श्रुति व्यास
इमैनुएल मैक्रों को एक जीत की दरकार थी, और गेब्रियल अटल को प्रधानमंत्री नियुक्त कर उन्होंने वह जीत हासिल कर ली है। मैक्रों का दूसरा कार्यकाल उथलपुथल भरा रहा है। उन्हें अलोकप्रियता और जनता की अस्वीकृति का सामना करना पड़ाहै। जनता में पेंशन संबंधी सुधारों, जिनके जरिए रिटायरमेंट की उम्र 62 से बढ़ा कर 64 साल की गई, और दक्षिणपंथियों को खुश करने के लिए प्रस्तावित कठोर आप्रवासी कानूनों को लेकर नाराजगी थी। इसलिए इमैनुएल मैक्रों की छवि एक ऐसे राष्ट्रपति की बन गई जिसने उसे उपलब्ध मौके खो दिए। यह युवा नेता जब सत्ता में आया था, तब वह अपने साथ लाया था ढेर सारी आशाएं और उत्साह। अब उनका स्थान फ्रांस में असंतोष और निराशा ने ले रखा है। और 62 साल की एलिजाबेथ बोर्न को हटाकर, जिन्होंने इस बात को छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया कि वे उन पर दबाव डाले जाने से नाराज हैं, मैक्रों ने कठिनाई भरे अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम दौर को बेहतर बनाने का प्रयास किया है।34 वर्षीय अटल – जो देश के सबसे युवा और पहले खुले तौर पर समलैंगिक प्रधानमंत्री हैं – को नियुक्त कर मैक्रों यह उम्मीद कर रहे हैं कि उनके नंबर कुछ बढ़ जाएंगे। यह माना जाता है कि यह नया युवा प्रधानमंत्री पिछली अलोकप्रिय सरकार का सबसे लोकप्रिय राजनेता था। अटल को इसलिए चुना गया है ताकि उम्मीद की वापसी हो सके। अपनी पुस्तक ‘रेविल्यूशनÓ, जो उन्होंने अपने पहले राष्ट्रपति चुनाव अभियान के पहले लिखी थी, में मैक्रों ने लिखा था, जो चीज़ फ्रांस को एक रखती है वह है व्यक्तियों के नस्लीय मूल और नियति की विविधता को स्वीकार और भाग्यवाद को नामंजूर करना।
मैक्रों 39 वर्ष के थे जब वे फ्रांस के राजनैतिक तंत्र को एक नयी दिशा देते हुए देश के इतिहास के सबसे युवा राष्ट्रपति बने। अटल, जो सन् 2016 में मैक्रों के चुनाव प्रचार में भाग लेने के समय से ही उनके वफादार रहे हैं, अप्रैल 2027 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के समय 38 वर्ष के होंगे और यदि उनका वर्तमान कार्यकाल सफल रहता है तो संभावना है कि वे अगले चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे।
सख्त सर्दी में प्रधानमंत्री निवास के परिसर में आयोजित समारोह में निवृत्मान प्रधानमंत्री बोर्न के बगल में खड़े अटल ने कहा कि उनकी और राष्ट्रपति मैक्रों की युवावस्था साहस और गतिशीलता की प्रतीक हैं। लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि फ्रांस में बहुत से लोग अपने जनप्रतिनिधियों के प्रति संशय में हैं। और यह ठीक ही है क्योंकि बहुत सारे फ्रांसिसी अटल की नियुक्ति को एक जुआ मानते हैं।
यूरोपीय संसद में उग्र राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी दलों के उदारवादी समूह को पछाड़कर तीसरी सबसे बड़ी शक्ति बनने की भविष्यवाणियों के बीच – यह आशा की ही जानी चाहिए कि मैक्रों का दांव सही पड़ेगा। लेकिन राष्ट्रपति शायद केवल जनता के मूड को ज़रुरत से ज्यादा महत्व दे रहे हैं। जैसा कि बोर्न को गड्ढे में गिरने के बाद समझ में आया, 577 सदस्यीय सदन में बहुमत न होने से, जिसमें मैक्रों की रेनासां पार्टी और उसके मित्र दलों का स्पष्ट बहुमत नहीं है, मैक्रों के इस दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री की भूमिका ठीक से निभा पाना लगभग असंभव है। लेकिन इस बात के मद्देनजर कि अगली गर्मियों में पेरिस ओलंपिक और यूरोपियन संसद के चुनाव दोनों होने हैं, मैक्रों, जिनकी एप्रूवल रेटिंग घटकर 27 प्रतिशत रह गई है, सरकार की छवि में बदलाव चाहते थे।
मैक्रों को उम्मीद है कि मध्य-दक्षिणपंथी बोर्न की तुलना में अटल को इस विचारधारा के लोग अधिक पसंद करेंगे। आखिर मैक्रों को आप्रवासी कानून को पारित कराने के लिए उनके समर्थन की जरूरत होगी।
नतीजतन अटल को माहौल अनुकूल रखने पर ध्यान केन्द्रित रखना होगा और संसद में टकराव से दूर रहना होगा। मैक्रों का कार्यकाल शायद समाप्ति की ओर है और उनके उत्तराधिकारी की दौड़ शुरू हो चुकी है। यदि वे गलतियां न करें और आशा जगा सकें, तो फ्रांस के नए प्रधानमंत्री 2027 में ली पेन से मुकाबला करने के लिए दक्षिणपंथियों की मदद से सबसे पसंदीदा उम्मीदवारों में से एक बन सकते हैं। लेकिन ऐसे संकेतों के बीच कि अधिकाधिक मतदाता इस समस्याओं से घिरी सरकार से नाउम्मीद होते जा रहे हैं, प्रधानमंत्री पद पर अटल का आसीन होना, अटल के साथ-साथ मैक्रों के लिए भी एक बड़ा दांव है।