नई दिल्ली। उत्तर भारतीय राज्यों में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने की घटना को मकर संक्रांति और लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है, तो वहीं दक्षिण भारत में सूर्य के उत्तरायण होने पर पोंगल का उत्सव मनाया जाता है। मकर संक्रांति और लोहड़ी की तरह पोंगल का पर्व भी फसल काटने के बाद भगवान के प्रति आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है।
पहला दिन
तमिल पंचांग के अनुसार, पोंगल के पर्व की शुरुआत 15 जनवरी 2024, सोमवार के दिन से हो रही है। पोंगल का पहला दिन भोगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन इंद्र देव की पूजा की जाती है। इसके द्वारा इंद्र देव के प्रति आभार प्रकट किया जाता है।
सबसे महत्वपूर्ण दिन
चार दिनों के उत्सव में दूसरे दिन यानी थाई पोंगल सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सूर्य देवता को पूजा जाता है। इस दिन पर सूर्य देव के प्रति अपना आभार प्रकट करने के लिए उन्हें खीर का भोग लगाया जाता है।
इस दिन होती है पशुओं के पूजा
थाई पोंगल के अगले दिन यानी तीसरे दिन को माट्टु पोंगल के नाम से जाना जाता है। माट्टु पोंगल के दिन कृषि में अहम भूमिका निभाने वाले पशुओं जैसे गाय, बैल आदि की पूजा का विधान है। इस दौरान इन पशुओं को सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन बैलों की दौड़ भी कराई जाती है, जिसे जलीकट्टू के नाम से भी जाना जाता है।
पोंगल का आखिरी दिन
पोंगल के अंतिम दिन को कन्या पोंगल कहा जाता है। इस दिन को तिरुवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है। कन्या पोंगल को पारिवारिक मिलन के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन घर को फूलों और पत्तों से सजाया जाता है, मुख्य द्वार और आंगन में रंगोली बनाई जाती है। अंत में सभी एक-दूसरे को पोंगल की बधाई देते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।