दुुनिया डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं की ओर तेजी से बढ़ रही है, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी आधारित सेवाएं एवं इलेक्ट्रोनिक क्रांति ने लोगों के जीवन को आसान बना दिया है, लेकिन अर्थव्यवस्था एवं जीवन का डिजिटल अवतार इलेक्ट्रोनिक कचरे की शक्ल में एक नयी चुनौती एवं जटिल समस्या को लेकर आया है। घरों में इस्लेमाल होनेवाले कूलर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर जैसी वस्तुओं के अलावा कार्यालय में लैपटॉप, कम्पयूटर, मोबाइल, डिजिटल घड़ी, टीवी तय समय के बाद ई-कचरे में परिवर्तित हो जाते हैं, इस ई-कचरे एवं ई-अपशिष्ट के प्रभावों को प्रतिबिंबित करने एवं इसे नियंत्रित करने की जागरूकता के अवसर के रूप में वर्ष 2018 से प्रतिवर्ष 14 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय ई-अपशिष्ट दिवस अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण फोरम (ड्ब्ल्यूईईई) द्वारा मनाया जाता है। दुनियाभर में 46 देशों सक्रिय ड्ब्ल्यूईईई फोरम एक उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन है, जो एक गैर-लाभकारी संघ है, जिसकी स्थापना अप्रैल 2002 में हुई थी। संयुक्त राष्ट्र भी कहता है कि दुनियाभर में ई-कचरा 53.6 मिलियन टन उत्पन्न हो रहा हैं। इसमें से केवल 17.4 प्रतिशत का ही संग्रहण और पुनर्चक्रण किया जाता है। यह भी अनुमान है कि 2030 तक 74 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न होगा। प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति, शहरीकरण प्रक्रिया और आर्थिक विकास ई-कचरे में तेजी से वृद्धि के प्रमुख कारण हैं। अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (ड्ब्ल्यूईईई) फोरम के अनुसार, वर्ष 2022 में लगभग 5.3 बिलियन मोबाइल/स्मार्टफोन उपयोग से बाहर हो गये थे।
लगातार बढ़ रहा ई-कचरा न केवल भारत के लिये बल्कि समूची दुनिया के बड़ा पर्यावरण, प्रकृति एवं स्वास्थ्य खतरा है। ई-कचरा से तात्पर्य उन सभी इलेक्ट्रानिक और इलेक्ट्रिकल उपकरणों (ईईई) तथा उनके पार्ट्स से है, जो उपभोगकर्ता द्वारा दोबारा इस्तेमाल में नहीं लाया जाता। ग्लोबल ई-वेस्ट मानिटर-2020 के मुताबिक चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा ई-वेस्ट उत्पादक है। चूंकि इलेक्ट्रिक्ल और इलेक्ट्रानिक उपकरणों को बनाने में खतरनाक पदार्थों (शीशा, पारा, कैडमियम आदि) का इस्तेमाल होता है, जिसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ता है। दुनियाभर में इस तरह से उत्पन्न हो रहा ई-कचरा एक ज्वलंत समस्या के रूप में सामने आ रहा है। पारा, कैडमियम, सीसा, पॉलीब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट्स, बेरियम, लिथियम आदि ई-कचरे के जहरीले अवशेष मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक होते हैं इन विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने पर मनुष्य के हृदय, यकृत, मस्तिष्क, गुर्दे और कंकाल प्रणाली की क्षति होती है। इसके अलावा, यह ई-वेस्ट मिट्टी और भूजल को भी दूषित करता है। ई-उत्पादों की अंधी दौड़ ने एक अन्तहीन समस्या को जन्म दिया है। शुद्ध साध्य के लिये शुद्ध साधन अपनाने की बात इसीलिये जरूरी है कि प्राप्त ई-साधनों का प्रयोग सही दिशा में सही लक्ष्य के साथ किया जाये, पदार्थ संयम के साथ इच्छा संयम हो।
आज दुनिया के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं, जिसमें से ई-वेस्ट एक नई उभरती विकराल एवं विध्वंसक समस्या भी है। दुनिया में हर साल 3 से 5 करोड़ टन ई-वेस्ट पैदा हो रहा है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर के मुताबिक भारत सालाना करीब 20 लाख टन ई-वेस्ट पैदा करता है और अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-वेस्ट उत्पादक देशों में 5वें स्थान पर है। ई-अपशिष्ट दिवस रीसाइक्लिंग और ई-कचरे को कम करने के महत्व पर बल देता है। इस दिन को मनाना और ई-कचरे के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है क्योंकि केवल 78 देशों में ही ई-कचरा प्रबंधन अच्छा है। विश्व की केवल 71 प्रतिशत जनसंख्या ई-कचरा कानून के अंतर्गत आती है। ई-वेस्ट के निपटारे में भारत काफी पीछे है, जहां केवल 0.003 मीट्रिक टन का निपटारा ही किया जाता है। यूएन के मुताबिक, दुनिया के हर व्यक्ति ने साल 2021 में 7.6 किलो ई-वेस्ट डंप किया। भारत में हर साल लगभग 25 करोड़ मोबाइल ई-वेस्ट हो रहे हैं। ये आंकड़ा हर किसी को चौंकाता है एवं चिंता का बड़ा कारण बन रहा है, क्योंकि इनसे कैंसर और डीएनए डैमेज जैसी बीमारियों के साथ कृषि उत्पाद एवं पर्यावरण के सम्मुख गंभीर खतरा भी बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, ई-कचरे से निकलने वाले जहरीले पदार्थों के सीधे संपर्क से स्वास्थ्य जोखिम हो सकता है।
