भारत में आजादी के बाद भी गरीबी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है. देश में फिलहाल लगभग 23 करोड़ लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं. जिन्हें अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए मजदूरी जैसे कार्य करने पड़ते हैं. हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान गरीबी रेखा से नीचे स्तर के लोगों के बारे में सवाल पूछे गए जिसका जवाब देते हुए कैबिनेट मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने भारत में गरीबी की स्थिति बताई है.
देश में गरीबी की स्थिति को बताने के लिए 2011-12 में इसे लेकर सर्वे करवाया गया था. जिसके बाद से अब तक इसे लेकर कोई आंकलन जारी नहीं हुआ है. इस सर्वे में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 27 करोड़ आंकी गई थी. सरकार का कहना है कि देश में 21.9 करोड़ आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे रहती है.
कैसे तय होता है गरीबी रेखा का स्तर?
सरकार के अनुसार देश की 21.9 प्रतिशत आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है. सरकार मानती है कि गांवों में रहने वाला व्यक्ति हर दिन 26 रुपए और शहर में रहने वाला व्यक्ति 32 रुपए खर्च करने में असमर्थ है तो वो व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे माना जाएगा.
गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाला परिवार उनके बच्चों की मूलभूत सुविधाएं भी पूरी नहीं कर पाता. न ही वो परिवार अपने बच्चों को सही शिक्षा दिलवाने में समर्थ होता है और न ही स्वास्थ्य और पर्याप्त भोजन देने में. कोरोना काल में लॉकडाउन गरीबी में जीवन यापन कर रहे लोगों के लिए भारी संकट का समय था. जब उन्हें ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेकर अपना परिवार चलाना पड़ा.
ऐसे में इस दौरान न सिर्फ उनके बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई बल्कि सही से भोजन मिलने में भी परेशानी का सामना करना पड़ा. इस समय हाशिए पर जो समुदाय थे उन्हें और उनके परिवार को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा और कोविड खत्म होने के कुछ समय बाद तक उन्हें रोजगार संबंधी परेशानियां आईं.
सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के द्वारा लॉकडाउन के बाद जारी आंकड़ों से ये पता चलता है कि बेरोजगारी दर मई 2022 में 7.1 प्रतिशत से बढ़कर जून 2022 में 7.8 प्रतिशत हो गई, जिसमें ग्रामीण भारत में बेरोजगारी दर में 1.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी.
क्या कहती है नीति आयोग की रिपोर्ट?
सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, नीति आयोग ने ‘राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023’ नाम से एक रिपोर्ट पेश की थी. जिसके अनुसार साल 2015-16 से 2019-21 के दौरान 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए हैं. नीति आयोग ने राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) का ये दूसरा संस्करण पेश किया है. इसका पहला संस्करण नवंबर 2021 में पेश किया गया था.
देश में क्या है बहुआयामी गरीबों की संख्या?
भारत में साल 2015-16 में 24.85 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीब थी. जो 2019-21 में घटकर 14.96 प्रतिशत पर आ गई. हालांकि इससे मुंह नहीं फेरा जा सकता कि देश की 15 प्रतिशत आबादी अभी भी बहुआयामी गरीबी में जीवन यापन कर रही है. जो चिंताजनक आंकड़े हैं. इतनी बड़ी आबादी को गरीबी के इस स्तर से बाहर निकालने के लिए सरकार का और मजबूत कदम उठाने के आवश्यकता है.
ग्रामीण इलाकों में तेजी से हो रही कमी
ग्रामीण और शहरी इलाकों में बहुआयामी गरीबी में अंतर अब भी मौजूद है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गरीबी का दंश ज्यादा झेल रहे हैं. हालांकि ये बात भी राहत देती है कि शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का स्तर तेजी से घटा भी है.
जहां शहरी क्षेत्रों में गरीबी 8.65% से घटकर 5.27% हो गई, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी 32.59% से घटकर 19.28% प्रतिशत पर आ गई. हालांकि नीति आयोग ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच इस अंतर पर चिंता भी जाहिर की है.
बहुआयामी गरीबी की बड़ी वजह
नीति आयोग की रिपोर्ट की मानें तो पोषण में सुधार, स्कूली शिक्षा, स्वच्छता और खाना पकाने के ईंधन की गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों तक बिजली की पहुंच, बैंक खातों तक पहुंच और पेयजल की सुविधा मिलने से एक बड़ी आबादी के जीवन स्तर में सुधार आया है.
इसके अलावा सरकार की ओर से चलाए जा रहे स्वास्थ्य कार्यक्रमों, स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन को महत्वपूर्ण बताया है. नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसे कार्यक्रमों से लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है. साथ ही स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन जैसी पहल से स्वच्छता संबंधी सुधार में भी मदद मिल रही है. नीति आयोग की रिपोर्ट में गरीबी को कम करने में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, सौभाग्य, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री जनधन योजना और समग्र शिक्षा जैसी पहलों को बहुत जरूरी माना गया है. रिपोर्ट के अनुसार, पीएम उज्ज्वला योजना से रसोई गैस की कमी में भी 14.6% का सुधार देखा गया है.
बहुआयामी गरीबी सूचकांक गरीबी मापने का एक ऐसा पैमाना है, जो किसी व्यक्ति की आय को बताता है. 12 एमपीआई संकेतकों के जरिए गरीबी को लेकर रिपोर्ट तैयार की जाती है.
भारत में सबसे गरीब राज्य की बात करें तो छत्तीसगढ़ सबसे गरीब राज्य माना जाता है. इसके अलावा झारखंड, मणिपुर, बिहार, अरुणाचल प्रदेश और असम में भी गरीबी चरम पर है. वहीं सबसे संतुष्ट राज्यों में केरल का नाम सबसे पहले आता है.