परिवारवाद की डगर से राजनीति में आए नेताओं को क्या  मिलेगा जनता का प्यार ?

गोण्डा : पारिवारिक विरासत की लड़ाई लड़ रहे तीन मुख्य प्रत्याशी भले ही केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार भाजपा परिवारवाद को चुनावी मुद्दा बनाती रही हो लेकिन उत्तर प्रदेश के लोकसभा क्षेत्र गोंडा और कैसरगंज में परिवारवाद की राजनीति खूब फल-फूल रही है।कई नेताओं और नौकरशाहों की नई पीढ़ियां राजनीति में आ चुकी हैं और जीत की ख्वाहिश से बेकरार हैं।वहीं भाजपा के सांसद भी अपनी पीढ़ियों को राजनीति में मुकाम दिलाने के लिए जी-जान से लगे हुए हैं यह बात

प्रधानमंत्री मोदी अपने चुनाव रैली के दौरान मुख्य विपक्षी दल सपा और कांग्रेस पर परिवारवाद की राजनीति के खूब आरोप लगाते हैं।यदि लोकसभा कैसरगंज भाजपा के बाहुबली सांसद बृजभूषण शरण सिंह की बात करें तो उनका बेटा प्रतीक भूषण शरण सिंह सदर विधानसभा क्षेत्र से विधायक है।चर्चा है कि दूसरा छोटा बेटा कर्ण  भूषण शरण सिंह कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के

टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।वहीं पू्र्व केंद्रीय मंत्री और मुलायम सिंह यादव के घनिष्ठ सहयोगी रहे बेनी प्रसाद वर्मा की पोती श्रेया वर्मा भी गोंडा लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं इनके पिता राकेश वर्मा सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं।श्रेया वर्मा सपा महिला सभा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं।

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लोकसभा गोंडा, कैसरगंज परिवारवाद तक ही सीमित

ये चमक ये दमक फुलवन मा महक…सब कुछ सरकार तुम्हई से है…। कुछ सियासतदानों के लिए फुलवन का मतलब थोड़ा संकुचित होकर परिवारवाद तक सीमित नजर आता है। मसीहा हो या फिर माफिया, सबकी चाहत कुनबा ही होता है, जिसके सहारे वे अपनी शक्ति का विस्तार कर सकें। गोंडा और कैसरगंज लोकसभा की सियासत में तमाम ऐसे सियासतदां उभरे,जिन्होंने तमाम आदर्शवादी विचारों के बावजूद अंत में परिवार को ही चुना।नेतागिरी हो या माफियागिरी, जहां जरूरत पड़ी परिवार को ही सुरक्षित करने में लगे रहे।गोंडा और कैसरगंज की सियासत में ऐसे ढेरों किस्से भरे पड़े हैं। सियासतदां कैसे अपने परिवार को आगे बढ़ा रहे हैं, बता रहे हैं।वही सत्ताधारी भाजपा के नेता परिवारवाद पर हमला बोलना शुरू करते हैं,तो विपक्षी नेता उसके ही कई नेताओं के नाम लेकर पलटवार करते हैं।भाजपा की ओर से परिवारवादी पार्टियां कहकर संगठन और सरकार के शीर्ष पद एक ही परिवार को विरासत में मिलने का उदाहरण देकर हमला बोला जाता है।…तो विपक्षी नेता भाजपा के कई नेताओं के परिवार में सांसद, विधायक, प्रमुख या जिला पंचायत अध्यक्ष गिनाकर हमला बोलने लगते हैं।इस चुनाव में भी ऐसे परिवारों की धूम है। एक ही परिवार से एक साथ कई लोगों को टिकट देने से परहेज के बावजूद भाजपा पूरी तरह से परिवारवाद से मुक्त नहीं हो पा रही है।और पूरी तरह परिवारवाद हावी है।इसी तरह मुख्य विपक्षी पार्टियां परिवारवाद की कीमत चुकाती साफ दिख रही हैं।पर, अपने परिवार का मोह छोड़ नहीं पा रही हैं।

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             बृजभूषण शरण सिंह का परिवार 

बृजभूषण शरण सिंह गोंडा,बलरामपुर (पूर्व संसदीय क्षेत्र) व कैसरगंज मिलाकर छह बार सांसद चुने गए।जेल में थे तो पत्नी केतकी सिंह सांसद बनीं।भाजपा के अलावा वह सपा से भी सांसद रहे हैं।महिला पहलवानों के शोषण से जुड़े आरोपों के बाद पहली बार उन्हें टिकट के लाले पड़े हैं। बेटा प्रतीक भूषण सिंह गोंडा सदर से विधायक हैं।सूत्र बता रहे हैं कि घर के परिवार के ही ब्लॉक प्रमुख भी हैं।वही अब उनके छोटे बेटे करण भूषण शरण सिंह को  बीजेपी कैसरगंज लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बना रही है।

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                 कुंवर आनंद सिंह का परिवार  

गोंडा के भाजपा सांसद कीर्तिवर्धन सिंह उर्फ़ राजा भैया मनकापुर राजघराने के उत्तराधिकारी हैं।इनके पिता 

पिता कुंवर आनंद सिंह कई बार कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे और एक बार सपा के टिकट पर गौरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने और मुलायम सिंह की सरकार में कृषि मंत्री बने रहे।

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