यहां जाने शैतान मूवी का रिव्यू…

मुंबई। फिल्‍म दृश्‍यम की फ्रेंचाइजी में विजय सलगांवकरअपने परिवार को बचाने की खातिर किसी भी सीमा तक जाता है। शैतान में भी कबीर का छोटा परिवार सुखी परिवार है। इस बार भी आफत बेटी पर ही आती है।

सुपरनेचुरल थ्रिलर के तौर पर प्रचारित ‘शैतान’ में तांत्रिक के पास शक्तियां हैं, जिसके बल पर वह किशोरियों को वश में कर लेता है। अमूमन फिल्‍मों में वशीकरण से मुक्ति के लिए हनुमान चालीसा या ताबीज का सहारा लिया जाता है। वशीकरण पर बनी गुजराती फिल्‍म वश की रीमेक शैतान में वैसा नहीं है। फिल्‍म की शुरुआत अच्‍छी है, लेकिन मध्यांतर के बाद लड़खड़ा गई है।

क्या है शैतान की कहानी?
चार्टर्ड अकाउंटेंट कबीर दसवीं क्‍लास में पढ़ रही अपनी बेटी जानवी (जानकी बोधीवाला) और आठ साल के नटखट बेटे ध्रुव (अंगद राज) और पत्‍नी ज्‍योति (ज्‍योतिका) को लेकर फार्महाउस छुट्टी मनाने जाता है। रास्‍ते में एक अजनबी वनराज (आर माधवन) उसकी बेटी को वश में कर लेता है। फिर वनराज उनके फार्महाउस पर भी पहुंच जाता है।

काले जादू के चलते वश में आ चुकी जानवी उसके हर आदेश का पालन करती है। वनराज चाहता है कि कबीर और ज्‍योति उसे जानवी को ले जाने की अनुमति दें। वह खुद को भगवान कहता है। क्‍या उसके मंसूबे कामयाब होंगे? कबीर अपनी बेटी को उसके चंगुल से निकाल पाएगा या नहीं, कहानी इस संबंध में हैं।

कैसे हैं स्क्रीनप्ले और डायलॉग?
चिल्‍लर पार्टी, क्‍वीन, शानदार, सुपर 30 जैसी फिल्‍मों का निर्देशन कर चुके विकास बहल ने पहली बार सुपरनेचुरल थ्रिलर जानर में हाथ आजमाया है। उन्‍होंने शहर से दूर स्थित हाउस को घने जंगल और मानसून में कहानी को अच्‍छे से सेट किया है।

मध्‍यांतर से पहले फिल्‍म का ज्‍यादातर हिस्‍सा वशीकरण दिखाने में गया है। वनराज जैसे कहता है, जानवी उसका पालन करती है। यहां तक कि अपने भाई का सिर फोड़ देती है। पिता को थप्‍पड़ मार देती है। अपनी नेकर की जिप भी खोल देती है। यह उसकी ताकत से परिचित करवाती है।

ध्रुव का वीडियो एडिटिंग करना, ज्‍योति का मोबाइल को चावल के डिब्‍बे में छुपाना जैसे दृश्‍य संकेत दे देते हैं कि यह खलनायक से निपटने में काम आएंगे। फर्स्‍ट हाफ में कहानी बांधकर रखती है। मध्‍यांतर के बाद यह लड़खड़ा जाती है।

वनराज के पात्र से जुड़े कई सवाल अनुत्‍तरित हैं। जैसे वह क्‍यों जानवी को ही ले जाने के बारे में सोचता है? वशीकरण के बाद जानवी को ले जाने के लिए उसे कबीर और ज्‍योति की अनुमति की जरूरत क्‍यों हैं? वनराज ने इससे पहले 107 किशोरियों को कब्‍जे में किया होता है। क्‍या सभी के माता-पिता की अनुमति ली होती है?

वह अपने काम को कैसे अंजाम दे रहा है? वह अमीर लड़कियों को ही क्‍यों फंसा रहा है? उसका कोई जिक्र नहीं है। वनराज जब अपने मंसूबों की प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है और अग्नि के सामने खड़े होकर अपनी ताकत के बारे में बताता है, वह माहौल बिल्‍कुल डराता नहीं है।

फिल्‍म के संवाद भी प्रभावी नहीं बन पाए हैं। हिंदी सिनेमा की घिसी-पिटी लीक की तरह यहां पर पुलिस लाचार और बेबस है। आखिर में आकर पुलिस नायक की बहादुरी की तारीफ करती है। फिल्‍म का क्‍लाइमैक्‍स उसका टर्निंग प्‍वांइट था। वहां पर लेखक और निर्देशक बुरी तरह मात खा गए हैं।

कैसा है कलाकारों का अभिनय?
पहली बार नकारात्‍मक किरदार में नजर आए आर माधवन शुरुआत में प्रभावित करते हैं। जब उनका किरदार तांत्रिक के रूप में आता है तो पकड़ कमजोर पड़ती है। वह दुर्दांत नजर नहीं आते, जो उनके किरदार की मांग होती है। अच्‍छे और लाचार पिता की भूमिका अजय के लिए नई नहीं है। यहां पर भी वह उसमें सहज हैं।

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