चुनाव में प्रलोभन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई

नई दिल्ली। चुनाव में प्रलोभन देकर वोट लेना भ्रष्टाचार माना जाए या नहीं, खासकर तब जबकि कानून की धारा 123 में भ्रष्ट आचरण का सार है कि यह एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है, जबकि चुनाव में प्रलोभन राजनीतिक दलों की ओर से होता है। याचिकाकर्ता का कहना है कि राजनैतिक दल व्यक्तियों का समूह है और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 में वह शामिल होता है। ऐसे में अगर जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 की परिभाषा में व्यक्ति को व्यक्तियों का समूह नहीं माना गया, उसमें व्यक्ति से व्यक्तियों के समूह को अलग कर दिया गया तो कोई भी छद्म कंपनी बना कर मत पाने के लिए कंपनी के जरिए मतदाताओं को प्रलोभित करेगा रिश्वत देगा और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई याचिका
वकील अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनैतिक दलों द्वारा मुफ्त रेवड़ियों की घोषणाओं का विरोध किया है। याचिका में इस पर रोक लगाने की मांग की गई है और कहा गया है कि ऐसा करना जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण माना जाएगा। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ आजकल मामले पर सुनवाई कर रही है। गुरुवार को उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने बुधवार को चीफ जस्टिस द्वारा किये गए सवाल से ही बहस की शुरुआत की।

अदालत ने पूछा ये सवाल
चीफ जस्टिस ने बुधवार को सुनवाई के दौरान पूछा था कि क्या पार्टी को व्यक्ति माना जा सकता है? इसके जवाब में हंसारिया ने कहा था कि पार्टी और कुछ नहीं बल्कि व्यक्तियों का समूह है। गुरुवार को हंसारिया ने अपनी बात साबित करने के लिए कोर्ट का ध्यान जनरल क्लासेज एक्ट की धारा 3 की उपधारा 42 की ओर खींचा। उन्होंने कहा कि ऐसे मामले में यह धारा लागू होगी और इसके मुताबिक पर्सन (व्यक्ति) का मतलब है बॉडी आफ पर्सन और कंपनी। यदि पर्सन से बॉडी ऑफ पर्सन को निकाल देंगे तो कोई भी छद्म कंपनी बना कर मत पाने के लिए उस कंपनी के जरिए मतदाताओं को प्रलोभित करेगा और उपहार व रिश्वत देगा।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आपके मुताबिक सुब्रमण्यम बालाजी के फैसले में इसे पूरी तरह अनदेखा किया गया गया है। हंसारिया ने सहमति जताई। चीफ जस्टिस ने फिर सवाल किया कि कानून के मुताबिक तो उम्मीदवार की सहमति की बात है और सहमति तो साबित करनी होगी। हंसारिया ने कहा हां, ट्रायल में यह परखा जाए, लेकिन समस्या तो ये है कि अगर ऐसा होता है तो क्या इससे उम्मीदवार से जोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि 2013 के फैसले में धारा 123 के दूसरे भाग पर ध्यान नहीं दिया है।

चुनाव आयोग को अधिकार देने की मांग
चीफ जस्टिस का अगला सवाल था कि क्या किसी राजनैतिक दल द्वारा यह कहना भर, कि हम मिक्सी देंगे, ग्राइंडर देंगे, भ्रष्ट आचरण माना जा सकता है? हंसारिया ने कहा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं माना जा सकता कि यह भ्रष्ट आचरण नहीं है। अगर कोई कंपनी बनाकर मतदाताओं को रिश्वत देता है और उसे इसमें कवर नहीं किया जाता तो कानून का उद्देश्य निष्फल होगा।

हंसारिया ने चुनाव आयोग को किसी राजनैतिक दल की मान्यता रद करने का अधिकार दिये जाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के नेशनल कांग्रेस मामले में दिये गए पूर्व फैसले पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग कहता है कि सैकड़ों राजनैतिक दल पंजीकृत हैं, लेकिन सभी चुनाव नहीं लड़ते परन्तु लाभ लेते हैं और चुनाव आयोग को दलों का पंजीकरण रद करने का अधिकार नहीं है। मामले में अगले बुधवार को फिर सुनवाई होगी।

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