नई दिल्ली। सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी व्रत किया जाता है। इस बार जया एकादशी व्रत 20 फरवरी को है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा और व्रत किया जाता है। साधक इस दिन व्रत रखते हैं और उनसे सुख-शांति का आशीर्वाद मांगते हैं। मान्यता है कि जया एकादशी व्रत में कथा का पाठ करने से पूजा सफल होती है और घर में खुशियों का आगमन होता है। आइए पढ़ते हैं जया एकादशी व्रत कथा।
जया एकादशी व्रत कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में एक बार इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था। सभी में संत और देवी-देवता उपस्थित थे। सभा में गायन और नृत्य कार्यक्रम चल रहा था। गंधर्व कन्याएं और गंधर्व नृत्य और गायन बेहद उत्साह के साथ कर रहे थे। इस दौरान नृत्य कर रही पुष्यवती की दृष्टि गंधर्व माल्यवान पर पड़ गई। माल्यवान के यौवन पर पुष्यवती पर मोहित हो गई। इससे वह सुध-बुध खो बैठी और अपनी लय-ताल से भटक गई।
मिला ये श्राप
वहीं, माल्यवान भी सही तरीके से गायन नहीं कर रहा था। ऐसा देख सभा में उपस्थित सभी लोग क्रोधित हो उठे। यह दृष्य देख स्वर्ग नरेश इंद्र भी क्रोधित हुए और उन्होंने दोनों को स्वर्ग से बाहर कर दिया। साथ ही उनको यह श्राप दिया कि तुम दोनों को प्रेत योनि प्राप्त होगी। श्राप के असर से माल्यवान और पुष्यवती प्रेत योनि में चले गए और वहां जाकर उनको दुख का सामना करना पड़ा। प्रेत योनि अधिक कष्टदायक थी।
प्रेत योनि हुए मुक्त
एक बार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी को माल्यवान और पुष्यवती ने अन्न का सेवन नहीं किया। दिन में एक बार फलाहार किया। इस दौरान दोनों ने जगत के पालनहार भगवान विष्णु का सुमिरन किया। दोनों की भक्ति भाव को देखकर भगवान नारायण ने पुष्यवती और माल्यवान को प्रेत योनि से मुक्त कर दिया।
एकादशी व्रत करने से होती है मोक्ष की प्राप्ति
भगवान श्रीहरि के आशीर्वाद से दोनों को सुंदर शरीर प्राप्त हुआ और वह फिर से स्वर्गलोक चले गए। जब वहां पहुंचकर इंद्र को प्रणाम किया, तो वह चौंक गए। इसके बाद उन्होंने पिशाच योनि से मुक्ति का उपाय पूछा। इसके बाद माल्यवान ने बताया कि एकादशी व्रत के असर और भगवान विष्णु की कृपा से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिली है। इसी प्रकार जो व्यक्ति जया एकादशी का व्रत रखता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।