‘एक विधान, एक निशान, एक प्रधान’ का संकल्प पूरा…

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के महासमर में उतरने से पहले विपक्षी दल जब इस जुगत में हों कि मिलकर कैसे भाजपा को तीसरी बार सत्ता में आने से रोका जाए, तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा को 370 और राजग को 400 सीटों के पार पहुंचाने का आत्मविश्वास दिखाया है। राजनीतिक विश्लेषकों के मन में यह सवाल कौंध सकता है कि 10 वर्ष की सत्ता के बाद किसी भी सरकार के लिए चुनौती बढ़ जाती है, तब भाजपा के इस उत्साह का आधार क्या है?

इसका उत्तर संसद में मोदी सरकार द्वारा लाए गए श्वेत-पत्र, राष्ट्रीय अधिवेशन के राजनीतिक प्रस्ताव सहित शीर्ष नेतृत्व से लेकर बूथ स्तर के कार्यकर्ता की जुबानी चर्चा में मिलता है, जिसमें राम मंदिर निर्माण से लेकर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति, तीन तलाक के विरुद्ध कानून, नारी शक्ति वंदन अधिनियम और नागरिकता संशोधन अधिनियम जैसे मुद्दे हैं। 2019 से 2024 के बीच इन एतिहासिक निर्णयों से भाजपा ने अपना चुनावी तरकश इस तरह सजाया है, जिन्हें वह ‘रामबाण’ मानकर चल रही है।

‘मोदी की गारंटी’ की गूंज

भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान में इस बार ‘मोदी की गारंटी’ की गूंज है। यह सिर्फ जनकल्याणकारी योजनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि पार्टी इस गारंटी को उन निर्णयों से भी जोड़कर प्रचारित कर रही है, जो एतिहासिक हैं और जिनके माध्यम से मोदी सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति तथा बहुमत वाली सरकार के बल का भी संदेश जाता है।

यूं भाजपा ने तो अपनी सरकार की 10 वर्ष की उपलब्धियों को जिल्दबंद किया है, लेकिन प्रमुख मुद्दों के साथ 2019 के लोकसभा चुनाव मैदान में उतरी भाजपा से इस बार की तुलना करें तो अब वह बड़ी उपलब्धियों से लैस दिखाई देती है। इनमें सबसे प्रमुख मुद्दे की बात करें तो अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का उल्लेख होना स्वाभाविक है। पिछली सदी के आठवें-नौवें दशक से जिस राम मंदिर को चुनावी एजेंडे में रखकर भाजपा चल रही थी, उसके निर्माण का रास्ता सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से नवंबर 2019 में तब प्रशस्त हुआ, जब भाजपा 2019 में दोबारा सरकार बना चुकी थी।

पांच अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंदिर का भूमिपूजन किया और 22 जनवरी, 2024 को मोदी ने ही मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की। एक समय राम मंदिर आंदोलन को भाजपा की ‘कमंडल की राजनीति’ घोषित कर गैर-भाजपाई दलों ने ‘मंडल’ के सहारे बढ़त बनाई थी। अब जिस तरह से कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने जाति आधारित गणना को चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास किया है, उसमें मंडल बनाम कमंडल का सोच इंगित होता है। रामलला प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के उल्लास को भाजपा और उसके सहयोगी संगठन गली-गली पहुंचाकर संदेश दे चुके हैं कि भाजपा ने ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ का संकल्प सिद्ध कर दिया है।

‘एक विधान, एक निशान, एक प्रधान’ का संकल्प पूरा

भाजपा के चुनावी एजेंडे में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति हमेशा शामिल रही। इस बार चुनाव मैदान में उतरने जा रही भाजपा इसे लेकर भी पीठ थपथपा रही है कि उसने देश के ‘एक विधान, एक निशान, एक प्रधान’ के संकल्प को पूरा कर दिया है। दरअसल, यह निर्णय भी मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्ता प्राप्ति के बाद पांच अगस्त, 2019 को संसद में प्रस्ताव पारित कराते हुए किया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया और जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के रूप में दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश बन गए। सरकार के इस निर्णय को वैध ठहराते हुए दिसंबर, 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी।

सरकार के एतिहासिक फैसले

तीन तलाक के विरुद्ध कानून और नारी शक्ति वंदन अधिनियम जैसे निर्णय भी एतिहासिक हैं। तीन तलाक के मुद्दे को मुस्लिम समुदाय से जुड़ा होने के कारण कोई अन्य दल छूने की हिम्मत नहीं करता था, लेकिन प्रबल इच्छाशक्ति का संदेश देते हुए मोदी सरकार ने एक अगस्त, 2019 को मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 संसद में पारित कराया।

यह मुद्दा सिर्फ मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा है, लेकिन इसके माध्यम से मोदी सरकार ने संपूर्ण महिला वर्ग में यह संदेश देने का प्रयास किया है कि सरकार महिलाओं के हित में समान भाव से सोचती है और कठोर निर्णय ले सकती है। इसी तरह सरकार ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम को सितंबर, 2023 में पारित कराया।

…और अब सीएए की बारी

इन तमाम मुद्दों के साथ ही सरकार ने एक और हथियार तराशकर तैयार कर लिया है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) भी ऐसा मुद्दा है, जिस पर राजनीतिक बहस छिड़ी है। इसके तहत सरकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यक यानी हिंदू, सिख, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना चाहती है।

चूंकि, उक्त देशों के बहुसंख्यक यानी मुस्लिम इस कानून में शामिल नहीं हैं, इसलिए इसे मुस्लिम विरोधी घोषित कर विपक्षी दल तूल देना चाहते हैं। हालांकि, इस बड़े निर्णय से भी पीएम मोदी मजबूत सरकार का संदेश देना चाहते हैं, इसलिए 11 दिसंबर, 2019 को संसद से पारित हो चुके इस अधिनियम को सरकार लोकसभा चुनाव से पहले देशभर में लागू करने की तैयारी में दिख रही है।

Related Articles

Back to top button