नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 25 वर्षीय महिला को उसके माता-पिता द्वारा कब्जे में रखने को अवैध करार देते हुए बुधवार को उसे रिहा करने के लिए कहा। शीर्ष अदालत ने मामले से निपटने के दौरान ”संवेदनशीलता की कमी” दिखाने के लिए कर्नाटक हाई कोर्ट की आलोचना की।
कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती
सुप्रीम कोर्ट एक व्यक्ति की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने अपनी पार्टनर के माता-पिता के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। मामले की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जस्टिस बीआर गवई और संदीप मेहता की पीठ ने निर्देश देने से पहले महिला और उसके माता-पिता के साथ-साथ पुरुष के माता-पिता से भी बातचीत की।
पीठ ने माता-पिता से किया सवाल
पीठ ने कहा कि महिला अपने पार्टनर के माता-पिता के साथ जाना चाहती है। पीठ ने कहा, हमारा मानना है कि माता-पिता द्वारा महिला को लगातार कब्जे में रखना गैरकानूनी है। किसी भी मामले में एक बालिग लड़की को उसकी इच्छा के खिलाफ कुछ करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने इस मामले से निपटने के हाई कोर्ट के तरीके पर भी नाराजगी व्यक्त की। कहा, जब महिला ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि वह अपना करियर बनाने के लिए दुबई वापस जाना चाहती है, तो हाई कोर्ट को उसे तत्काल प्रभाव से मुक्त करने का आदेश देना चाहिए था।