उत्तर प्रदेश में मिली सीटों ने ही एनडीए गठबंधन को बहुमत पाने में निभाई है सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका

  • भाजपा की 2024 में कमजोर स्थिति का
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहले ही हो गया था अंदेशा

लखनऊ। 2024 के लोकसभा चुनाव ने आखिरकार 4 जून को इतिहास रच ही दिया है।राम के राज्य में मोदी की पार्टी की करारी हार हुई है।अयोध्या में भव्य और विराट मंदिर में 500 साल बाद भगवान राम की बाल स्वरूप की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को होने के बाद यह माना जा रहा था,कि राम मंदिर के मुद्दे पर ही भाजपा की नैया 2024 में पार लग जाएगी।राम मंदिर के मुद्दे ने भाजपा को दो सांसद से शुरू कर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाया था। अटल जी के नेतृत्व में गठबंधन ने तीन-तीन बार सत्ता पाई थी।तो राम मंदिर की चाह मतदाताओं के मन में तब भी शामिल थी,जब 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार भाजपा के बहुमत वाली एनडीए की सरकार बनी थी।

और इसके बाद 2019 में भाजपा को तीन सौ पार कराकर भारत के मतदाताओं ने फिर एनडीए की सरकार बनाई।और इसी जीत से मोदी सरकार में राम मंदिर बन पाना संभव हुआ है, पर यही राम मंदिर का मुद्दा भाजपा को उत्तर प्रदेश में उतनी सीटें नहीं दिला पाया,जिससे भाजपा अपने बूते पर बहुमत का आंकड़ा छू पाती।भाजपा अगर बहुमत से 33 कदम दूर रह गई,तो इसमें बस उत्तर प्रदेश में कम मिली सीटों ने ही भाजपा को बहुमत से वंचित रहने मजबूर किया है।तो यह भी सही है, कि उत्तर प्रदेश में मिली सीटों ने ही एनडीए गठबंधन को बहुमत पाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।तो राम ने बहुत कुछ दिया भी है और बहुत कुछ छीनकर कुछ सबक भी सिखाया है। तो क्या यही ‘राम का न्याय ‘ है , जो मोदी को नई दिशा दिखा रहा है।

राम के आचरण को समझने की जरूरत है । जिसमें वह पत्नी का हरण करने वाले रावण को रण में मारने से पहले भी बार – बार अवसर देते हैं कि अपनी गलती सुधार लो और हम युद्ध को टाल देंगे । यह राम की मर्यादा है , राम की विनम्रता है और राम का न्याय है।राम ने राह देने के लिए समुद्र के सामने भी पहले प्रार्थना की और जब तीन दिन तक विनय नहीं मानी , तब राम को भय दिखाने पर मजबूर होना पड़ा। राम को इसीलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है , क्योंकि उन्होंने विकट परिस्थितियों में भी मर्यादा की रेखा को नहीं लांघा।इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहीं-कहीं शब्दों की मर्यादा को लांघते से नजर आए। राम मंदिर बनवाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शायद राम के आचरण से मर्यादा की सीख लेना चाहिए , ‘ राम का न्याय ‘ शायद यही है । हो सकता है कि इस बार की सीख शायद भाजपा के लिए अगले चुनाव में वरदान बन जाए। वैसे भाजपा की 2024 में कमजोर स्थिति का अंदेशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहले ही हो गया था। और इसीलिए इस लोकसभा चुनाव में मोदी लगातार कुछ बदले-बदले नजर आते रहे।

भाजपा नेताओं के प्रति उनके व्यवहार में प्रीतिकर बदलाव नजर आया , तो मीडिया को दिए इंटरव्यू की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी भी यही संकेत देती नजर आई।दरअसल इस चुनाव में अंदेशा होने के बाद मोदी अपने मूल स्वभाव से अलग हटकर व्यवहार करते नजर आए।इसने कहीं न कहीं मोदी की छवि पर समझौतावादी होने का टैग लगाया। और उन्हें हर चरण में मुद्दा बदलना भी उनकी मजबूरी गई थी।उत्तर प्रदेश में राम मंदिर के बाद भी भाजपा की सीटों में बहुत ज्यादा कमी होना कहीं इस बात का संकेत तो नहीं है कि भाजपा के भीतर भी बहुत उथल-पुथल का दौर जारी है। योगी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मिलकर कहीं उत्तर प्रदेश में मोदी की परीक्षा तो नहीं ली है ? या यह जताने और अहसास कराने का प्रयास तो नहीं किया है,कि भाजपा में व्यक्ति कभी भी पार्टी से ऊपर नहीं है और बिना संघ के भाजपा की नैया कभी भी पार नहीं हो सकती।यह तो बस कयास है, बाकी सच क्या है यह तो योगी-संघ और मोदी ही समझ सकते हैं।

अजय सिंह चौहान

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