नई दिल्ली। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के आदेश के बाद धार में भोजशाला का एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) सर्वेक्षण 22 मार्च 2024 से शुरू होगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने गुरुवार को भोजशाला परिसर का सर्वे के लिए एक आधिकारिक नोटिस भी जारी किया है। एएसआई का नोटिस मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के आदेश के बाद आया है। ज्ञानवापी की तरह भोजशाला में भी एएसआई सर्वे के में यह स्पष्ट हो जाएगा कि यहां किस तरह के प्रतीक चिन्ह, वास्तु शैली और धरोहर है। आइए जानते हैं क्या है भोजशाला और क्यों चल रहा है इसपर इतना विवाद…
क्या है भोजशाला का इतिहास?
मध्य प्रदेश के धार में हजारों साल पहले राजा भोज का शासन था। यहां राजा भोज ने विद्या के मंदिर की स्थापना की, जिसे बाद में भोजशाला के नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है कि यहां सदियों पहले मुसलमानों ने इसकी पवित्रता भंग कर दी थी और मौलाना कमालुद्दीन की मजार बना दी थी। जबकि आज भी भोजशाला में आज भी देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत में श्लोक लिखे हुए हैं। यहां 18वीं शताब्दी में खोदाई की गई, जिसमें देवी सरस्वती की प्रतिमा निकली। इस प्रतिमा को अंग्रेज लंदन ले गए। फिलहाल यह प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में है और हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में इस प्रतिमा को वापस लेने की मांग की गई है।
121 वर्ष बाद होगा भोजशाला परिसर का सर्वे
22 मार्च 2024 से एएसआई की टीम भोजशाला के 50 मीटर परिक्षेत्र में जीपीआर और जीपीएस तकनीकों से जांच करेगी। एएसआई भोजशाला परिसर में स्थित हर चल-अचल वस्तु, दीवारें, खंभे, फर्श सहित सभी की कार्बन डेटिंग तकनीक से जांच करेगी। मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला परिसर में करीब 121 वर्ष बाद फिर से एएसआई का सर्वे होने जा रहा है। इसके पहले वर्ष 1902-1903 के दौरान एएसआई ने भोजशाला परिसर का सर्वे किया था।
भोजशाला पर विवाद क्यों है?
भोजशाला में पूजा और नमाज को लेकर कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर हैं। एएसआई ने 1902 और 1903 में भोजशाला परिसर की स्थिति का आकलन किया और कोर्ट को बताया कि परिसर की वैज्ञानिक जांच की मांग करने वाली वर्तमान याचिका पर उसे कोई आपत्ति नहीं है। एएसआई ने वर्ष 1902 में हुए सर्वे की जांच रिपोर्ट भी कोर्ट में बहस के दौरान प्रस्तुत की थी। एएसआई की रिपोर्ट में फोटोग्राफ भी संलग्न किए थे। इनमें भगवान विष्णु और कमल स्पष्ट नजर आ रहे हैं। एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया था कि भोजशाला में मंदिर के स्पष्ट संकेत मिले हैं। इसके बाद से यह विवाद काफी बढ़ गया और धार में कई बार सम्प्रदायक हिंसा भी हुई।
भोजशाला में पूजा और नमाज की अनुमति कैसी मिली?
भोजशाला एक एएसआई-संरक्षित स्मारक है, जिसे हिंदू देवी सरस्वती का मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोग इसे कमल मौला मस्जिद मानते हैं। 7 अप्रैल 2003 को जारी एएसआई के एक आदेश के अनुसार, हिंदुओं को हर मंगलवार को भोजशाला परिसर के अंदर पूजा करने की अनुमति है, जबकि मुसलमानों को हर शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा करने की अनुमति है।