कोतवाली और थानों में सुनवाई न होने से एसपी की चौखट पर पहुंच रहे फरियादी

कहीं मुकदमा दर्ज न करने की शिकायत तो कहीं विवेचना में खेल,थाने के मुखिया बने सिपाही 

जिले के कुछ थानों का तो यह आलम है कि वहां पर तैनात सिपाही ही थाने के मुखिया है उनके बिना थाने में लगे पेड़ों की पत्तियां भी डोल पाती है।थानेदार भी उन्हीं पर विश्वास कर थाने की बागडोर देख रहे हैं।सूत्रों की माने सारी थाने की डील वहीं सिपाही करते हैं।

गोण्डा : पुलिस अधीक्षक विनीत जायसवाल ने जिले की बागडोर संभालते ही क्षेत्राधिकारियों और थानेदारों को चेतावनी दी थी कि थाने स्तर पर आने वाले पीड़ित फरियादियों की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करने की व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए जिसमें महिलाओं की शिकायत और महिला संबंधित मामलों पर विशेष ध्यान देने की बात कही थी।यही नहीं सूत्र बता रहे है कि एसपी ने कहा था कि किसी भी सूरत में थाने से असंतुष्ट फरियादी जिला पुलिस मुख्यालय आता है तो संबंधित थानेदार कार्रवाई के लिए तैयार रहेंगे।शायद एसपी विनीत जायसवाल ने शासन की मंशा अनुरुप यह निर्देश जारी किया था।कुछ दिन तो सबकुछ ठीक चला लेकिन जैसे-जैसे एसपी साहब पुराने होते गए वैसे-वैसे जिले के लगभग सभी थानों की पुरानी रवैया वापस होती गई। आज नतीजा यह है कि अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए थानों के बाहर पुलिस के मुंह लगें दलाल जिनके बिना पुलिस की कलम ही नहीं चलती हैं जो दलालों की

मंसूबों पर खरा उतर गया उसका तो कल्याण हो गया लेकिन वही कुछ कमजोर वर्ग के पीड़ित जो दलालों के जरिए थानाध्यक्ष तक नहीं पहुंच पाते उनके लिए न्याय पाना टेड़ी खीर साबित होती है और वह थक हारकर चिल्लाती धूप व भीषण गर्मी में किराया खर्च कर पुलिस अधीक्षक की चौखट पर पहुंच रहे हैं जिन्हें कभी एसपी साहब मिले तो कभी नहीं मिले।सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि जिन लापरवाह थानेदारों या क्षेत्रीय दरोगा

और सिपाहियों की शिकायत एसपी से की जाती है पीड़िताओं की मंशा रहती है कि पुलिस के बड़े साहब के पास जाएंगे तो न्याय जरूर मिलेगा लेकिन उनकी शिकायत पुनः वहीं वापस होती है ऐसी स्थिति मे शिकायतकर्ता की क्या दुर्दशा होती है और खुन्नस खाए थानाध्यक्ष और पुलिसकर्मी शिकायतकर्ता के साथ क्या व्यवहार करते होंगे यह तो शिकायतकर्ता ही जानता होगा।लेकिन पुलिस अधीक्षक दफ्तर में पहुंचने वाले फरियादों की तादाद बढ़ती जा रही है।

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