जांच के घेरे में आ सकते हैं तत्कालीन दो जिलाधिकारी

 हमीरपुर। सपा प्रमुख अखिलेश यादव को सीबीआई के समन भेजे जाने के बाद जिले में एक बार फिर हलचल शुरू हो गई है। क्योंकि जिले में सीबीआई ने वर्ष 2016 से 2020 के बीच चार वर्षों में नौ बार आकर जांच कर चुकी है। इस दौरान 231 लोगों को बुलाकर बयान भी लिए जा चुके हैं।

इसकी रिपोर्ट बनाकर वह मुख्यालय ले गई थी। सीबीआई की जांच का मुख्य बिंदु जिले में चलने वाला सिंडीकेट (मौरंग खनन की अवैध वसूली के बनाया समूह) है।

सिंडीकेट वसूली को बताया था जांच का बिंदु

जनहित याचिका दायर करने वाले स्थानीय अधिवक्ता विजय द्विवेदी ने बताया कि पूर्व में आई सीबीआई टीम ने जांच का प्रथम बिंदु ही सिंडीकेट वसूली को बनाया था। इस बार में मुझसे भी जानकारी ली गई थी। बताया कि वर्ष 2007 से 2016 तक जिले में अंधाधुंध अवैध मौरंग खनन हुआ।

अरबों रुपये की तलाश में है सीबीआई

इस दौरान जिले से निकलने वाले लगभग साढ़े छह हजार ट्रक व डंपर से प्रति गाड़ी 15 हजार रुपये की अवैध वसूली की जाती थी। यह पैसा लक्ष्मीबाई तिराहे स्थित एक मकान में जमा होकर बाद में मेटाडोर के माध्यम से ठिकाने लगा दिया जाता था। सीबीआई को इसी अरबों रुपये की तलाश है। इसके लिए टीम ने हमीरपुर से लेकर लखनऊ के बीच पड़ने वाले टोल प्लाजा की फुटेज भी निकलवाई थी।

जांच के घेरे में आ सकते हैं तत्कालीन दो जिलाधिकारी

जनहित याचिकाकर्ता विजय द्विवेदी ने बताया सपा सरकार में हुए खनन घोटाले की अपील पर उच्च न्यायालय ने 63 मौरंग पट्टों को अवैध घोषित किया था। उन्होंने बताया 13 अप्रैल 2012 से 8 जून 2014 तक जिले में डीएम रहीं बी चंद्रकला ने 53 मौरंग खनन पट्टे किए थे। वहीं 9 जून से 11 अक्टूबर 2014 तक डीएम भवनाथ ने चार पट्टे किए। इसके बाद 12 अक्टूबर 2014 से 27 मार्च 2016 तक बतौर डीएम रहीं संध्या तिवारी ने छह पट्टे किए।

हाई कोर्ट ने भी मांगा था जवाब

विजय द्विवेदी ने बताया कि सीबीआई ने तत्कालीन डीएम बी. चंद्रकला के खिलाफ रिपोर्ट पहले ही दर्ज कर ली थी। इसे लेकर बी. चद्रकला के अलावा यह दोनों जिलाधिकारियों भी जांच के घेरे में हैं, क्योंकि हाई कोर्ट ने सभी पट्टे निरस्त कर खनन रोकने के आदेश दिए थे। इसके बावजूद अधिकारी खनन का कार्य कराते रहे हैं। जिस पर हाई कोर्ट ने नाराजगी जता आदेश जारी कर जवाब मांगा था। इस पर जिला प्रशासन ने हलफनामा देकर खनन न होना बताया था।

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