बेंगलुरु। सूर्य का रहस्य खंगालने 15 लाख किलोमीटर के सफर पर निकले आदित्य एल1 ने अंतरिक्ष से सूर्य की रंग बिरंगी तस्वीरें भेजी हैं। ‘आदित्य’ में लगे सोलर अल्ट्रावायलट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआइटी) पेलोड ने पराबैंगनी तरंगदैर्ध्य में सूर्य की पूर्ण-डिस्क तस्वीरों को खींच कर कीर्तिमान रचा है।
सूर्य की पूर्ण-डिस्क तस्वीरों को खींचने में पहली बार मिली सफलता
एसयूआइटी ने 200-400 एनएम तरंगदैर्ध्य रेंज में पहली बार सूर्य की पूर्ण-डिस्क तस्वीरों को खींचने में सफलता हासिल की है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अनुसार एसयूआइटी ने विभिन्न फिल्टरों का उपयोग करके इस तरंग दैर्ध्य में सूर्य के फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर की तस्वीरें खींचीं।
इसरो ने क्या कहा?
इसरो ने शुक्रवार को कहा कि 20 नवंबर, 2023 को एसयूआइटी पेलोड को सक्रिय किया गया था। इस टेलीस्कोप ने छह दिसंबर, 2023 को ये तस्वीरें खींचीं। 11 अलग-अलग फिल्टर का उपयोग करके खींचीं गईं इन अभूतपूर्व तस्वीरों में 200 से 400 एनएम तक की तरंग दैर्ध्य में सूर्य की पहली पूर्ण-डिस्क तस्वीरों को देखा जा सकता है। इस उपलब्धि से विज्ञानियों को वैज्ञानिकों को सूर्य के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर के बारे में अध्ययन करने में मदद मिलेगी। इससे पृथ्वी की जलवायु पर सोलर विकिरण के प्रभावों पर रोक लगाने में भी सहायता मिलेगी।
कई संस्थानों ने मिलकर किया था एसयूआइटी को विकासित
एसयूआइटी का विकास इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फार एस्ट्रोनामी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पुणे ने इसरो, मणिपाल एकेडमी आफ हायर एजुकेशन, आइआइएसईआर-कोलकाता के सेंटर फार एक्सीलेंस इन स्पेस साइंस इंडिया, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एस्ट्रोफिजिक्स बेंगलुरु, उदयपुर सोलर आब्जर्वेटरी (यूएसओ-पीआरएल) तेजपुर विश्वविद्यालय असम के साथ मिलकर किया है।
क्या है एल1?
मालूम हो कि एल1 (लैग्रेंज प्वाइंट) अंतरिक्ष में स्थित वह स्थान है, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल समान होता है। इसका उपयोग अंतरिक्षयान द्वारा ईंधन की खपत को कम करने के लिए किया जाता है। सोलर-अर्थ सिस्टम में पांच लैग्रेंज प्वाइंट्स हैं। आदित्य एल1 के पास जा रहा है।
कब लॉन्च हुआ था आदित्य एल1?
आदित्य एल1 को दो सितंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लांच किया गया था। मिशन के तहत इसरो वेधशाला भेज रहा है। 15 लाख किमी की यात्रा पूरी कर ‘आदित्य’ सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के एल-1 की पास की कक्षा में पहुंचेगा। यह पांच साल के मिशन के दौरान एल-1 से ही सूर्य का अध्ययन करेगा।