श्रीमद् भागवत कथा का पांचवा दिन


▪️जब भगवान की विशेष कृपा होती है तभी सत्संग में जाने का अवसर मिलता है- ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य जी महाराज।

बाराबंकी 8 मार्च। ब्लाक सिद्धौर की ग्राम सभा बीबीपुर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन चिन्मय मिशन से पधारे ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य जी महाराज ने कहा कि संसार में दो प्रेमी कभी भी एक साथ नहीं रह सकते ।काल के प्रवाह के बाद एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। यही शाश्वत सत्य है ।कई कई जन्मों के पुण्य उदय होने पर सत्संग का लाभ मिलता है एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मिलता है जब ईश्वर की असीम अनुकंपा होती है तभी सत्संग में शामिल होने का अवसर प्राप्त होता है ।इस अवसर पर युग गायक मुकेश दुबे,राहुल शुक्ला(तबला वादक), श्याम शुक्ला (सहायक) द्वारा प्रस्तुत भजन “कई जन्मों से बुला रहे हैं कोई तो रिस्ता जरूर होगा, नजरों से नजर मिला ना पाए मेरे नजर का कसूर होगा, मैं गोवर्धन से मिलिबे जाऊं रे,”, काफी सराहा गया। उन्होंने कहा कि चीर हरण की लीला वात्सल्य अवस्था में 7 वर्ष की आयु में कान्हा ने गोपियों के चित्त पर पड़े अज्ञानता के पर्दे को हटाने के लिए किया था ।जल के देवता वरुण होते हैं ,निर्वस्त्र स्नान से वरुण देवता का अपमान होता है,जिसका दरिद्रता के रूप में खामियाजा भुगतना पड़ता है। ब्रज में वर्ष में एक बार इंद्रदेव की पूजा होती थी, जिसको बंद कराकर कृष्ण ने नंद बाबा से सभी ग्वाल-बालों,गिरिराज गोवर्धन की पूजा कराके इंद्र के अभिमान को समाप्त किया था। कुपित होकर इंद्र द्वारा भारी वर्षा की गई, बृजवासियों को परेशान देखकर कान्हा ने कनिष्ठ उंगली से गिरिराज ( गोवर्धन पर्वत) को 7 दिन तक उठाए रखा, इंद्र का अभिमान नष्ट हो गया।
कथा व्यास श्री कौशिक चैतन्य जी ने बताया कि “यथानामे तथा गुणे”, जैसा नाम होगा वैसा प्रभाव होगा । गर्गाचार्य जी ने नंद बाबा यशोदा के लाल का नामकरण गौशाला में बलराम और कृष्ण के रूप में रखा था। ‘रुन झुन रुन झुन, घनन घनन घन बाजत है पायजनिया’, भजन बड़े ही भाव पूर्वक प्रस्तुत किया गया। वृंदावन प्रेम की भूमि है ,जहां साक्षात गिरिराज निवास करते हैं, वृंदावन में मुक्ति मिल जाती है ।जहां तुलसी के वृक्ष और ठाकुर जी की पूजा होती है ,वह वृंदावन है । वृंदावन को छोड़कर कन्हैया एक पग भी कहीं नहीं जाते हैं।
“मन चल रे वृंदावन धाम राधे राधे गाएगा” प्रस्तुत भजन की काफी प्रशंसा की गई।
कथा व्यास श्री कौशिक चैतन्य जी महाराज ने बताया कि कन्हैया ने बाल्यपन में ही बकासुर ,अघासुर, धेनुकासुर और पूतना नाम की राक्षसी, समेत नलकूबर और मणिग्रीव का उद्धार किया। माता यशोदा ने ऊखल बंधन भी किया।वृंदावन में यमुना नदी को जहरीली बनाने वाले कालिया नाग के अहंकार को समाप्त करके बृजवासियों के लिए यमुना नदी के जल को प्रयोग हेतु सुलभ किया। उन्होंने कहा कि शरीर का श्रृंगार आभूषण नहीं है, बल्कि समाज सेवा है । जो किसी दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है ,वह स्वयं उस गड्ढे में गिरकर मर जाता है। यही शाश्वत है। माता बहनों कभी टोने टोटके पर विश्वास ना करें, अंधविश्वास से दूर रहे, राम नाम जप का ही सहारा लें। सायं काल कथा के शुभारंभ से पूर्व व्यास पीठ पर श्रीमद् भागवत ग्रंथ की आरती व पूजन अर्चन संयोजक संजय सोनी द्वारा सपत्नीक किया गया। इस मौके पर आचार्यगण देवेश शुक्ला,देवेश पाठक, योगेश मिश्र, अर्पित त्रिवेदी,सहित समस्त ग्रामवासी, श्रोतागण व कार्यकर्ता मौजूद रहे।कथा सुनने के लिए दिनों दिन श्रोताओं की भीड़ उमड़ती जा रही है।

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