विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बातचीत में भारतीय विदेश नीति और विभिन्न देशों से संबंधों के अहम पहलुओं पर रोशनी डाली। खास तौर पर अमेरिका और कनाडा के साथ संबंधों से जुड़े हिस्से ने अगर लोगों का ध्यान ज्यादा खींचा तो यह बेवजह नहीं है। पिछले कुछ समय में खासकर निज्जर हत्याकांड और कथित पन्नू हत्या साजिश प्रकरण की वजह से तीनों देशों के रिश्तों को मिलाकर देखने का एक ट्रेंड विकसित हो रहा है। इस लिहाज से देखें तो यह बातचीत बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें दो राय नहीं कि कनाडा में हुई खालिस्तान समर्थक अलगाववादी नेता की हत्या से यह सारा विवाद शुरू हुआ, जो एक अन्य खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की अमेरिका में रची गई कथित साजिश तक पहुंचा। निज्जर हत्याकांड की जांच पर जोर देने से कई लोग ऐसा मानते हैं कि अमेरिका ने उस मसले पर कनाडा के रुख का समर्थन किया। इसके बाद पन्नू की हत्या की कथित साजिश वाले मामले में भी अमेरिका की यही भूमिका रही। इससे कुछ हलकों में ऐसी धारणा बनी या बनाई गई कि भारत ने कनाडा और अमेरिका के मामलों में अलग-अलग तरह का रवैया अपनाया। हालांकि भारत की अपनी नीति इन दोनों ही मामलों में बिल्कुल स्पष्ट रही है।
तथ्य यह है कि कनाडा ने न केवल निज्जर हत्याकांड में बल्कि इससे पहले भी कई मौकों पर द्विपक्षीय संबंधों में गैर-जिम्मेदार रवैया अपनाया है। देश में चला किसान आंदोलन हर लिहाज से अंदरूनी मामला था, लेकिन कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो दुनिया के इकलौते पीएम थे जिन्होंने इस मसले पर खुलकर बयानबाजी की। यही नहीं, कनाडा सरकार भारत में अलगाववाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों को लंबे समय से अभिव्यक्ति की आजादी की ढाल देती रही है।
निज्जर हत्याकांड में जिस तरह कनाडा सरकार ने सार्वजनिक बयानबाजी से ही शुरुआत की और बाद में भी अपने आरोपों को तथ्यों से पुष्ट नहीं किया, उसके एकदम विपरीत अमेरिका ने न केवल सार्वजनिक बयानबाजी से परहेज किया बल्कि भारत के साथ तमाम सूचनाएं और सबूत साझा करते हुए कहा कि उनकी इस मामले में एक राय बन रही है और भारत भी अपनी तरफ से इस मामले को देखे।
अमेरिका में उभर रही राय सही है या नहीं, यह तो कोर्ट की प्रक्रिया से तय होगा। लेकिन वहां की सरकार हर कदम पर भारत के हितों को लेकर संवेदनशीलता दिखाती रही है। वहां अलगावादी-आतंकवादी गतिविधियों को अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ भी नहीं दी जा रही। यही वजह है कि इस प्रकरण में उभरी असहमति के बावजूद दोनों देशों के रिश्ते न केवल अच्छे बने हुए हैं बल्कि इनमें सुधार की प्रक्रिया भी जारी है। जाहिर है, परस्पर विश्वास और आपसी हितों के प्रति सम्मान सुनिश्चित करके ही रिश्तों को ऊंचाई दी जा सकती है।