हित साधने की चीन की मंशा नहीं हुई कामयाब

चीन -ये दुनिया की पांच सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का एक समूह है. पहले इस ग्रुप का नाम BRIC था, फिर 2010 में साउथ अफ्रीका के शामिल होने के बाद इसे ब्रिक्स कहने लगे. इसकी स्थापना साल 2006 में हुई थी. इसमें वे विकासशील देश हैं, जिसकी इकोनॉमी काफी रफ्तार से बढ़ रही है. इस पांचों देशों का वैश्विक मामलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव हैं. BRICS में शामिल पांचों देश दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. चीन इसे अपने हित के लिए इस्तेमाल करना चाहता है, जबकि भारत इसे सही मायनों में लोकतांत्रिक संगठन बनाना चाहता है.

ब्रिक्स का सम्मेलन रहा सफल और शानदारदक्षिण अफ्रीका में जो ब्रिक्स का समिट हुआ, वह काफी सफल रहा है. भारत हमेशा से ही इसके विस्तार की बात करता रहा है. हमने जोर भी दिया है, सदस्य देशों से भी आग्रह आया है कि ब्रिक्स को विस्तार करना चाहिए. आप देखें तो ब्रिक्स की शुरुआत तो चार देशों-ब्राजीत, रूस, भारत और चीन- से ही हुई थी, फिर इसमें दक्षिण अफ्रीका को जोड़ा गया. इसमें भारत ने मुख्य भूमिका निभाई थी. पिछले कुछ समय से माना जा रहा है कि ब्रिक्स एक सफल संगठन है, जिसने ग्लोबल साउथ के देशों को लेकर कई इनिशिएटिव लिया है खासकर न्यू डेवलपमेंट बैंक तो खासकर इन्हीं देशों के साथ काम कर रहा है, पीपल टू पीपल कांटैक्ट बढ़ रहा है और ब्रिक्स गेम्स तक की बात हो रही है.फिलहाल दुनिया की 40फीसदी आबादी ब्रिक्स देशों में रहती है.

एक क्वार्टर दुनिया की जीडीपी ब्रिक्स में है. इन्हीं सब वजहों से दुनिया के देशों को यह आकर्षित करता है और अभी फिलहाल 22 देशों ने इसका सदस्य बनने के लिए आवेदन किया है. छह देशों को ब्रिक्स समूह की सदस्यता देने पर सहमति बनी है, जिसमें सउदी अरब, यूएई, मिस्र, इथोपिया, अर्जेंटीना और ईरान शामिल हैं. ये सारे देश वो हैं जो खाड़ी मुल्कों के आसपास हैं और यहां तेल की बहुतायत है और ये देश विश्व का केंद्र बने हुए हैं. भारत का मानना था कि समान सोच वाले देशों को साथ लेकर चला जा सकता है. आनेवाले समय में ब्रिक्स दुनिया की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने लगेगा. फिलहाल, इसमें चीन, रूस और भारत शामिल हैं. यह जरूर है कि सदस्यता के विस्तार को लेकर कई तरह की बातें चल रही हैं. रूस और चीन की यह मंशा कही जा रही थी कि अमेरिका या पश्चिम को यह संदेश दिया जा सके कि पश्चिमी दुनिया को ब्रिक्स चुनौती देगा.

पिछले कई दशकों से ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और भारत ने कहीं न कहीं गुट-निरपेक्षता की नीति अपना रखी थी. भले ही वह पुरानी बात हो गयी हो, भले ही भारत अब उससे बहुत आगे निकल चुका है. इसलिए, लगता नहीं कि रूस और चीन की मंशा चली है. अगर उन्होंने यह सोचा होगा कि वे एक पश्चिम-विरोधी समूह बना लेंगे, तो वैसा नहीं हो पाया है. जिन छह देशों को सदस्यता दी गयी है, भारत के उन सभी से बहुत ही अच्छे संबंध हैं. हम अगर पश्चिम एशिया के देशों की बात करें तो उन देशों से भारत के संबंध बड़े अच्छे हुए हैं. कई देशों का सर्वोच्च सम्मान भी पीएम मोदी को मिला है. तो, चीन अपने अरमानों में सफल हुआ है, ऐसा लगता नहीं है. अभी रूस और यूक्रेन में भी युद्ध चल रहा है. पश्चिमी देश भी चूंकि रूस के विरोध में हैं, तो रूस भी कहीं न कहीं चीन के साथ ही था. वह भी युद्ध की वजह से पश्चिमी देशों के खिलाफ इस समूह का इस्तेमाल करना चाह रहा था.

दुनिया का कोई भी देश हो, वह अपनी ही भलाई चाहता है. इसलिए, ये छह देश भारत के साथ जाएंगे या चीन के, यह सवाल इस संदर्भ में भी देखना चाहिए. वे चीन की मंशा को ही नहीं पूरा करेंगे, उनके लिए उनके राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं. चीन जिस तरह छोटे मुल्कों को कर्ज के जाल में फांसकर अपना गुलाम बनाना चाहता है, उसका भी भंडाफोड़ हुआ है. जैसे, यूएई जो नया सदस्य बना है, वह अध्यक्ष होगा. इससे पहले हालांकि, आई2यू2 नाम का संगठन इसके पहले बना था, जिसमें भारत, इजरायल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं. तो, यह एक नए तरह का प्रयास है और लगता नहीं कि सारे देश चीन के पिछलग्गू बनकर रहेंगे. उनके भारत के साथ भी अच्छे संबंध हैं. कुछ वर्षों में भारत दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बन सकता है, तो इसको भी दरकिनार कर वे देश नहीं रह सकते हैं

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