बाराबंकी। बाराबंकी संसदीय सीट से कौन जीतेगा, कौन नहीं, यह बताना काफी कठिन है, लेकिन भाजपा उम्मीदवार के भाग्य का फैसला पिछड़ी जातियों के मतदाता करेंगे, यह तय है। लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत पांचों विधानसभाओं में भाजपा को कड़ी चुनौती मिल रही है। अगड़ी जातियों का वोट, पिछड़ी जातियों के मुुकाबले आधे से भी कम है। इस लोस क्षेत्र में अगड़ी जाति के कुल मतदाताओं की संख्या लगभग तीन लाख है। जबकि पिछड़ी जातियां सीधे इसकी दोगुनी हैं। बाराबंकी लोकसभा क्षेत्र के चुनाव के लिए भाजपा, गठबंधन समेत कुल 13 प्रत्याशी मैदान में हैं। इसमें भाजपा से राजरानी रावत, गठबंधन से कांग्रेस नेता तनुज पटेल, बसपा से शिवकुमार दोहरे, पासी पार्टी से डॉ रामगुलाम राजदान सहित 13 प्रत्याशी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं। इन्हें अपने पक्ष में जन समर्थन जुटाना मुश्किल होता नजर आ रहा है। संसद की राह में सबसे अधिक कठिनाई बिना किसी दल के अपने बूते, अपनी छवि के सहारे चुनाव लड़ने वाले निर्दल उम्मीदवारों को है। राजनीतिक पंडितों की माने तो संसदीय क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता चार लाख और दलित मतदाताओं की संख्या चार लाख के आसपास है, जबकि दो लाख यादव वोटरों के अलावा चार लाख कुर्मी व दो लाख सामान्य वर्ग समेत अन्य पिछड़ा जातियों के मतदाताओं की संख्या करीब तीन लाख है। ऐेसे में गठबंधन के बाद राजरानी रावत को जीत हासिल करना लोहे का चना चबाने के बराबर है। इतना जरूर है कि अगड़ी के साथ पिछड़ी जातियों के मतदाताओं ने अगर साथ दिए तो भाजपा का भाग्य चमक सकता है। उधर, सपा-कांग्रेस गठबंधन से चुनावी मैदान में उतरे कांग्रेस प्रत्याशी तनुज पुनिया जातिगत और दलगत वोटों को सुरक्षित रखने और मतदाताओं को अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब रहे तो परिणाम उनके पक्ष में होना तय माना जा रहा है। बाराबंकी लोकसभा के पांचों विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के कद्दावर नेता एवं पूर्व सांसद डॉ पीएल पुनिया द्वारा कराए गए विकास कार्यों की चर्चा जरूर की जा रही है, लेकिन उनके द्वारा कराए गए विकास को वह वोट में कितना तब्दील कर पाएंगे, यह तो समय ही बताएगा। फिलहाल सपा के कद्दावर कुर्मी नेता और नगर पालिका परिषद के चेयरमैन प्रतिनिधि सुरेंद्र सिंह वर्मा भी गठबंधन प्रत्याशी तनुज पुनिया के पक्ष में रात-दिन एक किए हुए हैं। जातिगत तथा दलगत आधार पर गठबंधन अपनी जीत सुनिश्चित मान रहा है।