगमम का कार्यक्रम चला था और इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तमिलनाडु से करीब 30 हजार लोग शिरकत करने पहुंचे थे, जोकि वहां के अलग-अलग जिलों से और अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े हुए लोग थे। इससे एक बहुत ही खूबसूरत संवाद उत्तर-दक्षिण के बीच स्थापित हुआ था। इसके अलावा एक प्रोटोटाइप छवि जो भाजपा की उत्तर भारतीय पार्टी की बनी हुई है, उसे भी तोड़ने में काफी हद तक मदद मिली थी।

काशी विद्यापीठ के समाजशास्त्र विभाग के रिटायर्ड प्रोफेसर रवि प्रकाश पांडे बीते एक साल से प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा दक्षिण भारत के लिए गए कार्यों को पर विशेष नजर बनाए हुए है। प्रोफेसर रवि प्रकाश पांडे बताते है कि अगर आप पिछले वर्ष हुए तमिल संगमम को देखें तो उसमें दक्षिण भारत के लगभग सभी प्रमुख मठों के अधिनियम शिरकत करने पहुंचे थे। इसके अलावा राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में भी बड़ी संख्या में दक्षिण भारत के अधिनियमों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है।

काशी विश्वनाथ में दक्षिण भारत के लोगों की गहरी आस्था है और कहीं न कहीं जिस प्रकार से दक्षिण भारत के नेता लगातार सनातन पर अनर्गल टिप्पणी करते रहते हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा राम और शिव के जरिए दक्षिण भारत के लोगों को यह संदेश बड़े ही अच्छे तरीके से दिया जा रहा है कि दक्षिण के सांस्कृतिक मूल्य और उत्तर के आध्यात्मिक सोच दोनों एक ही सनातन की जड़ है। जहां एक ओर राम के आराध्य शिव हैं तो शिव के आराध्य राम हैं। प्रोफेसर रवि प्रकाश वरिष्ठ पत्रकार रत्नेश राय के इस विचार से भी सहमत दिखे कि कहीं न कहीं तमिलनाडु की राजनीति में जो शून्य है, उस शून्य को भरने में प्रधानमंत्री की यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सोच निश्चित तौर पर 2024 में भाजपा के जनाधार को दक्षिण में बढ़ाने में मदद करेगी।

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