-डॉ. आशीष वशिष्ठ
अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद 9 अप्रैल को पहली बार रामनवमी का आयोजन हो रहा है। इस रामनवमी को पांच सौ वर्षों बाद श्रीराम लला अपने घर में जन्मदिन मनाएंगे। भव्य राम मंदिर में रामनवमी का ये स्वर्णिम और ऐतिहासिक अवसर सनातनधर्मियों को कड़े संघर्ष से हासिल हुआ है, जिसका पांच सदियों से अधिक का इतिहास है। इसमें 70 से अधिक बार का संघर्ष, जिसमें से अधिकतर मुगल आक्रांताओं द्वारा भारतवासियों और हमारे मंदिरों पर हमले का रक्तरंजित इतिहास शामिल है। लेकिन सबसे ज़्यादा पीड़ादायक पिछले 75 वर्ष रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तुष्टिकरण की राजनीति को सिर माथे से लगाया और हिन्दू आस्थाओं और भावनाओं को कुचलने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह की सरकार तक ने राम मंदिर की राह में रोड़े अटकाने का काम किया।
भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार संसद में कहा था कि राम मंदिर का निर्माण राष्ट्रीय स्वाभिमान का मुद्दा है। उनका वह वक्तव्य सही मायने में एक संदेश था जिसमें राजनीति नहीं थी। सही बात तो ये है कि राम मंदिर का विरोध करने वालों ने ही इसे वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बना दिया। कांग्रेस और अन्य कुछ दल मुस्लिम मतों के कारण इस मुद्दे पर हिंदुओं के न्यायोचित दावों की अनदेखी करते रहे। प्रतिक्रिया स्वरूप इस मामले ने दूसरा मोड़ ले लिया। लेकिन दुर्भाग्य है कि देश की बहुसंख्यक आबादी के आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि को अवैध कब्जे से मुक्त करवाने का कार्य न्यायालय के निर्णय से संभव हो सका। और वह प्रक्रिया भी वर्षों नहीं दशकों तक चली। सबसे बड़ी बात ये हुई कि बाबरी ढांचे की तरफदारी मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ ही साथ धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार बने हिन्दू नेतागण भी करते रहे।
सोमनाथ मंदिर को अंतिम बार औरंगजेब ने यह कहकर तोड़वाया था कि, ‘इस बार इसे पूरी तरह नेस्तानाबूद कर दो कि मंदिर का कहीं कोई निशान तक दिखाई न दे।’ सोमनाथ पर मंस्जिद और कब्रिस्तान को सरदार पटेल ने इतिहास की विकृति का चिह्न और राष्ट्रीय अपमान बताकर कहा था कि, ‘‘राष्ट्र के गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण आवश्यक है।’’ गांधी जी भी इससे सहमत थे। हिन्दू बहुल देश में प्रभु श्री राम की जन्मस्थली को मुक्त करवाने में जिस तरह के अवरोध उत्पन्न किए गए वे अकल्पनीय हैं। यदि सोमनाथ के साथ ही राम जन्मभूमि का मसला भी तत्कालीन नेहरू सरकार सुलझा लेती तब शायद इसे लेकर राजनीति करने का किसी को अवसर नहीं मिलता।
वर्तमान में देश में राम नाम की प्रचंड लहर के चलते अब कांग्रेस नेता, समर्थक और मीडिया का एक वर्ग यह साबित करने में जुटा है कि राम मंदिर में कांग्रेस का भी योगदान है। जबकि जमीनी सच्चाई यह है कि, कांग्रेस ने राम के नाम पर घिनौनी राजनीति का प्रदर्शन किया है। एक ऐसी राजनीति जिसने राम मंदिर मुद्दे को उलझाने का काम किया। राम मंदिर केस में कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि अयोध्या मामले की जांच को कोर्ट 2019 के आम चुनाव तक टाल दे। 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस मामले में हलफनामा दाखिल कर सेतु समुद्रम परियोजना के लिए राम सेतु को तोड़ कर तय वर्तमान मार्ग से ही लागू किये जाने पर जोर देते हुए कहा था कि भगवान राम के अस्तित्व में होने के बारे में कोई पुख्ता साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। ये भी कहा था कि रामायण महज कल्पित कथा है।
हिंदू विरोध की भावना कांग्रेस के डीएनए में है। आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने पहली लोकसभा में 1955-56 में हिंदू कोड बिल्स पास किए। इस बिल को लेकर डॉ. राजेंद्र प्रसाद और पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच राजनीतिक मतभेद उत्पन्न हो गया था। इसकी एक बड़ी वजह दोनों का धर्म को लेकर रवैया था। वर्ष 1976 में इंदिरा ने देश में आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में संशोधन किया, जिसमें सेक्युलर शब्द शामिल किया गया था। जिसका मतलब था कि भारत हिन्दू देश होते हुए भी हिन्दू देश नहीं कहा जा सकता। 1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यह कानून तब लाया गया जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम सीमा पर पहुंचा था। इस कानून की परिधि से अयोध्या की राम जन्मभूमि को अलग रखा गया है। कांग्रेस के बनाए कानूनों के चलते ही वर्तमान में ज्ञानवापी, भोजशाला और मथुरा आदि हिंदू आस्था के स्थलों को वापस पाने लिए हिंदू समाज कानूनी लड़ाई लड़ रहा है।
