पिछले 14 दिनों से इजरायल की लगातार बमबारी के बीच गाजा के फिलिस्तीनी लोग पड़ोसी देश मिस्र और जॉर्डन में शरण पाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ये देश उन्हें अपने यहां कतई नहीं आने दे रहे हैं। आइए हम यहां समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर मामला क्या है…
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी ने बुधवार को अपनी अब तक की सबसे सख्त टिप्पणी में कहा, ‘मौजूदा युद्ध का उद्देश्य सिर्फ हमास से लड़ना नहीं है, जो गाजा पट्टी पर शासन करता है। बल्कि इस युद्ध का उद्देश्य गाजा के आम निवासियों को मिस्र की ओर पलायन करने के लिए प्रेरित करने का एक प्रयास भी है। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे क्षेत्र में शांति भंग हो सकती है। इससे पहले, जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय ने भी एक दिन पहले इसी तरह का संदेश दिया था। उन्होंने कहा था, जॉर्डन और मिस्र में किसी शरणार्थी को आने की इजाजत नहीं होगी।
फिलिस्तीनियों की स्वतंत्र राष्ट्र की मांग खत्म होने का डर
दोनों पड़ोसी देशों का इनकार इस डर पर आधारित है कि इजरायल फिलिस्तीनियों को स्थायी रूप से मिस्र और जॉर्डन में बसाने से फिलिस्तीनियों की स्वतंत्र राष्ट्र की मांग खुद ही खत्म हो जाएगी।
भंग हो सकती है 40 साल पुरानी शांति संधि
मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी ने यह भी कहा कि बड़े पैमाने पर पलायन से आतंकवादियों के मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप में आने का जोखिम होगा जहां से वे इजरायल पर हमले शुरू कर सकते हैं, जिससे दोनों देशों की 40 साल पुरानी शांति संधि खतरे में पड़ सकती है।
जॉर्डन में 56 साल में 3 लाख फिलीस्तीनी 40 लाख हो गए
इजरायल ने जब 1967 के युद्ध में, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया तो 3 लाख से अधिक फिलिस्तीनी विस्थापित हुए और जिनमें से ज्यादातर जॉर्डन में चले गए। इन शरणार्थियों और उनके वंशजों की संख्या अब लगभग 40 लाख से ज्यादा है जिनमें से अधिकांश वेस्ट बैंक, गाजा, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन के शिविरों और समुदायों में रहते हैं। मिस्र और जॉर्डन को डर है कि इतिहास खुद को दोहराएगा और गाजा से शरणार्थी के रूप में आने वाली बड़ी फिलिस्तीनी आबादी हमेशा के लिए वहीं रह जाएगी।