लम्बे समय से कई गांवों के वाशिन्दे कर रहे पुल की मांग
लखीमपुर-खीरी। चुनावी मैदान में भले ही नेताजी अपनी-अपनी सरकारों की तारीफों के पुल बांध रहे हो, लेकिन जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर कुछ गांव ऐसे भी हैं, जो महज एक पुल को लेकर लम्बे समय से संघर्ष करते चले आ रहे हैं। चुनावी बारिश में जनप्रतिनिधि उनकी मांग को पूरा करने की हामी तो भर देते हैं, लेकिन चुनाव जाते ही, नेताजी के वह वादे भी बरसाती मेंढ़कों की तरह गायब हो जाते हैं।
दरअसल सिंगाही क्षेत्र में पड़ने वाले मांझा मार्ग पर पुल के न होने से चौगुर्जी, इच्छा नगर, तारन कोठी, भैरमपुर सहित कई अन्य ऐसे गांव हैं, जहां जाने के लिए सरयू नदी को पार करना पड़ता है। इस समस्या को देखते हुए ग्रामीणों ने अपने आप एक अस्थाई पुल का निर्माण कराया था, लेकिन बरसात के समय नदी का जलस्तर बढ़ने से यह पुल टूट जाता है, जिससे न सिर्फ आवागमन बाधित होता है, बल्कि ग्रामीणों को तीन किलोमीटर का सफर तय करने के लिए करीब 20 किलोमीटर जाना पड़ता है। जरूरत का सामान लेने के लिए इतनी दूरी तय करने के कारण ग्रामीणों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों ने बातचीत में बताया कि मांझा के लकडी के पुल से रोजाना हजारों लोग गुजरते हैं। लकड़ी के बल्ली के सहारे बना यह पुल इस कदर जर्जर है कि कभी भी धराशाई हो सकता है। बारिश के समय यह पुल बह जाता है, जिससे आवागमन बंद हो जाता है। मांझा निवासी सोनी बाजवा ने बताया कि काफी समय से जनप्रतिनिधियों से नया पुल बनवाने की गुहार लगाते आ रहे हैं, लेकिन उनकी यह मांग आज तक पूरी नहीं की जा सकी है। वहीं गांव के परमजीत सिंह पम्मी ने बताया कि अस्थाई पुल पर कई हादसे हो चुके हैं, बरसात के समय कई वाहन बह चुके हैं। कई बार बाइक सवार गिरकर घायल भी हो चुके हैं। पुल की समस्या दूर न होने से आने-जाने की दिक्कत तो है ही, साथ ही विकास में भी रोड़ा अटका हुआ है। कस्बे के राहुल गुप्ता ने बताया कि पुल बना होता तो व्यापारिक गतिविधियों में तेजी आती, लेकिन कोई ध्यान ही नहीं देता। व्यापारिक दृष्टि से देखा जाए तो इस पुल का निर्माण बहुत जरूरी है। बरसात के समय पुल के बह जाने के कारण मांझा क्षेत्र का व्यापार चौपट हो जाता है। दो माह तक ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
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क्षेत्रीय लोगों ने बनवाया था मांझा का अस्थाई पुल
मांझा मार्ग पर पुल न होने की समस्या को देखते हुए क्षेत्रीय सिख आगे आए थे। सिखों ने अन्य ग्रामीणों के साथ मिलकर सामान एकत्र कर खुद ही मांझा पुल का निर्माण कराया था। इस अस्थाई पुल के बन जाने से कुछ समस्या तो हल हो गई, लेकिन बरसात आने के साथ ही यह समस्या ग्रामीणों के माथे पर सिकन ले आती है। इस समस्या को लेकर बीते विधानसभा चुनाव में मांझा, तारन कोठी, कल्लू पुरवा सहित सभी गांव के लोगों ने पहले पुल फिर पोल का नारा तो दिया, लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला।