बीबीपुर ग्राम में चल रही श्रीमद् भागवत कथा का छठा दिन

योगेश्वर श्री कृष्ण अपने आप में परिपूर्ण है ,साक्षात परब्रह्म परमेश्वर हैं ,प्रेम में यादें स्मृतियां ही जीवन में प्रेमी की पूंजी होती हैं- कौशिक चैतन्य जी महाराज

बाराबंकी 9 मार्च। जीवात्मा परमात्मा का रमण कर सकती है, लेकिन परमात्मा जीवात्मा का रमण नहीं कर सकता। जीवात्मा रूपी गोपियों को कृष्ण ने आनंद दिया।योगेश्वर श्री कृष्ण अपने आप में परिपूर्ण है, परमानंद है, साक्षात परम ब्रह्म परमेश्वर हैं। प्रेम में यादें स्मृतियां ही जीवन में प्रेमी की पूंजी होती है।गोपिया कभी भी वृंदावन से मथुरा कृष्ण से मिलने के लिए नहीं गई, गोपियों का प्रेम आध्यात्मिक अलौकिक दिव्य मिलन का संदेश है ।गोपियों और कृष्ण की भागवत में विरह का प्रसंग है, प्रेम में ऐसा सामर्थ्य होता है, ऐसी शक्ति होती है ,कि अपने प्रेमी के प्रेम को पहले से ही भाप लेती है।
उपरोक्त उद्गार जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर स्थित ग्राम सभा बीबीपुर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन चिन्मय मिशन से पधारे कौशिक चैतन्य जी महाराज ने प्रवचन पंडाल में उमड़े जन समूह के समक्ष व्यक्त किये । उन्होंने कहा कि प्रेम कभी पाकर संतुष्ट नहीं होता, प्रेम देकर संतुष्ट होता है। प्रेमी जीवन में चाह करे तो प्रेम हो ,वह प्रेम नहीं वासना है! स्वार्थ है। प्रेम की कसौटी, त्याग,बलिदान ,करुणा ,दया ,उदारता,स्नेह, वात्सल्य की पराकाष्ठा है। प्रेम कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता है, गोपियों ने जीवन भर विरह में रहकर अपना जीवन कृष्ण के लिए समर्पित कर दिया। प्रेम का परिणाम विरह होता है
कथा को अपनी मृदुल वाणी में संगीत मय लहरी में रसपान करते हुए ब्रह्मचारी श्री कौशिक चैतन्य जी महाराज ने कहा कि “जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”,“हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम से प्रकट होए मैं जाना “।कृष्ण बलराम जब गोकुल छोड़कर मथुरा के लिए प्रवेश करते हैं, उस समय गोपिया कृष्ण के रथ के आगे लेट जाती है, तभी कृष्ण अपने रथ को आगे बढाने का निर्देश अक्रूर जी को देते हैं ,उस समय बड़ा मार्मिक प्रसंग है ,जो पाषाण हृदय को भी पिघला देता है। गोपियों की मन:स्थिति भांप कर कृष्ण जाने के लिए मार्ग मांगते हैं ,तत्काल गोपिया रास्ता छोड़कर पंक्तिबद्ध हो जाती है ।गोपियां पूर्व जन्म में ऋषि आत्माएं थी। उनको आभास हो गया था कि कृष्ण अब एक पल भी वृंदावन में नहीं रुकेंगे ।कृष्ण साक्षात योगेश्वर की प्रतिमूर्ति है ।
उन्होंने बताया कि वृंदावन से जाने के बाद कृष्ण ने मथुरा में कंस के धोबी ,दर्जी का उद्धार ,कुब्जा एवं सुदामा माली पर कृपा ,तथा मुचकुंद कुवलिया पीड़ हाथी सहित कालयवन का उद्धार ,चाडू,मुस्टिक समेत क्रूर शासक कंस का वध किया। अहंकार परमात्मा का भोजन है ।भक्त को अपने ज्ञान का अहंकार हो गया था ,तभी कृष्ण ने ऊधव को गोपियों का नंद बाबा का समाचार लाने के लिए प्रेम की गली वृंदावन को भेजा था । ज्ञान की शिक्षा लाने वाले ऊधव को गोपियों ने प्रेम की दीक्षा दे डाली। गोपियों ने ऊधव से कहा कि “ऊधव मन ना भयो दस बीस, एक रह्यो तो गए श्याम संग नाहि भय दस बीस”। उधर श्याम का संदेश था “ऊधव मोहि ब्रज बिसरत नाहीं,हंस सुता के सुंदर कलरव ब्रज में थे मोहि भूलत नाहीं,”,
कथा व्यास श्री कौशिक चैतन्य जी महाराज ने सुनाया की मथुरा की लीला पूरी करके कृष्ण बलराम द्वारकाधीश के लिए प्रस्थान करते हैं ,जहां पर माता रुक्मणी के साथ कृष्ण का तथा माता रेवती के साथ बलराम का पारिग्रहण होता है।
कथा रोचक बनाना उद्देश्य नहीं, कथा यथार्थ होनी चाहिए। इस अवसर पर संगीतकार मुकेश दुबे( गायक),राहुल शुक्ला (तबला वादक ),राम शुक्ला( सहायक),समेत आचार्यगण देवेश शुक्ला, देवेश पाठक, योगेश मिश्रा ,अर्पित त्रिवेदी द्वारा प्रस्तुत रुक्मणी विवाह ‘गीत मेहंदी लगा दो मुझे सुंदर बना दो, मुझे श्याम सुंदर की दुल्हन बना दो,,मेरे सरकार का दरबार बड़ा प्यारा है ,कृष्ण मेरा प्यारा, गोविंद बड़ा प्यारा है ,भजन को मिलकर श्रोताओं द्वारा करतल ध्वनि के साथ गायन किया । कथा को सफल बनाने में कार्यक्रम संयोजक संजय सोनी सपत्नीक ,विनय सोनी, भगवती प्रसाद सोनी ,विकास सोनी, गोपाल सोनी, राजू सोनी ,समेत सोनी परिवार एवं सैकड़ो कार्यकर्ता प्राणपण से पूरी तनमयता के साथ जुटे हुए हैं।

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