बड़ौत। 53 साल आठ महीने की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद हिंदू पक्ष ने अदालत में लाक्षागृह को लेकर बड़ी जीत हासिल कर ली। वर्ष 1970 में वाद दायर होने के बाद से ही हिंदू पक्ष ने अदालत में ठोस साक्ष्य पेश किए, जबकि मुस्लिम पक्ष अपने दावों पर खरा नहीं उतर सका।
यही नहीं जो साक्ष्य पेश किए, उनके बारे में भी पुख्ता जानकारी अदालत को नहीं दे सका। मुस्लिम पक्ष न तो यह बता सका कि जब प्राचीन टीले पर मानव की अस्थियां मिली तो उनकी कार्बन डेटिंग क्यों नहीं कराई गई? न ही टीले के कोने-कोने में कब्रें होने का पुख्ता सबूत दे सका। दूसरी तरफ, हिंदू पक्ष ने न केवल कमीशन की रिपोर्ट पेश की, बल्कि सरधना तहसील, एएसआई आदि की साक्ष्यों के साथ रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत की।
इन साक्ष्यों से हिंदू पक्ष को मिली जीत
– तत्कालीन संयुक्त प्रदेश सरकार की शासकीय राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना 25 नवंबर 1920 व 27 दिसंबर 1920 के अनुसार प्राचीन पुरातत्व संरक्षण अधिनियम 1904 के अनुसार मेरठ से 19 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित टीले को लाखा मंडप प्राचीन पुरातत्व के रूप में घोषित किया गया था, जिसके बाद एसडीओ सरधना के आदेश पर चार मार्च 1965 में विवादित भूमि को लाखा मंडप दर्ज किया।
– अदालत में कमीशन की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसमें संपूर्ण टीला प्राचीन व टूटे हुए मिट्टी के पात्रों के अवशेष, विशेष प्रकार की मिट्टी से बने होने बताए गए। इन्हीं आधार पर प्राचीन टीले को लाखा मंडप कहा गया था। टीले को महाभारत कालीन प्राचीन अवशेष भी बताया। रिपोर्ट में दीवार का भी उल्लेख था। कमीशन रिपोर्ट को विशेष साक्ष्य माना।
– प्रतिवादी की ओर से अदालत में विवादित भूमि पर यज्ञशाला, गौशाला, छात्रावास, संस्कृत महाविद्यालय, महात्मा गांधी की प्रतिमा, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के गेट, शिव मंदिर, प्राचीन कुआं आदि होने का उल्लेख भी किया।
– प्रतिवादी पक्ष ने 21 मई 1959 को उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव जहीर उल हसन, 27 दिसंबर 1965 को नायब तहसीलदार सरधना, 12 फरवरी 1965 को तहसीलदार सरधना की रिपोर्ट जो 15 फरवरी 1965 को प्रस्तुत हुई थी, के हवाले में अभिलेखों में दरगाह को गलत दर्ज होना बताया, अदालत में रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में कहा गया कि इसमें लाखा मंडप होना चाहिए।
मुस्लिम पक्ष यहां पड़ गया कमजोर
कमीशन की रिपोर्ट में टीले की सतह विशेष प्रकृति के मिट्टी के पात्र व बहुत प्राचीन कंक्रीट की ईंट से बनी होना बताया व टूटे हुए मिट्टी के मटके में मानव अस्थि प्राप्त होना बताया, लेकिन वादी मुकीम खां ने अस्थियों की न तो कार्बन डेटिंग कराई और न ही किसी वैज्ञानिक विधि से अस्थियों की आयु पता लगाने का प्रयास किया।
मुस्लिम पक्ष ने विवादित जगह पर 600 साल पुराना मकदूम शाह विलायत का मजार होना, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में रजिस्टर्ड होना व उसका मुतवल्ली होना बताया, लेकिन बयान में यह नहीं बताया कि वक्फ बोर्ड द्वारा धारा-30, अधिनियम, 1960 में संरक्षित पंजिका क्यों नहीं प्रस्तुत की और न ही यह स्पष्ट किया कि 1920 में जारी अधिसूचना के विरुद्ध क्या आपत्ति की?
