तनुज पुनिया ने बिगाड़ा बसपा का सियासी समीकरण

संगठन की कमजोरी और बाहरी प्रत्याशी का भी दिखा असर

बाराबंकी। जिले में बढ़त बनाने की जगह हाथी फिसल गया। जी हाँ! बाराबंकी लोकसभा सीट पर दूसरे नंबर पर रहने वाली बसपा तीसरे स्थान पर पहुंच गई। मंगलवार को 18वीं लोकसभा चुनाव की सम्पन्न हुई मतगणना में बसपा तीसरे नंबर पर पहुंचकर अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई। बताते चलें कि बाराबंकी लोकसभा सीट पर पिछले कई चुनावों से बसपा दूसरे नंबर की पार्टी रही है। मगर, इस बार बाराबंकी सीट पर बसपा का प्रदर्शन पिछले लोकसभा चुनावों से बेहद खराब रहा। बसपा ने बाहरी प्रत्याशी शिव कुमार दोहरे को उतारा। संगठन की कमजोरी भी मूल वोट बैंक को संभाल कर नहीं रख सकी। पुराने कार्यकताओं की निष्क्रियता का भी असर दिखाई दिया। बसपा प्रत्याशी और कार्यकर्ताओं का चुनाव प्रचार कुछ क्षेत्रों तक सीमित रहा। जिस वजह से बसपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर पहुंच गए। सूत्रों की माने तो बाराबंकी-53 संसदीय सीट पर राजनीतिक गणितज्ञों का इंडिया गठबंधन के कांग्रेस उम्मीदवार तनुज पुनिया के पक्ष में लगाया गया कयास सच साबित हुआ।

यहां तमाम प्रयास के बाद भी दलितों, पिछड़ों व अति पिछड़ों का रूझान गठबंधन की ओर ही रहा। इसका सीधा लाभ इंडिया गठबंधन को मिला और तनुज पुनिया ने भारी मतों से जीत दर्ज की। चुनावी नतीजे इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि बसपा के वोट बैंक में इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी ने सेंध लगा दी। इसका परिणाम यह रहा कि बसपा प्रत्याशी शिव कुमार दोहरे महज 39177 वोट तक ही सिमट कर रह गए। भाजपा को जिले में पिछड़ों व अति पिछड़ों की हमदर्दी नहीं मिल सकी। ऐसे में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। यही नहीं पोस्टल बैलेट में कर्मियों ने भी भाजपा से मुंह मोड़ लिया। मंगलवार को सुबह 8 बजे सबसे पहले पोस्टल बैलेट की मतगणना शुरू हुई। इस मतगणना का परिणाम इंडिया गठबंधन की ओर नजर आया। यहां 2253 वोट में से 1399 मत कांग्रेस के तनुज पुनिया, भाजपा उम्मीदवार राजरानी रावत को 771 मत, जबकि सिर्फ 72 मत बसपा प्रत्याशी शिव कुमार दोहरे को मिले। इसके बाद हर राउंड में कांग्रेस के तनुज पुनिया को बढ़त मिली। चौतरफा वोटों की कांग्रेस के पक्ष में मिले मतों ने भाजपा को कभी आगे नहीं होने दिया, जिस जातीय गणित को लेकर भाजपा के राजनीतिज्ञ अपने पक्ष में वोट की बात करते थे, उन मतों में भी कांग्रेस ने सेंधमारी कर ली। बसपा, पिछड़ों व अति पिछड़ों के मतों का ध्रुवीकरण तनुज पुनिया को भारी अंतर से बढ़त दिलाया और वह 18वीं लोकसभा में जनाधार हासिल कर सांसद बन गए। राजनीतज्ञों की मानें तो भाजपा के तमाम मतों को भी इंडिया गठबंधन के तनुज पुनिया ने अपनी ओर मोड़ने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी।

कॉडर वोटर बसपा से नाराज: सरवर अली
जिले में जहां गठबंधन तेजी से चल रहा था वहीं बसपा द्वारा अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ना आत्मघाती कदम के तौर देखा गया। बसपा अंत समय तक यह साफ नहीं कर पाई कि वह किन मुद्ददों पर चुनाव लड़ रही है और वह किसके साथ है। इस बात से बसपा का कॉडर वोटर बेहद नाराज नजर आया। वरिष्ठ राजनेता एवं पूर्व विधायक सरवर अली बताते है कि कांशीराम ने यूपी की राजनीति में जातीय समीकरण का एक ऐसा कॉकटेल तैयार किया था, जिसमें दलितों, अति पिछड़ों के साथ मुसलमानों को भी अपने साथ जोड़ा। लेकिन मायावती की नीतियों से नाराज दलित, पिछड़े और मुसलमान नेताओं ने बसपा से धीरे-धीरे किनारा करना शुरू कर दिया। जिसका खामियाजा चुनाव दर चुनाव बसपा को भुगतना पड़ा। कभी कॉडर के रूप में पहचानी जाने वाली बसपा की स्थिति यह हो गई कि 18वीं लोकसभा के चुनाव में सभी मतदान केंद्रो पर उसके पास बस्ता लगाने वाले लोग तक नहीं बचें।

दलितों की चेतना बन उभरे तनुज
लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी जहां पीडीए के एजेंडे पर चली, वहीं बसपा अंत समय तक यह रणनीति नहीं बना पाई कि उसे सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर आगे बढ़ना है या दलित, पिछड़े और मुस्लिमों को साथ लेकर चलना है। बसपा यह भी साफ नहीं कर पाई कि वह भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रही है या कांग्रेस सपा गठबंधन के खिलाफ। बहरहाल, बसपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा और विगत वर्षों चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाली बसपा के महज कुछ वोटों में सिमट कर रह गई। ऐसे में जिले की राजनीति में तनुज पुनिया की जीत के बाद दलितों में चेतना के उभार के तौर पर देखा जा रहा है।

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