पटना। विपक्षी खेमे से आगे निकलने की जुगत में बिहार भाजपा ने लोकसभा चुनाव की तैयारी तेज कर दी है। पार्टी नेतृत्व का प्रयास बिहार की सभी 40 सीटों पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की जीत सुनिश्चित करने का है।
इसके लिए एक महत्वपूर्ण आधार पांच नवंबर को मुजफ्फरपुर के पताही की सभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिया गया संदेश है। वह यह कि 70 बनाम 30 (लगभग 20 प्रतिशत मुसलमान व 10 प्रतिशत यादव) को छोड़कर शेष मतदाताओं को साधने की पहल करनी है।
50 लाख श्रद्धालु करेंगे रामलला के दर्शन
एडीए का कोर मतदाता भी इसी 70 प्रतिशत से है। प्रदेश इकाई उस पर आगे बढ़ चुकी है। इस रणनीति का एक अध्याय अयोध्याधाम में 50 लाख श्रद्धालुओं को श्री रामलला मंदिर का दर्शन कराने का है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी का स्पष्ट कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गारंटी पर 70 प्रतिशत बिहार वासियों को भरोसा है। वही हमारे कोर मतदाता भी है। इसी क्रम पार्टी के रणनीतिकार बिसात भी बिछा रहे हैं।
बूथ अध्यक्ष से पन्ना प्रमुख तक को लगाने का लक्ष्य
संगठनात्मक कार्यक्रम से लोगों को जोड़ने लेकर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने तक की पहल हो रही। इसके लिए बूथ अध्यक्ष से लेकर पन्ना प्रमुख तक को लगाने का लक्ष्य है।
साथ ही 80 लाख से अधिक सक्रिय कार्यकर्ताओं को अलग-अलग दायित्व दिया जाना है। 2015 व 2020 के विधानसभा चुनाव तक भाजपा यादव वोट बैंक को साधने का प्रयास कर रही थी।
अब यादव को छोड़ दूसरी पिछड़ी जातियों पर उसका फोकस है। विशेषकर जाति आधारित गणना का आंकड़ा सार्वजनिक होने के बाद से भाजपा ने अपनी रणनीति में परिवर्तन किया है।
जमीनी फीडबैक के आधार पर सांगठनिक विस्तार में सम्राट स्पष्ट संदेश दे चुके हैं। भूपेंद्र यादव बिहार में आठ वर्ष प्रदेश प्रभारी रहे थे। उस दौरान भाजपा का जोर राजद के कोर वोट यानी यादवों में सेंध लगाने का रहा।
इसी योजना के तहत नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन यादव पूर्णतया भाजपा के पक्षधर नहीं हुए। गुजरे दौर के गठबंधन को भी पार्टी नेता भाजपा के लिए नुकसानदेह बताते रहे हैं।
कुर्मी-कुशवाहा की राजनीतिक संज्ञा लव-कुश
बिहार में कुर्मी-कुशवाहा की राजनीतिक संज्ञा लव-कुश है। यह जदयू का कोर वोट बैंक है, लेकिन आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा की विदाई के बाद से भाजपा उसमें सेंधमारी का अवसर तलाशने लगी है।
सम्राट के जरिए वह इस अवसर को अपने पक्ष में करने की ठान चुकी है। जैसा कि पार्टी के रणनीतिकार बता रहे, सम्राट की ताजपोशी ही यादववाद का आवरण उतार कर पारंपरिक मतदाताओं के साथ अति पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए हुई है।