गवाह मजहर अहमद ने अपनी गवाही में विवादित जमीन के कोने-कोने में कब्रें होने का बयान दिया है, जो कि पत्रावली पर लगी आयुक्त की आख्या व मानचित्र के अनुसार सही नहीं प्रतीत होता है। इसके अलावा गवाह ने अपने बयान में विवादित जमीन के 20-25 बीघा में खेती होना का बयान भी दिया है।
डीएम व एसपी ने परखी लाक्षागृह की सुरक्षा
बरनावा गांव में लाक्षागृह पर डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह व एसपी अर्पित विजयवर्गीय भी पहुंचे और काफी देर तक डेरा डाले रहे। पुलिस को दिशा-निर्देश दिए। दोनों अधिकारियों ने लाक्षागृह का निरीक्षण करने के बाद गुरुकुल के आचार्य से जानकारी ली। बरनावा गांव के लाक्षागृह स्थित प्राचीन टीले को लेकर अदालत से 53 साल बाद फैसला हिंदुओं के पक्ष में आने पर पुलिस प्रशासन द्वारा विशेष सतर्कता बरती जा रही है।
लाक्षागृह के चारों ओर तैनात हैं जवान
लाक्षागृह के मुख्य द्वार व परिसर में अलग-अलग जगहों पर पुलिस के जवान तैनात हैं और आम जनता को लाक्षागृह पर नहीं जाने दे रहे हैं। बुधवार को डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह व एसपी अर्पित विजयवर्गीय भी लाक्षागृह पर पहुंचे। दोनों अधिकारियों ने पूरे परिसर व एएसआई संरक्षित क्षेत्र का भ्रमण कर व्यवस्थाओं का जायजा लिया।
जानकारी जुटाई गई
इंस्पेक्टर एमपी सिंह व तैनात पुलिसकर्मियों को दिशा-निर्देश देते हुए सतर्कता बरतने के निर्देश दिए। श्री महानंद संस्कृत विद्यालय गुरुकुल के आचार्य देवेंद्र शास्त्री से लाक्षागृह का इतिहास, भौगोलिक स्थिति, संस्कृत विद्यालय संचालित करने वाली गांधीधाम समिति के पदाधिकारियों, गुरुकुल की शिक्षण व्यवस्था, छात्रों व शिक्षकों की संख्या, छात्रावास व्यवस्था आदि की जानकारी जुटाई।
लाक्षागृह पर प्रवचन दिया करते थे कृष्णदत्त जी महाराज
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के संस्कृत विभाग एवं संस्कृत महाविद्यालय बरनावा के पूर्व छात्र डा. ओमपाल सिंह शास्त्री ने बताया कि ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी महाराज गाजियाबाद जिले के खुर्रमपुर सलेमाबाद के रहने वाले थे। वह बरनावा गांव में आ गए थे और वहीं लाक्षागृह पर लेटकर प्रवचन दिया करते थे। ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी महाराज के प्रवचनों से ही इस भूमि की ऐतिहासिकता का बोध होता है।
लाक्षागृह में हर साल होते थे दो महायज्ञ
डा. ओमपाल सिंह शास्त्री ने कहा कि वर्तमान में लाक्षागृह पर संस्कृत महाविद्यालय, गोशाला और छह यज्ञशालाओं का निर्माण हो चुका है, जबकि 100 के लगभग कमरे बने हुए हैं और कुछ भूमि में कृषि भी होती है। लाक्षागृह पर हर वर्ष दो महायज्ञ होते हैं। रक्षाबंधन पर अखंड सामवेद पारायण यज्ञ ही होता है। होली से लगभग एक सप्ताह पूर्व चतुर्वेद ब्रह्म पारायण महायज्ञ होता है जो आठ दिन तक चलता है।