भाजपा के लिए चैलेंज बने वीरेन्द्र प्रधान

बाराबंकी। बाराबंकी लोकसभा सीट पर पिछड़ों की निर्णायक भूमिका हमेशा से रहती है। इनमें भी कुर्मी मतदाताओं की बड़ी भूमिका होती है। जिले में यादव और कुर्मियों के बाद ओबीसी में तीसरा सबसे बड़ा जाति समूह मौर्य समाज का है। ओबीसी के तहत आने वाला मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी समाज का वोट किसी एक पार्टी का वोट बैंक कभी नहीं रहा। यह समाज चुनाव दर-दर चुनाव अपनी निष्ठा को बदलता रहा है। आजादी के बाद कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा तो लोकदल और जनता दल के भी साथ गया। इसके बाद सपा और बसपा के बीच अलग-अलग क्षेत्रों में बंटता रहा और 2017 में बीजेपी को 90 फीसदी मौर्य समाज का वोट मिला था, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में मौर्य वोट का कुछ हिस्सा सपा को भी मिला। सूत्र बताते है कि 18वीं लोकसभा चुनाव में पीडीए के साथ-साथ मौर्य समाज की भी इंडिया गठबंधन में भागीदारी सुनिश्चित हुई है। जो कभी भाजपा अपना आधार वोट हुआ करती थी। जिसका जीता जागता उदाहरण बाराबंकी संसदीय सीट पर इंडिया गठबंधन से कांग्रेस प्रत्याशी तनुज पुनिया की अप्रत्याशित जीत के तौर पर देखने को मिला। इस जीत का जितना श्रेय पीडीए को जाता है उतना ही श्रेय मौर्य समाज को भी जाता है।

जिले में मौर्य समाज के अगुआ और समाजवादी पार्टी के जिला प्रवक्ता वीरेन्द्र मौर्य ’प्रधान’ की मेहनत ने यह साबित किया कि राजनीति में फैसले भावनाओ में बहकर नही लिए जाते। जिसके पास संगठन हो, समर्थकों का एक बड़ा वर्ग हो, हमारे विचार के नज़दीक हो, लीडर हो, संसाधन हों और विज़न हो खासकर अपनी मिट्टी से लैस विज़न, तो उसको ही आगे बढ़ना चाहिए। जबकि भाजपा के पास जिलाध्यक्ष अरविन्द मौर्य समेत बहुत से मौर्य समाज के नेता हैं जिन्होंने इस चुनाव में भाजपा की जीत के लिए एड़ी चोटी जोर लगाया लेकिन इन सबके बावजूद भाजपा को चुनौती और पराजय दोनों ही वीरेन्द्र प्रधान ने दी। उन्होंने साबित किया कि आने वाले समय में वह भाजपा के लिए चौलेंज हो सकते है। जिस मेहनत और ईमानदारी से उन्होंने इंडिया गठबंधन प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित की उससे उनका कद समाजवादी पार्टी में और ज्यादा बढ़ गया। बहरहाल, वीरेन्द्र प्रधान गैर समाजवादी दलों के विरुद्ध मुखर होने वाले, सपा की रीति नीति, विचार और सिद्धांतों को लेकर हमेशा सुर्खियों में बने रहने वाले सपा प्रवक्ता है। जिनकी बेबाक शख्सियत छात्र राजनीति से ही सामाजिक मुद्दों से जुड़ गई थी। संगठन को जब भी विचारों के पैनेपन की जरूरत महसूस होती है वीरेंद्र प्रधान समाजवादी पार्टी का पक्ष रखते हुए विरोधियों पर हावी होते नज़र आते हैं।

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