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लखनऊ। कांग्रेस व सपा के बीच गठबंधन पर मुहर लगने के बाद दोनों ही दलों के नेता अब अपने प्रत्याशियों को लेकर मंथन में जुट गए हैं। लोकसभा चुनाव में सीटों के जातीय समीकरण और पिछले प्रदर्शनों को आधार बनाकर सभी दल अपनी-अपनी गुणा-गणित में लगे हैं।
ऐसे में यदि कांग्रेस के हाथ आई 17 सीटों की बात करें तो इनमें 12 सीटें ऐसी हैं, जिनमें 2019 के लोकसभा चुनाव में वह तीसरे नंबर पर थी। कांग्रेस केवल रायबरेली की एकमात्र सीट जीती थी और तीन सीटों अमेठी, कानपुर व फतेहपुर सीकरी में दूसरे पायदान पर रही थी।
जीत के लिए कांग्रेस के सामने होगी चुनौती
अब इन चार सीटों के अलावा कांग्रेस के सामने उसके हिस्से आई अन्य सीटों पर जीत की बड़ी चुनौती जरूर है। पिछला लोकसभा चुनाव में हुए गठबंधन में सपा-बसपा साथ थे। जबकि कांग्रेस की परंपरागत सीट अमेठी व रायबरेली पर गठबंधन ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था। इस बार कांग्रेस के सामने अपना गढ़ बचाने के साथ गठबंधन से बढ़ी ताकत के बूते अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने का मौका जरूर है।
कांग्रेस उसके पाले आई सहारनपुर, इलाहाबाद, महाराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुंलदशहर, गाजियाबाद, मथुरा, सीतापुर, बाराबंकी व देवरिया सीट पर पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर रही थी। जबकि बांसगांव सीट पर कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारा था।
सहारनपुर से इमरान मसूद पर दांव लगा सकती है कांग्रेस
इलाहाबाद की सीट पर कांग्रेस का दामन छोड़कर गईं रीता बहुगुणा जोशी ने भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी। इस बार कांग्रेस सहारनपुर सीट से इमरान मसूद पर दांव लगाने की तैयारी में है, जो पिछले लोकसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर तथा 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे थे।
अमरोहा की सीट पर पिछले चुनाव में जीत दर्ज कर चुके गठबंधन के बसपा प्रत्याशी रहे दानिश अली को कांग्रेस इस बार अपने खेमे में लाकर मैदान में उतारने की में है। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अमेठी व रायबरेली में जीत दर्ज की थी। जबकि सहारनपुर, गाजियाबाद, कानपुर व बाराबंकी में दूसरे स्थान पर और वाराणसी में तीसरे स्थान पर रही थी।
2009 लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने उसके हिस्से आई अमेठी व रायबरेली के अलावा कानपुर, बाराबंकी, झांसी व महाराजगंज में जीत दर्ज की थी। इन सीटों पर सपा का प्रदर्शन लचर रहा है।