इस बार प्रहसन में!

मतदाता भी बार-बार ठगे जाने के कारण ऐसी घटनाओं पर नाराज नहीं होते- बल्कि उनमें कौतुक और संबंधित घटनाओं से अपना मनोरंजन कर लेने का भाव जगता है। बिहार की ताजा घटना ने फिलहाल उनका पूरा मनोरंजन किया है।

एक बहुचर्चित कथन है कि इतिहास अपने को दोहराता है, लेकिन पहली बार ट्रेजेडी में और दूसरी बार प्रहसन के रूप में। इसका अर्थ यह है कि इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं से जब लोग सबक नहीं लेते, तो उन्हें दोबारा वैसी ही त्रासदी का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद लोग सीख नहीं लेते, तो फिर वैसी घटनाएं प्रहसन के रूप में दोहराई जाती हैं, क्योंकि तब लोग सबक ना सीखने की अपनी भूल के कारण सहानुभूति के नहीं, बल्कि तरस के पात्र बन जाते हैं। बिहार के विभिन्न राजनीतिक दलों ने- जब खुद को छला गया महसूस किया, तब उन्होंने नीतीश कुमार को पलटू राम का नाम दिया। लेकिन जब नीतीश प्रतिद्वंद्वी दल को छल कर साथ आ मिलते हैं, तो उन्हें गले लगाने में वे पार्टियां पूरा उत्साह दिखाती रही हैं। इसलिए बिहार में हुए ताजा घटनाक्रम को एक प्रहसन के रूप में देखा जाएगा। इससे संभव है कि लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अपना जातीय समीकरण बनाने में सहायता मिले, लेकिन जिस नेता के लिए सारे दरवाजे बंद हो गए थे, उसे फिर से राज्य में अपने गठबंधन का नेता मान कर पार्टी ने अपनी साख को क्षीण किया है।

दरअसल, कहा जा सकता है कि वह भी इस प्रहसन का एक प्रमुख पात्र बन गई है। उधर राष्ट्रीय जनता दल और उसकी सहयोगी पार्टियां भी हास्य का पात्र बनी हैं। कुछ रोज पहले तक भाजपा का साथ छोड़ कर आए नीतीश कुमार को समाजवादी एकता और चाचा-भतीजा का पुनर्मिलन बताने वाले नेताओं के साथ आखिर आज किसे हमदर्दी होगी! यह सारा घटनाक्रम भारतीय राजनीति के किसी बड़े मकसद से दूर जाते हुए विशुद्ध रूप से जोड़-तोड़ में तब्दील हो जाने की शायद सबसे बेपर्द मिसाल है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि राजनीति के इस स्वरूप को बेनकाब कर कोई नई शुरुआत करने वाली शक्तियों का पूरा अभाव बना हुआ है। इसलिए मतदाता भी बार-बार ठगे जाने के कारण ऐसी घटनाओं पर नाराज नहीं होते- बल्कि उनमें कौतुक और संबंधित घटनाओं से अपना मनोरंजन कर लेने का भाव जगता है। बिहार की घटनाओं ने फिलहाल उनका पूरा मनोरंजन किया है।

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