कांग्रेस और इंडी गठबंधन में शामिल घटक दलों के कई नेता राम मंदिर और सनातन धर्म पर आपत्तिजनक बयानबाजी करते हैं। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व की चुप्पी पूरे हिंदू समाज को अखरती है। इससे यह संदेश भी जाता है कि अर्नगल बयानबाजी करने वालों को आलाकमान का समर्थन और मूक सहमति प्राप्त है। वास्तव में, सोमनाथ से अयोध्या तक कांग्रेस का चरित्र बिल्कुल भी बदला नहीं है। 18वीं लोकसभा के गठन के लिए आम चुनाव हो रहे हैं। इंडी गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव नवरात्रि के प्रथम मछली खाने का वीडियो बड़ी बेशर्मी से पोस्ट करते हैं। इससे पहले बीते साल सावन के महीने में राजद नेता लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ मटन बनाने को वीडियो शेयर किया था। इन वीडियो पर राजद, कांग्रेस और इंडी गठबंधन के दल भले ही कोई तर्क दें, वास्तव में उनका मकसद हिंदू समाज को अपमानित करने का है। मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस, राजद, तृणमूल
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल किस स्तर तक नीचे गिरेंगे, इसका आप अंदाजा नहीं लगा सकते।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी समेत विपक्ष के तमाम दल और नेता शामिल नहीं हुए। कांग्रेस राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के शुभ अवसर को भाजपा और आरएसएस को इवेंट बताती रही। लेकिन जमीन सच्चाई यह है कि कांग्रेस समेत विपक्ष ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी बनाकर वही गलती की है, जो गलती कभी पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने की थी। उस वक्त नेहरू सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में नहीं गए थे। असल में मुस्लिम तुष्टिकरण कांग्रेस के एजेंडे में प्रथम स्थान पर है। उसके एजेंडे में न सोमनाथ था और न ही अयोध्या है।
राममंदिर किसी की आस्था पर आक्रमण नहीं, भारत की अस्मिता से जुड़े प्रश्नों का उत्तर है। राम मंदिर के निर्माण से संपूर्ण विश्व में रचता बसता हिंदू समाज आह्लादित है। न्यायालय के निर्णय के बाद भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए हिंदू समाज ने दिल खोलकर सहयोग किया। यह ऐतिहासिक सहयोग इस बात का साक्षात प्रतीक है कि हिंदू समाज इस घड़ी के लिए चिर प्रतीक्षित था। आज अयोध्या में जो भव्य राम मंदिर संसार की शोभा बढ़ा रहा है, वो संसार भर के हिंदुओं की आस्था, एकता, अखण्डता, श्रद्धा, मान्यता और संकल्प का सर्वोच्च पवित्र प्रतीक है। इस रामनवमी को हिंदू समाज अपने आराध्य भगवान श्रीराम के पूजन वंदन के समय अपने पूर्वजों के संघर्ष और बलिदान को भी अवश्य स्मरण करना चाहिए। इसी दिन के लिए तो निहत्थे राम भक्तों ने अपने सीने पर गोलियां खाई थी। जिस सरयू में आज हम और आप स्नान ध्यान और आचमन कर रहे हैं, उसका जल किसी समय राम भक्तों के रक्त से लाल हुआ था। इसी दिन के लिए तो हमारे पूर्वजों ने धैर्य पूर्वक हिंदू विरोधी सरकारों से राजनीतिक लड़ाई लड़ी। न्यायालय में अपना पक्ष तथ्यों और साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत किया। किसी भी स्तर पर उतावलापन, उत्तेजना और अधीरता का प्रदर्शन नहीं किया। इस घमंड या अहंकार में भी नहीं आए कि हम बहुसंख्यक हैं। वास्तव में, राम मंदिर के लिए संघर्ष संपूर्ण हिंदू समाज की सहनशीलता, धैर्य और कानून के प्रति आदर के उच्च भाव को दर्शाता है। वो अपने संकल्पों पर अडिग रहता है। बड़ी से बड़ी बाधा को वो कानून और नैतिकता के सीमा में रहकर ही पार करता है।
इस रामनवमी को एक दीपक उन सभी नाम अनाम शहीद कार सेवकों और राम भक्तों के नाम का भी अवश्य प्रज्वलित करना चाहिए जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन में अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। उन्हीं महान बलिदानियों के त्याग के कारण आज बालक राम भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित हो पाए हैं। रामनवमी के शुभ अवसर पर भगवान सूर्य अपने प्रकाश से बालक राम का तिलक करके अखिल विश्व को यह संदेश देंगे कि लाखों षडयंत्रों, अन्याय और अत्याचारों के बावजूद सनातन धर्म का मस्तक झुकाया नहीं जा सकता।