आजकल हम जिंदगी सोशल मीडिया पर ही जीते हैं. हम से मतलब ज्यादातर लोग दिन में 200 बार अपना फोन चेक करते हैं. किसी ना किसी को डंठल भी करते हैं यानि देखते हैं कि दूसरे लोग सोशल मीडिया पर क्या कर रहे हैं. किसी को ब्लॉक कर देने के बाद भी दूसरा अकाउंट बनाकर देखते हैं कि वो इंसान क्या कर रहा है. कम से कम आज की जनरेशन तो ऐसा खूब करती हैं और ये फिल्म इस हकीकत को बड़े शानदार तरीके से दिखाती है.
ये कहानी है तीन दोस्तों की , अनन्या पांडे. सिद्धांत चतुर्वेदी और आदर्श गौरव. अनन्या और सिद्धांत एक ही फ्लैट में रहते हैं. नहीं भाई, रिलेशनशिप में नहीं हैं. लिव इन में भी नहीं हैं, दोस्त हैं और एक लड़का और लड़की दोस्त हो सकते हैं. सिद्धांत ने 9 साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था और अब वो अपने दर्द को स्टैंड अप कॉमेडी के जरिए कम करने की कोशिश करता है. वो सबसे फनी तभी होता है जब सबसे दुखी होती है, अनन्या जॉब करती हैं लेकिन बॉयफ्रेंड ने ब्रेकअप कर लिया तो अब उसका फुल टाइम काम ये देखना है कि वो सोशल मीडिया पर क्या कर रहा है. किसके साथ है. आदर्श जिम ट्रेनर है और अपनी जिम चेन खोलना चाहता है. तीनों दोस्त मिलकर तय करते हैं कि वो तीनों ये शुरू करेंगे. लेकिन फिर क्या होता है…कैसे सोशल मीडिया की ये दुनिया इनकी जिंदगी बदलती है. ये देखने के लिए नेटफ्लिक्स पर ये फिल्म जरूर देखिएगा. आपको पता चलेगा कि आप अपने फोन और सोशल मीडिया पर क्या कर रहे हैं. क्या सही और क्या गलत.
अनन्या पांडे ने इस फिल्म में अच्छी एक्टिंग की है. ये लाइन पढ़ते ही ट्रोलर बोलेंगे इसको पैसे मिल गए लेकिन भाई अब अच्छी एक्टिंग की है तो की है. अनन्या का किरदार वैसा ही है जैसे आजकल के यंगस्टर्स हैं और ये किरदार उन्होंने पूरी ईमानदारी से निभाया है. वो रियल लगती हैं. लगता नहीं कि कुछ ऐसा कर रही हैं जो हजम नहीं हो रहा. सिद्धांत चुतर्वेदी अच्छे एक्टर हैं और यहां भी वो ये बात साबित कर जाते हैं. स्टैंड अप कॉमिक का किरदार वो कमाल तरीके से निभाते हैं. स्टैंड अप कॉमेडी भी ऐसे करते हैं कि लगता है ये भी उनका करियर ऑप्शन हो सकता है. आदर्श गौरव ने कमाल का काम किया है. वो जिम ट्रेनर के रोल में हैं. सुपर फिट लगते हैं. जब मलाइका उनके साथ फोटो पोस्ट कर देती हैं तो उनके चेहरे के एक्स्प्रेशन वैसे ही होते हैं जैसे किसी आम जिम ट्रेनर के होते जिसकी इस फोटो के बाद सोशल मीडिया पर फॉलोइंग बढ़ जाती कल्कि कोचलिन ने भी अच्छा काम किया है. रोहन गुरबख्शानी का काम भी अच्छा है.
ये ना जवान है..ना पठान है..ना एनिमल और ना डंकी….ये वो है जो हम जीते हैं. इस फिल्म को देखते हुए आपको याद आएगा कि अरे आप भी तो ऐसा करते हैं. आपके दोस्त भी तो ऐसा करते हैं. ये फिल्म हकीकत के काफी करीब है. यहां कोई हीरोपंती नहीं है. सब रियल है. फिल्म अपनी पेस से चलती है. ना कहीं कोई ऐसी चौंकाने वाली चीज आती है कि आप हिल जाएं और ना कहीं ऐसा लगता है कि बंद करो यार. आप बस इस फिल्म के साथ साथ कुछ ना कुछ सोचते जाते हैं कि ऐसा हमारे आसपास भी तो होता है. हम सोशल मीडिया के दौर में इंफ्लूएंसर्स के दौर में कितना कुछ खोते जा रहे हैं. हम दूसरे के जैसी जिंदगी जीना चाहते हैं. हम छुट्टियां मनाने नहीं छुट्टियों पर तस्वीरें पोस्ट कर जाते हैं. कंटेंट लेने जाते हैं. हमारे बर्थडे एनिवर्सरी सब सोशल मीडिया इवेंट बनते जा रहे हैं. ये फिल्म हमें वो रिएलिटी चेक देती है जिसकी जरूरत आज के दौर में सबसे ज्यादा है.
अर्जुन वरैन सिंह ने फिल्म को डायरेक्ट किया है. वो गली बॉय में असिस्टेंट डायरेक्टर थे और ये पहली फिल्म है जो उन्होंने डायरेक्ट की है. फिल्म देखकर लगता है कि वो यंगस्टर्स को बड़े अच्छे से समझते हैं. फिल्म को उन्होंने वैसे ही बनाया है जैसे इस तरह की फिल्म बननी चाहिए थी ना कोई हौ हल्ला. ना कोई हीरोपंती वाले डायलॉग. फिर भी फिल्म आपको छूती है. कुल मिलाकर ये फिल्म देखनी चाहिए और जरूर देखनी चाहिए.