सेवा ही उन्नति का साधन है – आचार्य गंगा प्रसाद शास्त्री

अमेठी। तिलोई ब्लाक क्षेत्र के सेमरौता गांव में चल रही सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा में रायबरेली से पधारे आचार्य गंगा प्रसाद शास्त्री नें कथा सुनाते हुए कहा कि हमें आपको सुदामा जी की तरह परम् सन्तोषी होना चाहिए,शास्त्रों में उसी को दरिद्र बताया गया है जो असंतुष्ट है।व्यक्ति के जीवन में चाहे कितना भी धन वैभव क्यों न हो किन्तु यदि सब कुछ होने बाद भी सन्तोष नहीं है तो सारा धन धूल के समान है। हम सबको प्राप्त को ही पर्याप्त समझते हुए आनंदित रहना चाहिए। स्वामी जी नें कर्मयोग समझाते हुए कहा कि कुछ भी करना यदि स्वार्थ से या फल पाने की आशा से किया जाए तो कर्म तो होगा लेकिन कर्म योग नहीं ,जब सेवा को अपने जीवन का अंग बना लें और वह सेवा निरभिमान निष्काम और निर्मम होकर करते रहें तो सेवा करते करते योग की अनुभूति हो जाती है। उन्नति का साधन सेवा है इससे ही आत्मशुद्धि होती है।अन्तः करण की शुद्धि करने के तीन उपाय हैं, सेवा,त्याग और प्रेम जिसमें सेवा भाव प्रधान है।भगवद्भाव से किसी की सेवा करना भगवान की ही सेवा है।

आचार्य जी ने ज्ञानयोग तथा भक्तियोग को विस्तार से समझाया और कहा कि भक्ति योग तभी सिद्ध होगा जब हम परमात्मा को ही अपना सर्वस्व मान लें क्योंकि अभी तक जिसको भी अपना माना वह हमेशा रह न सका और न हम ही किसी के हो सके इसलिए अगर इस विनाशी संसार से आशा न करके जीव अपनी आशा को भगवान से जोड़ दे तो जीव का परम कल्याण हो जाएगा।परीक्षित मोक्ष की कथा सुनाते हुए आचार्य जी ने भक्ति ज्ञान वैराग्य से से ओत प्रोत ज्ञानयज्ञ में कथा को विश्राम दिया।इस अवसर पर यजमान शत्रुघ्न पाण्डेय,श्रीकांत पाण्डेय, ओम प्रकाश पाण्डेय,जय प्रकाश पांडेय, अधिशाषी अभियंता हर्षित श्रीवास्तव, अवर अभियंता आर वाई दुबे, संजयपांडेय, माधव बाजपेई, महेंद्र सिंह,अमित पाण्डेय, पुत्तन पाण्डेय,देवी शरण बाजपेई,कर्ण कुमार,हिमांशु बाजपेई,सुमित समेत तमाम कथा प्रेमी भक्त मौजूद रहे।

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