नीतीश कुमार के नेशनल ड्रीम को उड़ान देने के लिए जेडीयू ने दो पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश और झारखंड को चुना

लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे पांच राज्यों के चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. पांच राज्यों की सरकार को लेकर तस्वीर साफ होने के बाद अब सियासी दलों का फोकस फाइनल यानी 2024 की चुनावी लड़ाई पर है. 2024 के चुनाव को लेकर बड़े जोर-शोर से विपक्षी गठबंधन की नींव रखी गई थी जिसके भविष्य को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं. इन सबके बीच अब इंडिया गठबंधन की नींव रखने के लिए पटना से दिल्ली और कोलकाता से चेन्नई तक एक कर देने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नेशनल ड्रीम पर निकलने की तैयारी में हैं.

नीतीश कुमार के नेशनल ड्रीम को उड़ान देने के लिए जेडीयू ने दो पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश और झारखंड को चुना है. सीएम नीतीश की इसी महीने उत्तर प्रदेश में रैली होगी और अगले महीने यानी जनवरी में वह झारखंड में दूसरी रैली को संबोधित करेंगे. जानकारी के मुताबिक नीतीश कुमार की पहली रैली 24 दिसंबर को वाराणसी और दूसरी रैली 21 जनवरी को हजारीबाग में होगी. इसे लेकर जेडीयू ने तैयारियां शुरू कर दी हैं.

नीतीश ही होंगे गठबंधन के नेता?
नीतीश की रैली के कार्यक्रम सामने आने के बाद अब ये चर्चा भी शुरू हो गई है कि क्या बिहार के सीएम ही पीएम के लिए विपक्षी गठबंधन का चेहरा होंगे? ताजा सियासी हालात, टीएमसी-सपा जैसे दलों की कांग्रेस को लेकर नाराजगी, हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस की हार के बाद उसकी स्वीकार्यता को लेकर उठ रहे सवाल और अब नीतीश कुमार की रणनीति, ये सभी बातें इस चर्चा को और हवा दे रही हैं

दरअसल, नीतीश कुमार ने 2024 की चुनावी जंग के लिए अपने नेशनल कैंपेन का शंखनाद करने के लिए उत्तर प्रदेश के जिस शहर को चुनाव है, वह है वाराणसी. वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निर्वाचन क्षेत्र भी है. पीएम मोदी 2014 और 2019, दोनों ही चुनाव में वाराणसी सीट से बड़ी जीत दर्ज कर संसद पहुंचे. ऐसे में नीतीश के पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र से चुनावी हुंकार भरने को राष्ट्रीय स्तर पर मैसेज देने की रणनीति से जोड़कर देखा ही जा रहा है, इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के लिए भी बड़ा संदेश माना जा रहा है

कांग्रेस के लिए बड़ा संदेश कैसे
अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि नीतीश कुमार अगर वाराणसी में रैली कर चुनाव अभियान का आगाज करने जा रहे हैं तो इसमें कांग्रेस के लिए क्या संदेश हो सकता है? दरअसल, सियासत में संकेत की भाषा का अलग ही महत्व होता है. नीतीश की वाराणसी रैली कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के बाकी घटक दलों के लिए बड़ा मैसेज है. यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय की कर्मभूमि भी वाराणसी ही है. अजय राय वाराणसी की पिंड्रा विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं और 2009, 2014 और 2019 में वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़ चुके हैं. 2009 में अजय राय सपा के टिकट पर उतरे थे. तब उन्हें बीजेपी के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी ने हरा दिया था तो वहीं 2014 और 2019 के चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे. हालांकि, दोनों ही बार अजय राय को पीएम मोदी ने बड़े अंतर से शिकस्त दी

नीतीश की रैली को सिर्फ पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र में है, इसी नजरिए से नहीं बल्कि इस नजरिए से भी देखा जा रहा है कि ये अजय राय और कांग्रेस के लिए भी कड़ा संदेश है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सपा और कांग्रेस के रिश्ते अभी तल्ख चल रहे हैं, खासकर यूपी में. नीतीश कुमार भी इंडिया गठबंधन की शिथिल पड़ी गतिविधियों को लेकर कांग्रेस के प्रति अपनी नाराजगी जता चुके हैं. मध्य प्रदेश चुनाव में अंतिम समय तक बातचीत के बावजूद कांग्रेस ने सपा के लिए एक भी सीट नहीं छोड़ी थी जिसे लेकर अखिलेश ने नाराजगी जताई थी. अखिलेश पर पलटवार करते हुए अजय राय ने यह तक कह दिया था कि मध्य प्रदेश की जनता केवल हाथ का पंजा जानती है, साइकिल नहीं. इससे पहले अजय राय ने उत्तराखंड के बागेश्वर उपचुनाव में कांग्रेस की हार के लिए भी सपा को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि हमने घोसी में बड़ा दिल दिखाया था लेकिन सपा ने बागेश्वर में बड़ा दिल नहीं दिखाया

नीतीश के लिए ड्राइविंग सीट पर आने का सही मौका
वरिष्ठ पत्रकार अशोक ने कहा कि इस समय कम से कम कांग्रेस, बीजेपी को टक्कर देने की स्थिति में नहीं दिख रही. हिंदी पट्टी के तीन राज्यों की हार ने भी पार्टी के इंडिया गठबंधन की ड्राइविंग फोर्स बनने की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है, क्षेत्रीय दलों के बीच उसकी स्वीकार्यता को नुकसान पहुंचाया है. नीतीश कुमार ने विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. कम से कम संयोजक जैसे पद पर उनका दावा तो बनता ही था लेकिन पहली बैठक के बाद कांग्रेस ही इस गठबंधन का नेतृत्व करती नजर आई. अब तीन राज्यों में कांग्रेस की हार के बाद नीतीश कुमार और जेडीयू को लग रहा है कि ड्राइविग सीट पर फिर से आने का यही सही समय है

सपा हो या आम आदमी पार्टी, कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के किसी भी घटक दल को राजस्थान, मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ में एक भी सीट नहीं दी जहां वह मजबूत है. इससे क्षेत्रीय दलों के प्रति कांग्रेस के रवैये पर भी सवाल उठ रहे थे. टीएमसी ने भी इसे लेकर नाराजगी जताई थी. दूसरी तरफ, जेडीयू भी समय-समय पर नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताते रहे हैं. लंबे समय तक अलग-अलग प्रकृति वाले दलों के साथ गठबंधन सरकार चलाने की बात हो या बेदाग छवि, नीतीश की पीएम उम्मीदवार के लिए दावेदारी को लेकर कई तर्क दिए जाते रहे हैं.

कहा तो ये भी जाता है कि आरजेडी और जेडीयू का गठबंधन ही इसी बात पर हुआ था कि नीतीश के बाद तेजस्वी सीएम बनेंगे. नीतीश जब तक बिहार की सियासत में सक्रिय हैं, तब तक इस गठबंधन में तेजस्वी का सीएम बनने की संभावनाएं ना के बराबर ही हैं. ऐसे में आरजेडी की भी यह कोशिश हो सकती है कि नीतीश बिहार छोड़ अब दिल्ली की सियासत में एक्टिव हों. बहरहाल, नीतीश ने वाराणसी से 2024 के चुनावी रण के लिए शंखनाद का ऐलान कर दिया है तो देखना होगा कि उनका नेशनल ड्रीम कितनी उड़ान भर पाता है

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