खतरा बढ़ा या घटा?

आईसीएमआर के मुताबिक कोविड-19 के बाद दिल के मरीजों में 14 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। अगर इसकी वजह सिर्फ संक्रमण का दीर्घकालिक प्रभाव है, तो फिर वैक्सीन से खतरा घटा, ऐसा कहने का क्या आधार बनता है, इसे आईसीएमआर को स्पष्ट करना चाहिए।

चूंकि मामला लोगों की जिंदगी और सेहत से जुड़ा है, इसलिए इस पर समाज में बहस खड़ी हो जाना उचित ही है। बहस की पृष्ठभूमि नवरात्रि के दौरान गुजरात में गरबा के दौरान हार्ट अटैक होने की कई घटनाएं रोशनी में आने से बनी। खबरों में बताया गया कि इस वर्ष गरबा के दौरान 473 लोगों को दिल के दौरे पड़े, जिनमें से अनेक की मौत हो गई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने इन दुखद घटनाओं का संबंध कोरोना संक्रमण से बताया। उन्होंने आईसीएमआर का हवाला देते हुए कहा कि जिन लोगों को गंभीर कोविड संक्रमण का शिकार हुए अभी ज्यादा वक्त ना गुजरा हो, उन्हें ज्यादा शारीरिक मेहनत नहीं करनी चाहिए। ऐसे लोगों को तेज दौडऩे या श्रमसाध्य व्यायाम से बचना चाहिए। गौरतलब है कि दुनिया में कोविड महामारी के बाद दिल का दौरा पडऩे के मामलों में उछाल आया है। बहुत से विशेषज्ञ इसकी वजह कोविड वैक्सीन को बताते हैं। आरोप है कि जल्दबाजी में कंपनियों ने वैक्सीन की सुरक्षा संबंधी पूरी जांच नहीं की, जिसके दीर्घकालिक साइड इफेक्ट्स अब लोगों को भुगतने पड़ रहे हैँ।

हालांकि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अपनी शोध रिपोर्ट में वैक्सीन का बचाव किया है। उसने कहा है कि कोरोना के टीके से युवाओं में अचानक मौत का खतरा नहीं बढ़ा है, बल्कि वैक्सीन के प्रभाव से ऐसा खतरा घटा है। चूंकि हार्ट अटैक से युवाओं की मौत के मामले भारत में भी बढ़े हैं, इसलिए आईसीएमआर ने यह अध्ययन किया था। उसकी रिपोर्ट में कहा गया कि जिन लोगों को गंभीर संक्रमण का सामना करना पड़ा है, उन्हें एक या दो साल तक अत्यधिक परिश्रम नहीं करना चाहिए। यह शोध रिपोर्ट अभी तक कहीं प्रकाशित नहीं हुई है। लेकिन स्वास्थ्य मंत्री ने इसका सार्वजनिक रूप से हवाला दे दिया। इसीलिए इस पर विवाद खड़ा हुआ है। खुद आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 के बाद दिल के मरीजों में 14 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। अगर इसकी वजह सिर्फ संक्रमण का दीर्घकालिक प्रभाव है, तो फिर वैक्सीन से खतरा घटा, ऐसा कहने का क्या आधार बनता है, इसे भी आईसीएमआर को स्पष्ट करना चाहिए।

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