हरिद्वार । देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि अंतःकरण की शुद्धि गायत्री साधना से संभव है। गायत्री अनुष्ठान साधक को अवसाद से बचाता है और यह चित्त और इंद्रियों की क्रियाओं को वश में करते हुए मन को एकाग्र करने में सहायक है।
गीता मर्मज्ञ डॉ पण्ड्या देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के मृत्युंजय सभागार में श्रीमद्भगवतगीता में योग साधना विषय पर आयोजित नवरात्र साधना के चौथे दिन युवा साधकों को संबोधित कर रहे थे। डॉ. पण्ड्या ने कहा कि नवरात्र के दिनों में की जाने वाली गायत्री साधना कम समय में अधिक फल देने वाला होता है। उन्होंने कहा कि साधना वास्तव में हमारे भीतर की यात्रा है। साधना से हम गहराई तक पहुंच सकते हैं और मन को अनंत जन्मों की गंदगी से मुक्त कर सकते हैं। इसके साथ ही डॉ. पण्ड्या ने युवाओं के विविध साधनापरक शंकाओं का समाधान किया। इससे पूर्व गायत्री तीर्थ ने संगीतज्ञों ने भक्तिमय गीत प्रस्तुत किया।