..ये अनदेखी कहीं महंगी न पड़ जाए साहब!

  • तहसील मुख्यालय पर आवंटित आवासों में अधिकारियों द्वारा रात्रि निवास न करने से समय पर नहीं हो रहा है ग्रामीणों की समस्याओं का निराकरण
  • निवास न करने से लाखों की लागत से बने सरकारी आवास खंडहर में हो रहे तब्दील

जिन प्रशासनिक अफसरों की जिम्मेदारी तहसील मुख्यालय पर ही प्रवास कर आमजनों की जनसमस्याओं का निराकरण करने की हो, अगर वे ही जिला मुख्यालय से रोज आएं-जाएं तो अधीनस्थों से क्या उम्मीद की जा सकती है? इस प्रक्रिया में संलिप्त है बख्शी का तालाब तहसील मुख्यालय पर तैनात तहसीलदार,नायब तहसीलदार शाम ढलते ही बिना किसी को कार्यभार सौंपे इन अधिकारियों को विषम हालातों में तहसील मुख्यालय छोड़ना भारी पड़ सकता है। सरकारी मंशा के विपरीत यह काम कुछ अफसर तो सरकारी आवासों की अनुपलब्धता के कारण मजबूरी में कर रहे है, तो कुछ जानबूझ कर। ऐसा नहीं है कि जिले पर बैठे प्रशासनिक अफसर रात में अफसर विहीन लावारिस तहसील मुख्यालय के सूरत-ए-हाल से अनभिज्ञ हों।अधिवक्ताओं के मुताबिक अफसरों को तहसील मुख्यालय पर सरकारी आवास आवंटित हैं।लेकिन तहसीलदार द्वारा निवास न किये जाने की सूरत में लाखों की लागत से बने यह सरकारी आवास खंडहर में तब्दील हो रहे हैं।तो वहीं तहसीलदार बीकेटी विजय कुमार तहसील मुख्यालय पर सरकारी आवास की सुविधा उपलब्ध होने के बाद भी शहर की पाश कालोनी में निवास कर रहे हैं।तहसील के मुखिया का तहसील मुख्यालय पर रात्रि निवास न करने से इनके बिना अगर क्षेत्र में कभी कोई बड़ा वाकया हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा? सवाल अपने जवाब की तलाश में है।
तहसील के वरिष्ठ अधिवक्ताओं का कहना हैं कि प्रशासन के तमाम अफसरों को तैनाती वाले मुख्यालयों पर ही रहने के सरकारी आदेश कोई नए नहीं हैं। जिलास्तरीय अफसरों को ही समय-समय पर देहात क्षेत्र में रात्रि प्रवास कराने की मंशा वहां के सूरत-ए-हाल को जानकर समस्याओं का निराकरण कराना ही रहता है।इसी क्रम में अधिवक्ता एवं पूर्व अध्यक्ष बीकेटी बार रणंजय सिंह चौहान ने कहा कि ऐसा अक्सर होता है, कि जब ये अफसर ही देर से आने और जल्दी जाने की दिनचर्या में खुद को ढाले हुए हैं, तो मातहतों से सही वक्त पर आने-जाने की उम्मीद किया जाना बेमानी है। ऐसे में तहसील मुख्यालय पर दिन छिपने से पहले ही वीरानी पसर जाती है।वहीं अधिवक्ता कहते हैं कि बिन अफसरों के मातहतों के हाल ‘लकड़ी वाला घर नहीं, हमें किसी का डर नहीं..’ सरीखे हो जाते हैं। इन अफसरों से कभी कोई देर से आने और जल्दी आने का कारण पूछ लेता है तो इनके जिला मुख्यालय पर बैठक या सरकारी काम के बहाने रटे-रटाए जुमले हैं। इन हालातों में फरियादियों का वापस लौटने के साथ जिला व प्रदेश मुख्यालय पर समस्याओं के निदान के लिए भटकना शासन की मंशा पर पानी फेर रहा है।जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर बख्शी का तालाब तहसील मुख्यालय को लेकर जिक्र किया जाए तो यहां के अफसरों को सरकारी आवास में रहना रास नहीं आ रहे हैं, इसी लिए वह रात को यहां बने सरकारी आवासों में प्रवास करना उचित नहीं समझते।जबकि शासनादेश है, कि सभी लोकसेवकों को अपने तैनाती स्थलों पर रात्रि विश्राम करना है। यदि किसी कार्यवश कोई लोकसेवक तैनाती स्थल को छोड़कर बाहर जाता है तो उसे अपने विभागाध्यक्ष से लिखित अनुमति लेनी होगी। तहसील मुख्यालय पर तहसीलदार,नायब तहसीलदारों को आवास मिले हुए हैं। दिन में अधिकारी अपने आवास पर भी नहीं रहते हैं, बल्कि नायब तहसीलदार अपने आवासों को कार्यालय के रूप में उपयोग कर रहे हैं।लोगों का कहना है कि सरकार ने अधिकारियों को रात में रुकने के लिए ही आवास बनवाए हैं। सरकार की मंशा है कि इससे समस्याओं का समाधान समय से होगा, लेकिन तहसीलदार विजय कुमार सहित अन्य कर्मचारियों का आना जाना जिला मुख्यालय से ही होता हैं।

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