श्रावण मास पर विशेष

अचलेश्वर महादेव मंदिर में होती है,भगवान शिव के अंगूठे की पूजा

  • भगवान शिव के अंगूठे के रूप में स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार बदलता है अपना रंग
  • शिवरात्रि व सावन में मंदिर में स्थापित शिवलिंग के दर्शनों से लोगों की सभी मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण
  • शिवलिंग के दर्शनों के लिए देश के ही नहीं बल्कि विदेशी भक्तों की भी सालभर यहां लगी रहती है भीड़

राजस्थान से लौटकर अजय सिंह चौहान

निष्पक्ष प्रतिदिन,लखनऊ।अचलेश्वर महादेव मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है।
अचलेश्वर महादेव मंदिर दुनिया का ऐसा इकलौता मंदिर है, जहां पर शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है।इस अचलेश्वर मंदिर में भगवान शिव के पैरों के निशान आज भी मौजूद है। यहां भगवान भोले अंगूठे के रुप में विराजते हैं और शिवरात्रि व सावन में इस मंदिर में भोलेनाथ के अंगूठे के दर्शनों से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।अचलेश्वर महादेव मंदिर की वजह से राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यहां भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं।जैसे उत्तर प्रदेश में स्थित वाराणसी भगवान शिव की नगरी है।वैसे ही माउंट आबू को भगवान शिव की उपनगरी कहा जाता है, क्योंकि यहां का पहाड़ भगवान शिव के अंगूठे पर टिका है।बताते हैं कि जिस दिन पर्वत के नीचे से भगवान शिव का अंगूठा गायब हो जाएगा, उस दिन इस पर्वत का नाश हो जाएगा।

राजस्थान राज्य के सिरोही जिले की आबू रोड तहसील में स्थित आबू पर्वत पर अकालगढ़ किले के बाहर स्थित है।ऐसा माना जाता है, कि इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में परमार वंश ने करवाया था। बाद में 1452 में महाराणा कुंभ ने इसका पुनर्निर्माण कराया और इसका नाम अचलगढ़ रखा। इस प्राचीन मंदिर के इतिहास में कई बड़े रहस्य छिपे हुए हैं।अचलेश्वर महादेव मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। भगवान शिव के सभी मंदिरों में शिव लिंग या भगवान शिव की मूर्ति के रूप में पूजा की जाती है। लेकिन इस मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है। इसके साथ ही शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है।सावन व शिवरात्रि के आलावा अन्य दिनों में भी मंदिर में अंगूठे के रूप में स्थापित शिवलिंग के दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

जिससे देश से ही नहीं बल्कि विदेशी भक्तों की भारी भीड़ यहां बनी रहती है।मंदिर में नंदी, भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति है, जिसका वजन लगभग 4 टन है। यह पांच धातुओं, सोना, चांदी, तांबा, कांस्य और जस्ता से बना है। मंदिर के पुजारी जोरावर सिंह ने इस प्राचीन शिव मंदिर के इतिहास की जानकारी देते हुए बताया कि पौराणिक काल में जहाँ आज आबू पर्वत स्थित है, वहाँ नीचे विराट ब्रह्म खाई थी। इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे। उनकी गाय कामधेनु एक बार हरी घास चरते हुए ब्रह्म खाई में गिर गई तो उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती, गंगा का आह्वान किया तो ब्रह्म खाई पानी से जमीन की सतह तक भर गई और कामधेनु गाय गोमुख पर बाहर जमीन पर आ गई।एक बार दोबारा फिर ऐसा ही हुआ। इसे देखते हुए बार-बार के हादसे को टालने के लिए वशिष्ठ मुनि ने हिमालय जाकर उससे ब्रह्म खाई को पाटने का अनुरोध किया। हिमालय ने मुनि का अनुरोध स्वीकार कर अपने प्रिय पुत्र नंदी वद्रधन को जाने का आदेश दिया। अर्बुद नाग नंदी वद्रधन को उड़ाकर ब्रह्म खाई के पास वशिष्ठ आश्रम लाया। आश्रम में नंदी वद्रधन ने वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए एवं पहाड़ सबसे सुंदर व विभिन्न वनस्पतियों वाला होना चाहिए। वशिष्ठ ने वांछित वरदान दिए। उसी प्रकार अर्बुद नाग ने वर मांगा कि इस पर्वत का नामकरण उसके नाम से हो। इसके बाद से नंदी वद्रधन आबू पर्वत के नाम से विख्यात हुआ।

उन्होंने यह भी बताया कि वशिष्ठ ऋषि से वरदान प्राप्त कर नंदी वद्रधन खाई में उतरा तो धंसता ही चला गया, केवल नंदी वद्रधन की नाक एवं ऊपर का हिस्सा जमीन से ऊपर रहा, जो आज आबू पर्वत के रुप में जाना जाता है। इसके बाद भी यह पर्वत अचल नहीं रह पा रहा था, तब वशिष्ठ के विनम्र अनुरोध पर महादेव ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे को पसार कर इसे स्थिर किया यानी अचल कर दिया तभी यह अचलगढ़ कहलाया। तभी से यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में महादेव के अंगूठे की पूजा-अर्चना की जाती है। इस अंगूठे के नीचे बने प्राकृतिक पाताल खड्डे में कितना भी पानी डालने पर खड्डा पानी से नहीं भरता है। इसमें चढ़ाया जाने वाला जल कहाँ जाता है,कोई नहीं जानता है।जो आज भी एक रहस्य है।उन्होंने एक लोकप्रिय स्थानीय किंवदंती का जिक्र करते हुए आगे बताया कि मंदिर में स्थापित नंदी की मूर्ति को मंदिर में छिपी मधुमक्खियों ने कई बार मुस्लिम आक्रमणकारियों के आक्रमण से बचाया है।उन्होंने यह भी बताया कि अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर के चौक में चंपा का विशाल वृक्ष है।मंदिर में दो कलात्मक स्तंभों के साथ ही बाईं ओर धर्मकांटा बना हुआ है, जिसकी शिल्पकला अद्भुत है। कहा जाता है, कि इस क्षेत्र के शासक जब गद्दी पर बैठते थे, तब अचलेश्वर महादेव का आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के तहत लोगों के साथ न्याय की शपथ लेते थे। द्वारकाधीश का मंदिर भी मंदिर परिसर में ही बना हुआ है।गर्भगृह के बाहर नरसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध और कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां हैं। मंदिर में तीन बड़े पत्थरों वाली भैंसों की मूर्तियों वाला एक तालाब है। यह मूर्तियां ऐसे बनाई गयीं हैं, जिनमें स्फटिक एक क्वार्ट्ज पत्थर है, जो प्राकृतिक प्रकाश में अस्पष्ट दिखाई देता है, लेकिन प्रकाश होने पर क्रिस्टल जैसा हो जाता है।यह शिव मंदिर देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक जाना जाता है।

कैसे पहुंचे अचलेश्वर महादेव मंदिर

सड़क मार्ग से माउंट आबू राजस्थान के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।देश के किसी भी कोने से सड़क मार्ग द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।वहीं ट्रेन द्वारा भी यहाँ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। आबू रोड नजदीकी रेलवे स्टेशन तो।तथा हवाई मार्ग से भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। उदयपुर में महाराणा प्रताप हवाई अड्डा यहाँ सकता है।जो यहां का नजदीकी हवाई अड्डा है,जो यहाँ से लगभग 207 किमी दूर है।

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