अज्ञानता और अंधकार के विरूद्ध क्रांति का उद्घोषक है शिक्षक

रमा निवास तिवारी

शिक्षक की भूमिका किसी समाज के लिए साधारण नही हो सकती है,एक शिक्षक के कन्धों पर देश और समाज के चरित्र निर्माण की जिम्मेदारी रहती है।किसी राष्ट्र के उन्नति या पतन के मार्ग पर जाना वहां के शिक्षकों की मेहनत और परिश्रम पर निर्भर करता है कि उन्होंने कैसे नागरिकों का निर्माण किया है।बालक की आंखों में ज्ञान की ज्योति को स्थापित करने वाला शिक्षक जब अपनी जिम्मेदारियों से विमुख होने लगे तो समाज में विसंगतियों के बीज पनपते देर नही लगती है।शिक्षा के द्वारा ही समाज के दोषों का परिमार्जन संभव है।इसलिए एक शिक्षक समाज की उत्कृष्ट सर्जना का सबसे बड़ा माध्यम बनता है।शिक्षक राष्ट्रनायक की भांति होता है जो राष्ट्र की सुन्दर तस्वीर बनाने में अपने ज्ञान की तूलिका से सद्गुणों के रंग भरता है।

शिक्षा के बगैर कुछ भी सम्भव नही है।दूसरे अर्थों में कहें तो शिक्षा ही अच्छे बुरे का बोध कराती है।जीवन का कोई भी क्षेत्र हो शिक्षा के बदौलत ही उसमें कामयाबी के झण्डे गाड़े जा सकते हैं।शिक्षा केवल स्कूलों की पढ़ाई ही नही है अपितु जीवन के हर क्षेत्र की समस्याओं का निवारण उस क्षेत्र से जुड़ी शिक्षा से होती है।यानि शिक्षा के बगैर जीवन की कल्पना अधूरी है।जहां शिक्षा होगी,वहां उसका प्रदाता शिक्षक तो होगा ही। शिक्षा का महत्व अगर इतना है तो उसका श्रोत बनने वाले शिक्षक का महत्व कितना होगा यह कहने की आवश्यकता नही है।आधुनिक सोंच ने शिक्षक को बहुत संकुचित अर्थों में कैद कर दिया है।लोग शिक्षक का मतलब केवल इतना समझने लगे हैं कि वह उनके बच्चों को नौकरी और रोजगार के दूसरे अवसरों तक पहुंचाने का जरिया मात्र है।

बच्चा पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी पा जाये तो शिक्षक की सफलता तय मानी जाती है।लोग यह बात तो भूल ही चुके हैं कि शिक्षक केवल किताबी ज्ञान देने का माध्यम भर नही है बल्कि अपने शिष्यों में संस्कारों की स्थापना का दायित्व भी संभालता है,समाज की वेदना में उसकी संवेदना उठ खड़ी हो ऐसे भाव जगाता है,देश समाज पर संकटों के क्षण आये तो उसकी व्याकुलता बढ़ जाये,निजी सुखों के तलाश की बजाय समाज और राष्ट्र की सुख समृद्धि का चिंतन उसके मन मस्तिष्क में चलता रहे ऐसे नागरिकों का निर्माण एक शिक्षक की कार्यशाला में ही होता है।शिष्य अगर माटी है तो शिक्षक कुम्हार बनता है,शिष्य अगर नौका है तो शिक्षक माझी और पतवार बन जाता है,नेत्र जरूर शिष्य के होते हैं लेकिन दृष्टि उसे शिक्षक ही दे पाता है।शिक्षक की महिमा पर पहले भी बहुत से विद्वानों ने अपने विचार दिये हैं,पर शब्दों में उसको बांध पाना संभव नही होता है।भगवान राम का चरित्र हो या स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन या फिर अब्दुल कलाम की जीवटता और न जाने कितने समाज सुधारकों का जीवन,उनके शिक्षकों की ज्ञान ज्योति से आलोकित होता रहा है।देश और समाज भी उनके अवदान से लाभान्वित होता रहा है।शिक्षक अपने शिष्य की अन्तर्चेतना पर ज्ञान और विचारों की चोट करके उसे निखारता है।एक शिक्षक की कार्यकुशलता और कौशल का मूल्यांकन समाज के सौंदर्य और विद्रूपताओं के आधार पर किया जाता है।समाज के सुन्दरतम पक्ष का श्रेय यदि किसी शिक्षक को जाता है तो समाज की विसंगतियों के लिए भी वही उत्तरदायी होता है।समाज के अच्छे बुरे नागरिकों के निर्माण की जिम्मेदारी शिक्षकों की पाठशालाएँ ही तय करती हैं।

व्यक्ति का जन्म तो मां की कोख से होता है लेकिन उसके व्यक्तित्व का निर्माण शिक्षक ही करता है।शिष्य के हृदय में मानवीय मूल्यों की धारा शिक्षक ही प्रकट करता है।यह मान लेना कि शिक्षक अपने छात्रों तक केवल किताबी ज्ञान का ही संप्रेषण करता है यह बड़ी भूल होगी।शिक्षक तो अपने शिष्य के अन्तर्मुखी और वहिर्मुखी हर प्रकार के उन्नयन का प्रणेता होता है।जब शिक्षक की भूमिका से देश और समाज की उन्नति अवनति के परिणाम प्रकट हो रहे हों तो उसका मान सम्मान भी तदनुसार होना ही चाहिए।जब वह राष्ट्र निर्माण जैसी महत्वपूर्ण साधना में लीन है तो उसकी वाहवाही और प्रसंशा तो होनी ही चाहिए।उसका उत्साहवर्धन होता रहना चाहिए।यद्यपि उसे इन चीजों की दरकार भले ही न हो पर समाज और सरकार को उसके प्रति आदर भाव का नजरिया बढ़ाना चाहिए।जिस नींव पर राष्ट्र की खूबसूरत इमारत को टेक लेना है उसे मजबूती देनी ही होगी।सरकार और समाज को यह समझना होगा कि शिक्षक खुशहाल रहेगा तो पूर्ण मनोयोग से वह अपने दायित्वों का निर्वहन करता जायेगा और सुन्दर समाज और राष्ट्र की सर्जना होती जायेगी।केवल शिक्षक ही है जो अज्ञानता और अन्धकार के विरुद्ध क्रांति का उद्घोष कर सकता है।शिक्षक दिवस पर समूचे शिक्षक समाज को पूरा देश नमन कर रहा होगा जब आप मेरा लेख पढ़ रहे होंगे।डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के विचारों को आत्मसात करके ही देश तरक्की और प्रगति की राह ले सकता है।देश के प्रथम उपराष्ट्रपति और शिक्षाविद डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के चरणों में प्रणति निवेदन करते हुए समग्र शिक्षक समाज को नमन है। 

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