महाराष्ट्र एक बार फिर से मराठा आंदोलन की आग में सुलग रहा है. मराठा आंदोलन को लेकर कई जगहों पर आगजनी और तोड़फोड़ की गई है. कई नेताओं के घरों को निशाना बनाया गया है. इस बार आंदोलन का नेतृत्व मनोज जरांगे कर रहे हैं. मनोज जरांगे मराठा आरक्षण के आंदोलन का चेहरा बन गए हैं. वह मराठा आरक्षण नहीं दिए जाने तक भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं. अब उन्होंने पानी का भी त्याग कर दिया है.
राज्य में कहीं मंत्री की गाड़ी पर हमला किया गया है, तो कहीं खुदकुशी की कोशिश हो रही है. प्रदर्शनकारियों ने साफ कर दिया है कि जब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाएगा, तब तक प्रदर्शन जारी रहने वाला है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी इस दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि मनोज जरांगे कौन हैं, जिनके नाम पर पूरे मराठा आंदोलन की नींव टिकी हुई है.
हिंसा के लिए सरकारी सिस्टम को ठहराया जिम्मेदार
मराठा आरक्षण के लिए आवाज उठाने वाले मनोज जरांगे के आगे सरकार की पूरी मशीनरी ठप पड़ गई है. उनकी उम्र 40 साल है. दुबली-पतली कद-काठी वाले इस शख्स ने पूरी राज्य सरकार को हिला दिया है. मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मनोज जरांगे पिछले 8 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे हैं और उनके अनशन को तुड़वाने में पूरी सरकार के पसीने छूट रहे हैं. सरकार मनोज जरांगे से अनशन तोड़ने की अपील कर रही है लेकिन जरांगे हुंकार भरते हुए कह रहे हैं कि अगर सरकार ने फौरन मांगे नहीं मांगी तो अन्न क्या जल भी त्याग देंगे.
महाराष्ट्र के कोने-कोने से हिंसा की तस्वीरें आ रही हैं. मुंबई के कोलाबा में विधायक के घर पर हमला हुआ. जबकि मंत्री हसन मुशरिफ के काफिले पर भीड़ ने धावा बोल दिया. महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर हो रही हिंसा से बिगड़े हालात को संभालने में सरकार की सांस फूल रही है. लेकिन मनोज जरांगे साफ कह रहे हैं कि महाराष्ट्र में हिंसा करने वाले मराठा नहीं बल्कि सरकारी सिस्टम के ही लोग हैं.
दूसरी बार कर रहे हैं प्रदर्शन
महाराष्ट्र में मराठा के लिए मनोज जरांगे का कद क्या है उसे आप ऐसे समझिए. उनकी एक आवाज पर सड़क पर जनसैलाब उमड़ पड़ता है. गौर करने वाली बात ये है कि साल 2011 से मनोज जरांगे 35 विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं. लेकिन ये आंदोलन जालना तक सिमटा रहा लेकिन इस बार मनोज जरांगे की भूख हड़ताल ने देश भर में हड़कंप मचा दिया है. मनोज जरांगे का अनशन महाराष्ट्र के जालना में चल रहा है.
ऐसा नहीं है कि मनोज जरांगे पहली बार भूख हड़ताल पर बैठे हैं, ये उनका अनशन का पार्ट-2 है. जब वह पहली बार मराठा आरक्षण को लेकर अनशन पर बैठे, तो सरकार ने एक समिति बनाई थी और निर्णय के लिए मनोज जरांगे को 24 अक्टूबर की डेडलाइन दी थी. इसी वादे के बाद मनोज जरांगे ने 14 सितंबर को अपनी पहली भूख हड़ताल खत्म कर दी थी. लेकिन जब 24 अक्टूबर को मराठा आरक्षण का वादा नहीं पूरा हुआ तो, 25 अक्टूबर को मनोज जरांगे दोबारा अनशन पर बैठ गए.
कौन हैं मनोज जरांगे?
अनशन पर बैठते ही मनोज जरांगे ने एलान कर दिया था कि वो किसी भी तरह की मेडिकल जांच नहीं कराएंगे. मराठा आरक्षण के मुद्दे पर पूरे महाराष्ट्र को हिलाकर रख देने वाले मनोज जरांगे किसान परिवार से आते हैं. मनोज जरांगे महाराष्ट्र के बीड के रहने वाले हैं. लेकिन शादी के बाद नौकरी के लिए जालना में रहने लगे. मनोज जरांगे के तीन बच्चे हैं. उनके परिवार के लोग खेती करते हैं. मनोज जरांगे पिछले कई सालों से मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे थे लेकिन फिर अचानक क्या बदल गया.
बताया जा रहा है कि पिछली बार जब मनोज जरांगे अनशन पर बैठे थे और पुलिस उन्हें जबरन अस्पताल ले जाने की कोशिश कर रही थी तो पुलिस और जरांगे समर्थकों के बीच झड़प हुई. भीड़ पर लाठीचार्ज हुआ, आंसू गैस के गोले छोड़े गए और फिर जालना की सीमाओं से बाहर निकलकर मनोज जरांगे का नाम महाराष्ट्र के साथ-साथ पूरे देश की सुर्खियां बन गया. अब ये समझने की कोशिश करते हैं कि भूख हड़ताल पर बैठे मनोज जरांगे आखिर सरकार से क्या मांग रहे हैं.
क्या है मनोज जरांगे की मांग?
मनोज जरांगे मराठाओं के लिए ओबीसी का दर्जा मांग रहे हैं. वह मराठाओं के लिए कुनबी जाति का सर्टिफिकेट मांग रहे हैं, ये सर्टिफिकेट उन्हें ओबीसी का दर्जा दिलाएगा. इनकी दलील है निजाम का शासन खत्म होने तक मराठाओं को कुनबी माना जाता था और ये ओबीसी थे. लेकिन बाद में ये मराठा बन गए और इनका ओबीसी दर्जा छिन गया और कुनबी जाति के लोगों को महाराष्ट्र में ओबीसी में शामिल किया गया है. इन्हें सरकारी नौकरियों से लेकर शैक्षणिक संस्थानो में आरक्षण मिलता है. महाराष्ट्र सरकार ने मराठा कुनबी सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया शुरू भी कर दी है बावजूद इसके जरांगे मान नहीं रहे.