दुनिया भर में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की तेजी से बढ़ती खपत है। आज हम जिन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को अपनाते जा रहे हैं उनका जीवन काल छोटा होता है। इस वजह से इन्हें जल्द फेंक दिया जाता है। जैसे ही कोई नई टेक्नोलॉजी आती है, पुराने को फेंक दिया जाता है। इसके साथ ही कई देशों में इन उत्पादों के मरम्मत और रिसायक्लिंग की सीमित व्यवस्था है या बहुत महंगी है। ऐसे में जैसे ही कोई उत्पाद खराब होता है लोग उसे ठीक कराने की जगह बदलना ज्यादा पसंद करते हैं। साल 2021 में डेफ्ट यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलाजी द्वारा किए गए सर्वेक्षण में फोन बदलने का सबसे बड़ा कारण साफ्टवेयर का धीमा होना और बैटरी में गिरावट रहा। यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी की ओर से जारी ‘ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में दुनिया में 5.36 करोड़ मीट्रिक टन ई-कचरा पैदा हुआ था। अनुमान है कि साल 2030 तक इस वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक कचरे में तकरीबन 38 प्रतिशत तक वृद्धि हो जाएगी। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह समस्या कितनी बड़ी है और आने वाले समय में यह और कितना बढ़ने वाली है। बात अगर दिल्ली की करें तो यहां हर साल 2 लाख टन ई-कचरा पैदा होता है। हालांकि, इसे वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके से हैंडल नहीं किया जा रहा है। इससे आग लगने जैसी कई जानलेवा घटनाएं हो चुकी हैं, जो दिल्ली के निवासियों और कूड़ा उठाने वालों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। इसी क्रम में अभी हाल ही में दिल्ली सरकार ने घोषणा की है कि दिल्ली में भारत का पहला ई-कचरा इको-पार्क खोला जायेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट का जिक्र किया था। उन्होंने लोगों से आह्वान किया था कि पर्यावरण को बचाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक-कचरे का प्रभावी प्रबंधन करना होगा।
गौरतलब है कि भारत में साल 2011 से ही इलेक्ट्रॉनिक कचरे के प्रबंधन से जुड़ा नियम लागू है। बाद में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 लागू किया गया था। इस नियम के तहत पहली बार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माताओं को विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी के दायरे में लाया गया। नियम के अंतर्गत उत्पादकों को ई-कचरे के संग्रहण तथा आदान-प्रदान के लिये उत्तरदायी बनाया गया है और उल्लंघन की स्थिति में दंड का प्रावधान भी किया गया है। कई लोग या कंपनियां अपने पुराने लैपटॉप, कंप्यूटर या मोबाइल को वेस्ट कर देते हैं, जो ई-वेस्ट के रूप में सामने आते हैं। लेकिन आप ऐसे में इसे किसी जरूरतमंद को दे सकते हैं। इसके लिये लायंस क्लब इन्टरनेशनल-डिस्ट्रिक-321-ए ने अनूठी एवं अनुकरणीय पहल करते हुए ई-अवशेषों एवं वेस्ट को एकत्र कर रही है। अन्य जनसेवी संस्थाएं भी ऐसे सराहनीय उपक्रम कर रही है।
भारत सरकार ई-कचरे के निपटारे के लिए प्रबंधन नीति लाई थी, लेकिन वह कारगर नहीं साबित हुई और अब रिसाइकल इंसेंटिव के साथ नई नीति ला रही है। ताकि ई-निर्माण इकाइयां ई-वेस्ट का रिसाइकल करने और पर्यावरण बचाव के प्रति जवाबदेह हो सकें। मौजूदा समय देश में यह काम बड़े स्तर पर असंगठित क्षेत्र द्वारा किया जाता है, जहां ई-वेस्ट का निपटारा गलत एवं अवैज्ञानिक तरीकों से किया जा रहा है। सरकार ने ई-कचरा (प्रबंधन) नियम-2022 अधिसूचित किया है, जो प्रत्येक विनिर्माता, उत्पादक, रिफर्बिसर, डिस्मैंटलर और ई-वेस्ट रिसाइकलर पर लागू होगा। ई-वेस्ट अर्थात इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को लेकर केंद्र सरकार सख्त है और इसे लेकर केंद्र सरकार ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। दिशानिर्देशों के अनुसार अब जो भी ई-वेस्ट पैदा करेगा उन्हें उसे नष्ट करने की जिम्मेदारी भी उठानी होगी।