मुंबई। पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस छोड़ने और शिवसेना में शामिल होने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए आरोप लगाया है कि कांग्रेस अपनी वैचारिक एवं संगठनात्मक जड़ों से भटक गई है, वह जाति के आधार पर विभाजन को बढ़ावा दे रही है एवं कारोबारी घरानों को निशाना बना रही है।
देवड़ा ने कहा कि वह एक ऐसे नेता का सहयोग करना चाहते हैं जो रचनात्मक विचारों को महत्व देता है और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उनकी क्षमता को पहचाना है। पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने लोकसभा चुनावों से पहले मुंबई में कांग्रेस को झटका देते हुए रविवार की सुबह पार्टी छोड़ दी और शिंदे नीत शिवसेना में शामिल हो गए। इसी के साथ कांग्रेस के साथ उनके परिवार का ‘55 साल पुराना नाता’ खत्म हो गया।देवड़ा ने बाद में सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ के जरिए बताया कि उनके कांग्रेस छोड़ने के पीछे के क्या कारण हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ दिवंगत नेता मुरली देवड़ा के बेटे मिलिंद देवड़ा आगामी लोकसभा चुनाव में मुंबई दक्षिण सीट पर उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना (यूबीटी) द्वारा दावा किए जाने के बाद से नाराज थे। मिलिंद देवड़ा 2004 और 2009 में मुंबई दक्षिण सीट से चुने गए थे लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में इस सीट पर (अविभाजित) शिवसेना के अरविंद सावंत से उन्हें शिकस्त मिली थी। सावंत अब ठाकरे गुट में हैं।मिलिंद देवड़ा ने स्वीकार किया कि कांग्रेस से अलग होने का उनका निर्णय अत्यंत भावनात्मक है। उन्होंने साथ ही कहा कि वह एक ऐसे नेता का सहयोग करने की इच्छा रखते हैं जो रचनात्मक विचारों को महत्व देता है, उनकी योग्यता को पहचानता है और राष्ट्र एवं राज्य के विकास के लिए संसद में उनकी क्षमताओं का लाभ उठाने का लक्ष्य रखता है।मिलिंद देवड़ा ने कहा, ‘‘एकनाथ शिंदे जी को मेरी क्षमताओं पर भरोसा है और वह इस विश्वास का प्रतीक है कि कड़ी मेहनत से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।’’ किसी का नाम लिए बगैर बिना देवरा ने हाल के वर्षों में अडाणी समूह की कड़ी आलोचना करने को लेकर कांग्रेस पर नाराजगी जताई।उन्होंने कहा, ‘‘जिस पार्टी ने देश में कभी आर्थिक उदारीकरण की पहल की थी, वह अब व्यापारिक घरानों को ‘राष्ट्र-विरोधी’ कहकर निशाना बनाती है। वह देश की विविध संस्कृतियों और धर्मों का जश्न मनाने से भटक गई है, वह जाति के आधार पर विभाजन को बढ़ावा दे रही है और उत्तर-दक्षिण विभाजन पैदा कर रही है। यह अपनी वैचारिक और संगठनात्मक जड़ों से भटक गई है।’’