गांव की संस्कृति से विलुप्त हो गया फाग का राग

इन्हौना अमेठी । होली का त्योहार आते ही कभी ढोलक की थाप व मंजीरों पर चारों ओर फाग गीत गुंजायमान होने लगते थे, लेकिन आधुनिकता के दौर में ग्रामीण क्षेत्रों की यह परंपरा लुप्त सी हो गई है।

दो-ढाई दशक पहले फागुन महीने में गांवों में समूह बनाकर गाया जाने वाला फाग गीत व गाने वालों की टोलियां कहीं दिखाई नहीं देती। जोगी जी धीरे -धीरे .. , मोहन खेले होली हो .., होली खेले रघूवीरा अवध में .., होली के दिन सब मिल जाते है .. आदि गीत अब सुनने को नहीं मिलते। अश्लील होली गीतों के आगे अब होली की उमंग भी गायब होने लगी है। अब ये पुराने दिनों की तरह सिर्फ यादें बनकर रह गई है। सिंहपुर ब्लाक के इन्हौना कस्बे के प्रतिष्ठित व्यक्ति पूर्व प्रधान सियाराम दत्त मिश्रा उर्फ मांझिल ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान बताया कि फागुन महीने की शुरुआत होते ही गांवों में ढोल मजीरे की धुन पर फाग गीत गाने वालों की लंबी टोलियां दिखाई पड़ती थी। होली के उमंग में डूबे लोग टोलियां बनाकर घर-घर जाकर फाग गीत गाते देखे जाते थे। भारतीय संस्कृति से सराबोर होकर लोग सारे द्वेष कटुता को भूल अपने आप को एक टोली में समाहित कर आपसी भाईचारा का संदेश देते थे। मिलजुलकर गाया जाने वाला फाग गीत गांव की मिट्टी की खुशबू प्रदान करती थी। एक महीना पहले से हीं होली के आने की खुशी से लोग झूमने लगते थे। इन गीतों में भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक तथा पारंपरिक रीति -रिवाजों की झलक देखने को मिलता था। ये गीत हमारी लोक संस्कृति की पहचान होती थी। समय के साथ सब कुछ बदलने लगा। रिश्ते औपचारिक होते गए और होली की पुरानी परंपरा बदलने लगी। होली के रस्म अदायगी के तौर पर यह गीत कहीं कहीं सुनने को मिलते हैं। पहले लोगों का समूह गांव के चौपाल पर या मंदिर में देर रात्रि तक फाग गीत गाते थे। रात भर सुनाई देने वाले ये फाग गीत अब पुराने दिनों की बात हो गई हैं। अब गांवों में पुरानी होली कहां देखने को मिलती है। अब पुराने होली गीत की जगह अश्लील भोजपुरी गीत हावी हो गई है। न हीं गांव का चौपाल दिख रहा, बूढ़े-बुजुर्गों का जमघट गायब है, न हीं ढोलक की थाप सुनाई देती और न हीं फाग गीत गाने वाले लोग दिख रहे हैं। फागुनी मिठास गायब हो चुकी है। परिणामस्वरूप अब तो लोग गुलाल लेकर दरवाजे पर भी नहीं बैठते। गांवों की मिट्टी से भारतीय संस्कृति पर आधारित फाग गीतों की धुन अब सुनाई नहीं देती। हमारी लोक परंपरा को समाहित किए हुए ये फाग गीत अब विलुप्त होते जा रहे है।

इन्हौना में होली के आठौ पर होता है फगुआ।

अमेठी जिले में होली के आठौ में इन्हौना स्थिति ज्वाला देवी मंदिर में आज भी फाग गायक फगुआ लोकगीत का गायन करते हैं फगुआ लोकगीत गाकर यहां अबीर गुलाल लगा कर सभी लोग होली मिलन करते हैं आजादपुर गांव के बुजुर्ग भुललन मौर्य, राम बरन गुप्ता,राज कुमार यादव, बच्चूलाल यादव, कृष्ण कुमार गुप्ता, नन्हू गुप्ता गिरजा प्रसाद चतुर्वेदी (भाई जी) सहित केंद्रीय दुर्गा पूजा समिति इन्हौना के पदाधिकारियों दिनेश सिंह, गुड्डू चौरसिया, मनीष गुप्ता, सियाराम दत्त मिश्रा, आशुतोष गुप्ता, अमरीष गुप्ता, राम किशोर तिरवेदी उर्फ बब्लू गोविंद गुप्ता, आलोक त्रिपाठी, पप्पू यज्ञसैनी, रमेश वर्मा, मनीष तिरवेदी, नरोत्तम सिंह, उत्तम सिंह, प्रशांत सिंह, आदि द्वारा बड़े ही धूमधाम से फगुआ लोकगीत की परंपरा का निर्वहन कराया जाता है।

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