गरजते हुए सदन में जब बोल पड़ी सुषमा स्वराज

झज्जर। साल 1996 में लोकसभा का चुनाव जीत 13 दिन की वाजपेयी सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री रहीं सुषमा स्वराज का राजनीतिक करियर बेहतरीन रहा। उनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा शानदार पहलू उनकी वाकपटुता थी। वे हिन्दी को बहुत ही शुद्ध और उत्कृष्ठ अंदाज में बोला करती थीं।

अंबाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज अब इस दुनिया में नहीं हैं। पन्नों को पलट कर देखें तो वो तारीख थी 11 जून 1996, संसद चल रही थी। विश्वास मत पर चर्चा हो रही थी और यहां उसका विरोध करने के लिए अब सुषमा स्वराज खड़ी हुईं। तब वे दक्षिण दिल्ली संसदीय क्षेत्र में भाजपा से सांसद थीं।

सुषमा स्वराज ने कहा, ”सवाल यह है कि यह किसी सांप्रदायिकता के नाम पर इकट्ठे नहीं हुए हैं। यह भी ओढ़ा हुआ बाना है। यह अपने गुनाहों के कारण इकट्ठे हुए है। एक दूसरे को बक्श देने की सौदेबाजी के कारण। यह अपने अपराधों के बेपर्दा होने के भय से इकट्ठे हुए हैं। यह सांप्रदायिकता के नाम पर हुई साझेदारी नहीं है। यह चारा कांड और हवाला कांड की साझेदारी है। तू मुझे माफ कर मैं तुझे माफ करता हूं…।

‘न समझे वह अनाड़ी…’
चलते हुए शोर के बीच सोमनाथ चैटर्जी ने व्यवस्था से जुड़ा प्रश्न पूछते हुए कहा, ”मेरी हिन्दी पर अच्छी पकड़ नहीं। हिंदी समझ नहीं सकता। मुझे खेद है। मैं नहीं जानता कि सौदेबाजी किसके लिए कहा गया। इस पर सुषमा ने कहा-समझने वाले समझ गए, जो न समझे वह अनाड़ी, मैंने चारा कांड और हवाला कांड कहा था…।

भाषण को इतना रोचक मत बनाइए
इससे पहले जब उन्होंने बात शुरू की तो कहा, आज बिखरी हुई सरकार है और एकजुट विपक्ष है। क्या यह दृश्य अपने आप में जनादेश की अवहेलना की खुली कहानी नहीं कह रहा है? उनकी बातों के साथ शोर चलता रहा। सभापति बोल पड़े, आप अपने भाषण को इतना रोचक मत बनाइए। यह सुनकर सदन में हंसी की मानो लहर दौड़ गई।

सुषमा बोलीं- हां, हम सांप्रदायिक हैं
आगे सुषमा ने कहा हां, ”हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि वंदे मातरम गाने की वकालत करते हैं। हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि हम राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान के लिए लड़ते हैं। हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की मांग करते हैं। हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि हम हिंदुस्तान में गोवंश के संवर्धन की वकालत करते हैं। सभापति जी, हां, हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि हम हिंदुस्तान में समान नागरिक संहिता की बात करते हैं।”

चलते हुए भाषण में शोर चलता रहा, व्यवधान भी डाला, लेकिन, सुषमा रुकी नहीं। उन्होंने आगे कहा हम सांप्रदायिक हैं सभापति जी, क्योंकि कश्मीरी शरणार्थियों के दर्द को… ये सेक्युलर हैं, ये धर्मनिरपेक्ष है। ये दिल्ली की सड़कों पर तीन हजार सिखों का कत्लेआम करने वाले… सभापति जी, आप तो साक्षी हैं।

सुषमा जी की बात सुननी चाहिए
यहां जब हंगामा बढ़ा तो सदन में मौजूद पूर्व पीएम चंद्रशेखर खड़े हुए। हंगामा कर रहे सांसदों को कहा कि कोई सदस्य अगर बोल रहा है तो दूसरे सदस्यों को उन्हें सुनना चाहिए और सुनने देने की अनुमति देनी चाहिए। जब सुषमा जी बोल रही हैं तो उनकी बात को सुनना चाहिए और जिनको उत्तर देना है उनको देना चाहिए।

रामराज्य और सुराज की भूमिका हुई तैयार
तब सुषमा स्वराज ने बताया था कि अटल जी के प्रधानमंत्री पद से त्याग पत्र से कैसे तैयार हुईं रामराज्य और सुराज की भूमिका। सभापति द्वारा टोंके जाने पर सुषमा ने का कि रामराज्य और सुराज की शायद नियति ही यही है कि वह एक बड़े झटके के बाद मिलता है। मैं पूरे विश्वास से कहना चाहती हूं कि जिस दिन मेरे आदरणीय नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन से प्रधानमंत्री के पद से अपने त्याग-पत्र को घोषणा की थी, हिन्दुस्तान में उस दिन रामराज्य की भूमिका तैयार हो गई थी।

उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में उस दिन स्वराज की नींव पड़ गई थी। अध्यक्ष जी, दूरदर्शन के सामने जीवंत प्रसारण देखने वाला हिंदुस्तान का वह मतदाता उनके त्याग पत्र की घोषणा के साथ कराह उठा था। यह अन्याय हुआ है-यह अन्याय हुआ है। लेकिन अन्याय कभी यह स्वीकार नहीं करता कि वह अन्याय कर रहा है।

उन्‍होंने कहा कि अन्याय तो अपने स्वार्थ को सिद्धांत का बाना पहनाकर इस तरह प्रस्तुत करता है जैसे सबसे बड़ा न्याय कर रहा हो और यही इस सदन में घटा है। हालांकि, भाषण के अंत में उन्होंने यह जरूर कहा, जितने दिन यह देश आपके हाथ में रहें, ईश्वर इस देश की रक्षा करें, यह प्रार्थना करते हुए इस विश्वास मत का विरोध करती हूं।

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