फाइलेरिया उन्मूलन अभियान को लेकर ‘प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण’ हुआ संपन्न

  • 10 फरवरी से 28 फ़रवरी तक चलेगा ट्रिपल ड्रग थेरेपी ‘आईडीए’ अभियान
  • स्वास्थ्य टीम घर-घर जाकर अपने समक्ष खिलाएगी फाइलेरिया की दवा

बलिया। राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत जनपद में 10 फरवरी से फाइलेरिया उन्मूलन अभियान ट्रिपल ड्रग थेरेपी ‘आईडीए’ (आइवर्मेक्टिन, डीईसी, अल्बेंडाजॉल) संचालित किया जाएगा। इस क्रम में बुधवार को मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय सभागार में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. विजय पति द्विवेदी की अध्यक्षता में प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण (टीओटी) आयोजित हुआ। प्रशिक्षण में जनपद के सभी 17 ब्लॉकों एवं अर्बन के अधीक्षक, एमओआईसी, बीसीपीएम, बीपीएम, वीबीडी नोडल अधिकारी को प्रशिक्षित किया गया।


मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि इस बीमारी के दुष्परिणाम कई वर्षों के बाद देखने को मिलते हैं। शुरूआत में इसके कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। फाइलेरिया एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति में मच्छर के काटने से फैलता है।
इस बीमारी से हाथ, पैर, स्तन और अंडकोष में सूजन पैदा हो जाती है। सूजन के कारण फाइलेरिया प्रभावित अंग भारी हो जाता है और दिव्यांगता जैसी स्थिति बन जाती है। प्रभावित व्यक्ति का जीवन अत्यंत कष्टदायक एवं कठिन हो जाता है। सीएमओ ने कहा कि फाइलेरिया, एक लाइलाज बीमारी है। इस बीमारी से बचाव के लिए वर्ष में एक बार दवा खाना जरूरी है। उन्होंने प्रशिक्षण ले रहे सभी प्रतिभागियों को निर्देशित किया कि अपने ब्लॉक में विधिवत कार्य योजना बनाते हुए कार्यक्रम को समुचित रूप से संचालित करें। उसका पर्यवेक्षक करें और ससमय रिपोर्ट जिला मलेरिया अधिकारी कार्यालय में प्रेषित करें।

कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. अभिषेक मिश्रा ने कहा कि जनपद में 10 फरवरी से 28 फ़रवरी तक फाइलेरिया उन्मूलन के लिए ट्रिपल ड्रग थेरेपी आईडीए अभियान चलाया जायेगा। इस अभियान के अन्तर्गत दो वर्ष से कम आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और गंभीर बीमारियों से ग्रसित व्यक्तियों को छोड़कर सभी को फाइलेरिया से सुरक्षित रखने के लिए उम्र एवं लंबाई के सापेक्ष निर्धारित फाइलेरिया से बचाव की दवा घर-घर जाकर स्वास्थ्य कर्मी अपने सामने खिलाएँगे एवं किसी भी स्थिति में दवा का वितरण नहीं किया जायेगा। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होने वाला एक संक्रामक रोग है जिसे सामान्यता हाथीपाँव के नाम से भी जाना जाता है। पेशाब में सफेद रंग के द्रव्य का जाना जिसे काईलूरिया भी कहते हैं जो फाइलेरिया का ही एक लक्षण है। इसके प्रभाव से पैरों व हाथों में सूजन, पुरुषों में हाइड्रोसील (अंडकोष में सूजन) और महिलाओं में ब्रेस्ट में सूजन की समस्या आती है। फाइलेरिया होने के बाद इसका कोई इलाज नहीं है।

इनसेट

जिले में अब तक फाइलेरिया के 4913 मरीज
बलिया।
जिला मलेरिया अधिकारी सुनील कुमार यादव ने बताया कि जनपद में अब तक कुल फाइलेरिया के 4913 मरीज है। जिसमें हाइड्रोसील के 644 मरीजों में से 170 मरीजों का सफल ऑपरेशन हो चुका है। लिम्फोडीमा के 4269 मरीजों में से 3546 मरीजों में एमएमडीपी किट का वितरण हो चुका है। उन्होंने बताया कि सामान्य लोगों को इन दवाओं के खाने से किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। अगर किसी को दवा खाने के बाद उल्टी, चक्कर, खुजली या जी मिचलाने जैसे लक्षण होते हैं तो यह इस बात का प्रतीक है कि उस व्यक्ति के शरीर में फाइलेरिया के कीटाणु मौजूद हैं, जोकि दवा खाने के बाद कीटाणुओं के मरने के कारण उत्पन्न होते हैं। उन्होंने बताया कि साल में केवल एक बार फाइलेरिया रोधी दवा खाने से फाइलेरिया के संक्रमण से बचा जा सकता है।

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